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आत्मघाती समाज ???

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क्या हिंदु समाज आत्मघाती है ?
( एक चिंतन ! )
✍️ २१९४

विनोदकुमार महाजन
—————————-
अगर आपको लेख पढने के लिए समय है तो जरूर पढीये !
समय नहीं है तो भी कोई बात नहीं है ! क्योंकि लेख थोड़ा लंबा भी हो सकता है !

मेरा विवेचन और विश्लेषण सटीक होगा ऐसी आशा करता हुं ! और इसी विषय के अनुसार,
” क्या हिंदु समाज आत्मघाती है ? ”
यह मेरा प्रश्न आपको यथोचित लगता है ?
इसी विषय पर चिंतन करने के लिए, यह लेख लिखने का उद्देश्य है !
अगर मेरा प्रश्न सही है तो,इससे संबंधित एक महत्वपूर्ण प्रश्न –
” क्या एक समय ऐसा भी था की,जब संपूर्ण विश्व पर केवल हिंदुओं का ही राज्य था ? ”
( क्योंकि इसके अनेक प्रमाण आज भी उपलब्ध है ! )
【और सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न,
” क्या भविष्य में ,फिरसे एकबार, संपूर्ण विश्व पर,हिंदुओं का ही राज्य आयेगा ? ” 】

अगर संपूर्ण विश्व पर केवल हिंदुओं का ही राज्य था,
जी हाँ…तो…?
आखिर हिंदुओं की इतनी भयंकर क्षति क्यों और कैसे हो गई ?
क्या हिंदु केवल आत्मघात ही करना चाहता है ?

कैसे ?
अगर संपूर्ण विश्व पर केवल हिंदुओं का ही राज्य था तो ? आज संपूर्ण विश्व में हिंदुओं का एक भी देश क्यों नहीं है ?
सदीयों से धर्म के प्रती उदासीनता ? अज्ञान ? अंदर के सत्तालोलूप स्वार्थी धर्मद्रोही ? आपसी तालमेल का अभाव ?
समाज जागृती के लिए, प्रभावी पिठों का अभाव ?
( पाँवर बैंक )
सामाजिक एकजुटता का अभाव ? पलायनवाद ? संपत्ति कमाने की होड में धर्म के प्रती जागरूकता का अभाव ?जातीयता ? और विनाशकारी अहंकार ?
मुझसे बडा कौन ? ऐसी घातक वृत्ति और समाज बांधवों को,उनके मुसिबतों के समय में सहयोग करने के बजाए, उनकी उपेक्षा करना, उनको ही पीडा देना,और परपीडा देने में ही धन्यता मानना !
ऐसी विनाशकारी मानसिकता ?
क्या ऐसे ही कुछ कारण है या और भी अनेक कारण हो सकते है ! जिसके कारण हिंदुओं को सदैव पिछे हटना पड़ा ?

अगर हमारा कोई हिंदु भाई,बडे हिम्मत से, अनेक मुसिबतों का सामना करते करते, हिंदुत्व की शक्ति बढाने के लिए, छोटासा प्रयास अगर कर रहा है तो…?
उसकी शक्ति बढाने के बजाए,
उसको प्रोत्साहित करने के बजाए, उल्टा उसे ही हतोत्साहित करनेवाले, उसे ही अपमानित करनेवाले, उसके मनोधैर्य को समाप्त करने की कोशिश करनेवाले, उसको ही गिराने वाले,क्या जादा मात्रा में हमारे ही लोग मिलेंगे ?

कैसे ?
अगर आज का ताजा उदाहरण देखेंगे तो क्या दिखाई देगा ?
अगर मोदिजी, योगीजी हिंदुत्व की रक्षा करने के लिए, दिनरात, लगातार, अथक मेहनत कर रहे है, उनकी सहायता करने के बजाए, हमारे ही कुछ नतदृष्ट,दुष्ट हिंदु, अगर मोदिजी, योगीजी के कार्यों में बाधा, विघ्न डालते रहेंगे, उनका रास्ता रोकने की कोशिश करेंगे, उनको ही बदनाम करते रहेंगे, दिनरात यही एजेंडा चलायेंगे तो क्या ?

हिंदुओं को आत्मघाती कहना गलत होगा ?
बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री जी जैसे अनेक महात्माओं की शक्ति बढाने के बजाए, हमारे ही नतदृष्ट हिंदु उनके कार्यों में निरंंतर बाधा डालते रहेंगे, दिनरात ऐसी ही कोशिश करते रहेंगे तो क्या ?
हिंदुओं को आत्मघाती नहीं कहा जा सकता है ?

हिंदवी स्वराज्य निर्माता
राजे शिवाजी की शक्ति बढाने के बजाए, हमारे ही लोग,उस ईश्वरी कार्य में बाधा डालेंगे तो…?
यह हिंदुओं का आत्मघात नहीं है ?

संत ज्ञानेश्वर, संत तुकाराम जैसे अवतारी पुरूष, सनातन संस्कृति को आगे बढाने के लिए ही अवतरित हुए थे !
उनकी शक्ती,उनका आत्मबल बढाने के बजाए, उन्हें ही रूलाने वाले,पीडा देनेवाले हिंदु ही होंगे तो…
यह हिंदुओं का आत्मघात नहीं है ?

फिर ऐसे अनेक महात्मा, अनेक विपरीत परिस्थितियों का सामना करते करते,स्वकियों के साथ लडते लडते आगे ही बढते रहे !
और हिंदुत्व का,सनातन धर्म का भगवा झंडा उंचाईयों तक पहुंचाकर ही रहे !
स्वकियों के अन्याय, अत्याचार से तंग आकर, उन्होंने धर्म त्याग करके दूसरा धर्म नहीं अपनाया !

यह होता है विरत्व !
यह होता है शूरत्व !

हमारे आत्मघाती, विकृत, विनाशकारी मानसिकता वालों ने, धर्मद्रोहियों ने भी आजतक धर्म का भयंकर नुकसान ही किया हुवा है !
इसी कारण,मानसिक उत्पीड़न के कारण,हमारे ही कुछ लोग,हमसे सदा के लिए,दूर चले गये ! हमारे आदर्श धर्म को उन्होंने इसी कारण त्याग भी दिया ! और दूसरे धर्म ( ? ) का
सहारा लिया ?

पैसों की तंगी और पैसों के लालच से अनेकों ने धर्म परिवर्तन किया !
तब हमारे धर्म के धनाढ्य कहनेवाले लोग ( ? ) उनको बचाने के लिए, आखिर आगे क्यों नहीं आये ?

तलवार के डर से अनेक बार धर्म परिवर्तन होने के बावजूद भी,इसको रोकने के लिए, संपूर्ण समाज एकजूट क्यों नहीं हो गया ?

संत ज्ञानेश्वर, संत तुकाराम जैसे महान आत्माओं का जब भयंकर मानसिक उत्पीड़न हो रहा था, उन्हें भयंकर पीडा दी जा रही थी ( हमारे ही लोगों द्वारा ) तब ऐसे महान संतों को बचाने के लिए, उन्हें आधार, सहारा देने के लिए, हमारे ही धर्म के लोग,व्यक्ति आगे क्यों नहीं आये ?
एक भी नहीं था ? उन्हें आधार देनेवाला ?
ऐसा क्यों ?

क्या हमारा ही समाज सचमुच में आत्मघाती ही है ? जो विपरीत परिस्थितियों में, विपदाओं में महापुरुषों को भी आधार नहीं दे सकता था ?
उल्टा उनकी भयंकर दुर्दशा का तमाशा हमारा ही समाज दूरसे बडे मजे से देखता रहता है ?
आज भी ?
क्यों ?
क्या हमारा समाज आत्मघाती है ?

अगर हाँ,तो इसका इलाज क्या है ? हल क्या है ?

और एक भयंकर उदाहरण देता हुं ! कश्मीर का एक हिंदु भाई था ! उसका मानसिक उत्पीड़न हमारे ही लोगों द्वारा, इतना भयावह तरीकों से किया गया की,वह बेचारा हतबल हो गया !
हिंदुओं के प्रती उसके मन में भयंकर घृणा सी बैठ गई !
और उसने मानसिक उत्पीड़न से तंग आकर, मुस्लिम धर्म का स्विकार किया !
और वह इतना भयंकर क्रूर हो गया की,मुस्लिम शासकों द्वारा, उसने अनेक हिंदुओं की हत्याएं की,और अपमान का प्रतिशोध लिया !

ऐसा क्यों ?

तो क्या हिंदु धर्म अवलंबियों की मानसिकता आखिर आत्मघाती ही है ?

मैं भी हिंदुत्व जागरण का एक छोटासा प्रयास निरंंतर करता रहता हूं ! मुझे प्रोत्साहित करनेवाले भी अनेक मित्र भी मिल गये !मगर कुछ लोगों ने प्रोत्साहित करने के बजाए, मुझे ही रूलाने की लगातार कोशिश करनेवाले,मुझे निचे दिखाने वाले और निचे गिरानेवाले भी,अनेक हिंदु ही मिले है !

बारबार !

हिंदुत्व की जीत का छोटासा प्रयास करने के लिए, और उसमें यशस्वीता हासिल करने के लिए, तथा सहायक ईश्वरी वरदान प्राप्त करने के लिए, मैं जब कठोर तपस्या कर रहा था,तो भयंकर यातना, पीडा,आत्मक्लेश, दुखदर्द देनेवाले ,रूलाने वाले भी मेरे अपने ही थे !
हिंदुही थे !

तो क्या हिंदु समाज आत्मघाती है ?

मैं ऐसा कदापी नहीं कहुंगा की,
सभी के सभी हिंदु आत्मघाती ही होते है ! धर्म के लिए मर मिटने वाले भी बहुत कुछ व्यक्ति मिलेंगे भी !

मगर सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यही है की,जब हमारा कोई हिंदु भाई भयंकर मुसिबतों के दौर से गुजर रहा होता है, तो उसे सहायता करनेवाला, सहयोग करनेवाला, एक भी महात्मा आगे क्यों नहीं आता है ?
सब के सब मूकदर्शक और दूरसे तमाशा देखने वाले ही क्यों होते है ?
आज भी यही वास्तव है !
जी हाँ !

जरा ,
” दुसरों की भी एकता देखो ? ”
एक फोन काँल पर हजारों जमा होते है !
” और हमारे ? ”
कितने जमा होंगे हमारे मुसिबतों में ? एक अनुत्तरित प्रश्न !
हमारे लोग सहायता करना दूर की बात,दूर भाग जाते है !
शत्रूओं को भी जाकर मिलते है !
क्या मेरी बातों में सच्चाई है ?
या फिर मैं ही गलत लिख रहा हूं ?

आखिर ऐसा क्यों ?
ऐसी भयंकर विनाशकारी मानसिकता क्यों ?

क्या हमारा समाज आत्मघाती है ?
क्या उत्तर है आपके पास ?
मोदिजी, योगीजी ही क्या ?
प्रत्यक्ष ईश्वर भी आयेगा ना ?
और शायद,वह भी मुसिबतों में फँस जायेगा ? तो ?
हमारे ही लोग, उस ईश्वर को भी पीडा, दुखदर्द देंगे ! ईश्वर को भी रूलायेंगे !ईश्वर को भी भगाएंगे !
उपर से हँसी मजाक से तमाशा देखते रह जायेंगे !

मगर सहायता करने के लिए ?
कोई भी आगे नहीं आयेगा !

ऐसी भयंकर विनाशकारी मानसिकता का आखिर उत्तर क्या है ?
ऐसी मानसिकता सदीयों से है…तो ?

हिंदुराष्ट्र कैसे बनेगा ?
कौन बनायेगा ?
कौन आगे आयेगा ?

और ऐसी भयंकर विनाशकारी मानसिकता बदलने का सर्वश्रेष्ठ उपाय आखिर क्या है ?
रामबाण इलाज क्या है ?

साथीयों,
गहन चिंतन का विषय है !
इसपर विस्तृत विश्लेषण, विवेचन होना जरूरी है !

हिंदुराष्ट्र की माँग करने से कुछ नहीं होगा ! कुछ भी नहीं !
सबसे पहले समाज की मानसिकता बदलनी पडेगी !
और इसके लिए, धरातल पर, ठोस उपाय क्या होगा ,इसपर विचार विमर्श होना जरुरी होगा ?

या फिर ?
क्रूर तानाशाह शासक बनकर ही ऐसी भयंकर जटिल समस्याओं का उत्तर ढूंढना पडेगा ?

उत्तर तो आपको देना है !
अगर मेरा प्रश्न सही है तो !
और यथोचित परिणाम के लिए, अपेक्षित रणनीति भी बनानी पडेगी !
आखिर कौनसी रणनीति काम आयेगी ?
जो अधर्मीयों के नंगानाच को रोक सकेगी ? जो देश का अराजक तुरंत हटा सकेगी ?
जो गुनहगारों को तुरंत कठोर दंडित कर सकेगी ?
जो सभी को आदर्श रामराज्य की ओर ले जायेगी ?
सभी का रक्षण और कल्याण कर सकेगी, ऐसी कौनसी निती होगी ?

कौन बताएगा ?

देर होगी तो…?
” उ न का मिसन सैंतालीस ”
पक्का है,इस बात को नोट किजिए !
कौन रोकेगा , ” उनका मि स न सैंतालीस ? ”

अगर पूरा लेख पढा भी होगा तो उत्तर तो देना ही पडेगा !

जय श्रीराम!
हरी ओम् !

🙏🕉🚩🙏🕉🚩🪷

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