*नितीयाँ बदलनी पडेगी*
*बहुत मेहनत करनी पडेगी.!!*
✍️ २५०६
*विनोदकुमार महाजन*
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लाखों कार्यकर्ताओं की फौज हाथ में होकर भी अपेक्षित परीणाम नहीं मिलते है , संपूर्ण परिवर्तन नहीं होता है , जीत का पक्का भरौसा नहीं मिलता है
तो ?
रणनीति विफल हो रही है ? ऐसा समझना ही उचित रहेगा ?
आखिर हमारी रणनीति कहाँ अपयशी हो रही है ?
अगर तेज गति से अपेक्षित परिणाम नहीं मिल रहे है तो निश्चित रूप से जरूर कुछ कमीयाँ हो सकती है – जो कमीयाँ तुरंत कम करने की जरूरत है !
मतलब ?
हिंदुओं का मतदान का कम प्रतिशत होना और राष्ट्रीय पुनर्निर्माण में अनेक बाधाएं उत्पन्न होना ! तथा राष्ट्रविघातक शक्तियाँ फिर से ताकतवान बनने की कगार पर आना ?
मतदाताओं के हर घर में जाकर प्रबोधन करने में और हरएक मतदाताओं को पोलिंग बुथ पर पहुंचाने में हम विफल क्यों हो गये ?
मेरे अनेक लेखों में मैंने बारबार इस विषय पर विस्तृत लिखा है !
इसके सिवाय ही घुसपैठीयों का मतदान रोकने में , बोगस मतदान रोकने में तथा लालच दिखाकर मतदान प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करनेवाली शक्तियों को रोकने के लिए शासकीय तौर पर अपयश क्यों मिल गया ?
इसके लिए कानूनी तौरपर यशस्वी योजनाओं का अमल क्यों नहीं किया गया ?
सख्ती का मतदान अथवा आँनलाईन मतदान अथवा मतदान करने के बाद भत्ता आरंभ करने जैसी सुविधा उपलब्ध की जाती तो शायद ?
आज का नतीजों का चित्र अलग होता !
मतलब धरातल पर काम करने में हम चारों तरफ से अपयशी हो गये ?
चारसौ पार का नारा देकर हम हमारे ही जाल में फँस गये ? या फिर विरोधीयों की जमीनी तौरपर की कुटिल तथा हमारे निती को तगडी काट देनेवाली यशस्वी रणनीती को समझने में अपयशी हो गये ?
जमीनी तौरपर यशस्वी रणकंदन द्वारा यशस्वी होने में हम सचमुच में विफल हो गये ?
तो कारण क्या होगा ?
अब समय हाथ से बाहर जा चुका है ! अगले यशस्वी योजनाओं द्वारा हम पर सदीयों से हो रहे अत्याचारी कानून हटाने में हम आखिर विफल तो हो ही गये !
तो हमारी रणनीती में क्या कमियाँ आ गई ?
आज बंगाल धधक रहा है ! मणिपूर ज्वालाग्राही बनता जा रहा है ! संपूर्ण देश में राष्ट्रद्रोही शक्तियाँ शक्तिशाली होती जा रही है ! सज्जन शक्तियों पर अत्याचार बढते जा रहे है ! हैवानियत धिरे धिरे पैर पसार रही है !
कश्मीर फिरसे तणावग्रस्त बनता जा रहा है ! परदे के पिछे से पाकिस्तान फिरसे आक्रमक होता जा रहा है !
इसकी तुरंत और यशस्वी काट हमारे पास क्या है ?
पिछले विधानसभा चुनाव से लेकर आजतक पश्चिम बंगाल में हिंदुओं पर हो रहे भयंकर अत्याचार रोकने में भी केंद्र सरकार आखिर विफल क्यों हो रही है ! हिंदुओं की संपूर्ण रक्षा करने में कानून भी क्यों विफल हो रहा है ?
आखिर इसकी कोई तो भी यशस्वी काट तो होगी ही ना ?
फिर भी इसी विषय में कमाल की शांती और मौन क्यों ? कानूनी तौर पर यशस्वी काट क्यों नही निकाली जा रही है ?
मतलब साफ है इसके कारण वहाँ के स्थानिक मतदाताओं में अविश्वास बढता जा रहा है !
और इसी कारण बिजेपी से स्थानीय मतदाता दूर होते जा रहे है ? संपूर्ण देश में यही हो रहा है ? समाज में असुरक्षितता की मानसिकता तेज गती से बढ रही है ! और इसी विषय में निष्क्रिय सरकार के कारण मतदाताओं में भी उदासीनता बढती जा रही है !
कारण चाहे कुछ भी हो इसकी यशस्वी काट तो ढूंडनी ही पडेगी ! समाज मन की नाडी हमें पहचाननी ही पडेगी !
दूसरी एक महत्वपूर्ण बात यह भी है की समाज मन की मानसिकता बदलने में हम विफल क्यों होते जा रहे है ?
उनके अंदर का चैतन्य जागृत करने में हम विफल हो रहे है ? सदियों के जघन्य अत्याचार सहने के बाद भी समाज इतना निद्रीस्त क्यों है ? उन्हें तेज गती से और चौफेर रणनीति द्वारा जागरूक करने में हम विफल क्यों होते जा रहे है ?
या फिर समाज मन का अभ्यास करने में ही हम विफल हो रहे है ? उसकी अंदरूनी तडप समझने में ही हम विफल हो रहे है ?
*अगर हाँ तो ?*
*निती तो बदलनी ही पडेगी !* *तेज गति से समाज परिवर्तन* *की तगडी रणनीति* *तो बनानी ही पडेगी !*
*यशस्वी रणनीति द्वारा* *सामाजिक बदलाव तो लाना ही* *पडेगा !*
सबकुछ विकास के मुद्दों पर ही निर्भर रहना भी उचित नहीं होगा ! भावनिक मुद्दा भी उठाना पडेगा ! रामलहर तो बन गई ! मगर उसे मतदान प्रक्रियाओं में बदलने में हम आखिर विफल क्यों रह गये ? विपक्षियों की यशस्वी काट की रणनीति समझने में भी हम असफल क्यों रह गये ?
संपूर्ण देश मेंआज तेजीसे विनाशकारी शक्तियों का बल बढ रहा है ! इसको सख्ती से और तेजीसे रोकने की हमारे पास कौनसी यशस्वी रणनीति तैयार है ?
देश के लिए कुछ कर दिखाने की क्षमता रखने वाले मेरे जैसे अनेक कार्यकर्ता आज भी अंधेरे में भटक रहे है ! उनके अंदर देश का भाग्य बदलने की क्षमता होकर भी उनकी संपूर्ण शक्तियों का लाभ उठाने में भी हम विफल क्यों होते जा रहे है ?
ऐसे हजारों कार्यकर्ता हो सकते है जिन्हें सचमुच में केवल एक प्रकाश किरण की जरूरत है !
उनकी आत्मीय शक्ति को एक मौका चाहिए , एक किरण चाहिए !
आयाराम गयाराम पर विश्वास रखने से बेहतर यही होगा की , योग्यता पूर्ण तथा क्षमता पूर्ण व्यक्तीयों के पूर्ण क्षमता को प्रोत्साहित किया जाए !
गली गाँव शहरों में वैचारिक मंथन द्वारा सामाजिक परिवर्तन लाने में तथा वैचारिक क्रांति लाने में भी हम यशस्वी क्यों नहीं हो गए ? संपूर्ण संसाधन और लाखों कार्यकर्ताओं की फौज हमारे पास होकर भी ? क्या नेतृत्व ही कम पड गया ? या फिर समाज मन ही मृतप्राय ,चैतन्यशून्य , हतबल हो गया ?
तो अमृत प्राशन द्वारा समाज को नवसंजिवनी देने में भी हम विफल क्यों हो गए ?
या फिर इतने शक्तिशाली भूमि में अमृत देनेवाला ही कोई नहीं मिला ?
*सोचो !*
एक छोटेसे गाँव का छोटासा उदाहरण देता हूं !
एक छोटेसे गाँव में एक दो प्रतिशत राष्ट्रविघातक शक्तियाँ अंडरग्राउंड से ,सभी को धोखे में रखकर सक्रिय रहती है ! उनका असली चेहरा समझने में संपूर्ण समाज असफल रहता है ! उल्टा ऐसी शक्तियों की जबरदस्त और तगडी रणनीति द्वारा हमारा ही संपूर्ण समाज इनकी मिठी मिठी बातों के बहकावे में आता है और हमारे ही राष्ट्रप्रेमीयों का बैरी हमारा ही समाज बनता है !
तो ऐसा दृष्य बदलने में हमारे शक्तिशाली संगठन धाराशायी क्यों हो गये ? क्यों नहीं राष्ट्रविघातक शक्तियों की रणनीति समझ नहीं सके ? और इसकी काट भी क्यों नहीं निकाल सके ?
सावरकरजी का उदाहरण इसके लिए पर्याप्त है ! सावरकरजी के प्रति सामाजिक सौहार्द जमीनी तौरपर बदलने में हम असफल क्यों हो गए ?
क्यों हमारे पास इसकी तगडी काट नहीं है ? जमीनी तौरपर यशस्वी रणनीति बनाने में और तगडी काट देने में हम आखिर यशस्वी क्यों नहीं हो सके !
हैवानियत धीरे धीरे अपनी शक्तियों को बढाकर सामाजिक विध्वंस की ओर बढती है , ऐसी उन्मादी शक्तियों के बारे में समाज मन जागृत करने में भी हम विफल क्यों हो गए ?
विचारवंत व्यक्तीयों को मेरे इस लेख का तथा लेख के हर एक शब्द का गहराई से अध्ययन करना होगा !
एक विराथू बर्मा को बचाता है !
मगर हमारे हाथ में भगवत् गीता होकर भी आखिर हम विफल क्यों ?
आखिर हमारी रणनीति कहाँ कम पड रही है ?
गहराई से विचार मंथन करके विपदाओं की भयंकर घडी में यथोचित रास्ता तो निकालना ही होगा !
और ईश्वर निर्मित सत्य की ,सत्य सनातन की , आदर्श सिध्दातों की , उच्च कोटि के संस्कृति और सिध्दातों की रक्षा तो करनी ही होगी !
*वैश्विक मार्गदर्शन करके*
*संपूर्ण विश्व को ही*
*सही रास्ता दिखाने की*
*संपूर्ण क्षमता रखने वाला*
*सत्य सनातन धर्म आज*
*चारों तरफ से वैफल्यग्रस्त क्यों ?*
*काट तो निकालनी ही होगी !*
*तगडी और यशस्वी रणनीति* *द्वारा संपूर्ण* *सामाजिक क्रांति अभियान*
*तेज करना ही होगा !*
*जय श्रीकृष्ण !!*
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