पागलों के गुलाम !
✍️ २१७३
विनोदकुमार महाजन
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पागलों के गुलाम !
कौन ?
अनेक भारतीय !
कैसे ?
पढे विस्तार से !
भयंकर क्रूर,अंधे,अधर्मी, हत्यारे, लुटेरे… हिंसक धर्मप्रचारक आक्रमणकारी !
जिन्होंने इस देशपर क्रूरतापूर्वक राज किया !
उन्हीं क्रूर लुटारूओं के,हत्यारों के नाम आज भी हमारे गली, गाँव शहरों को लगाये गये है !
कलंक !
और आज भी अनेक भारतीयों को इससे कुछ लेना देना नहीं है !
जिन्होंने पागलों की तरह, हमारे देश, धर्म, संस्कृति पर हमले किए,उनका धर्म बढाने के लिए
” वह सभी हैवान ”
पागल हो गए, उन…
” पागलों के गुलाम “…
” कुछ भारतीय बन गये ! ”
आज भी !
सरेआम गुलामी !
अनेक आक्रमणकारियों ने,लुटेरों ने, हमारे उत्सव, त्यौहार बंद किए…
उन पागलों के हम गुलाम हो गए !
क्योंकि हमारे महान उत्सव, त्यौहार भूलकर हम…
वैलैंटाईन डे,हैप्पी बर्थडे जैसे अनेक ( कु ) त्यौहार बडे आनंद से अनेक भारतीय बढ चढकर मनाने लगे !
निरांजन लगाकर, दिपक जलाकर,औक्षण करके,आयुष्मान भव कहने के बजाए…
हम अंधे,पागल बनकर, दिपक ( मोमबत्तियां ) बुझाने लगे और…?
बडे आनंद से केक काटकर,बडे धूमधाम से,
” हैप्पी बर्थडे टू यू ”
कहने लगे !
बडी बडी पंचतारांकीत पार्टीयां भी देने लगे !
अंधे,बहरे,गूंगे !
हमारे संस्कृति को बरबाद करनेवाले, क्रूर शासक और बरबरता दिखाने वाले ,अधर्मी पागलों के भी हम गुलाम बन गये !
” पागलों के पागल गुलाम ! ”
हमारे हर्षोल्लास निर्माण करनेवाले बडे बडे उत्सव, त्यौहार मनाना हम ही, धीरे धीरे भूलते जा रहे है !
विडंबना !
संध्या समय की,
” शुभं करोती कल्याणम्…
आरोग्यं धन संपदा…” जैसी महान मंगलकारी,
सायंप्रार्थना भी भारतीय समाज भूलता जा रहा है !
और ? सायंप्रार्थना की जगह..?
समाज में विद्वेष फैलाने वाली,परिवार तोडऩे वाली,
अनेक टिवी धारावाहिक देखने में ही…
धन्यता मानने वाला…
विकृत समाज निर्माण हो गया !
हमारी संस्कृति,आदर्श सिध्दांत,आदर्शवाद, महानता, सर्वांगसुंदर व्यापकता ही हम धीरे धीरे भूलते गये !
व्यापक, दयालु मन भी संकुचित बनता गया !
देवीदेवताओं को भूलकर,
फिल्मस्टार हमारे आदर्श बनते गये !
आखिर हम कहाँ से, कहाँ तक पहुंच गये ??
और संस्कृति पुनर्निर्माण के लिए अब कितना भयंकर प्रयास करना पडेगा ?
सोचिए साथीयों !
हम तेजस्वी ईश्वर पुत्र थे !
और आज,
” पागलों के गुलाम बन गये ! ”
हमारा सत्व,तत्व, स्वाभिमान ही लगभग मर सा गया !
आक्रमणकारी,क्रूर हत्यारे,लुटेरे इनके नाम का,हमारे गली, गांव, शहरों का, लगा हुवा कलंक भी हम…
नहीं मिटा सकते है !
इतने सत्वशून्य हम कैसे बन गये ?
हमारा ईश्वरी तेज हम क्यों भूल गये ?
तेजस्वी ईश्वर पूत्र होने के बजाए,
आक्रमणकारियों के गुलाम हो गये !
क्यों ?
क्योंकि धन कमाने के चक्कर में, माया के चक्कर में, मोहमाया के मृगजल में हम बुरे तरह से फँस चुके है !
हमारे आदर्शवादी देवीदेवताओं को,महापुरुषों को,हमारे धर्म – संस्कृति को हम भूल गये है !
रोजी रोटी के चक्कर में हमने आदर्श ईश्वरी सिध्दांतों का त्याग किया है !
और ?
आसुरों के,पागल आसुरों के,पागल धर्म प्रचारकों के हम गुलाम बन गये है !
साथियों,
उठो…आत्मपरीक्षण और आत्मनिरीक्षण करके हम फिरसे, तेजस्वी बनते है !
स्वाभिमानी बनते है !
फिरसे हमारे देवीदेवताओं का तेज,हमारे आदर्श धर्म ग्रंथों का सिध्दांत हम स्विकारते है !
शूरवीर बनकर हमारे संस्कृति को पुनर्जीवित और पुनर्स्थापित करते है !
विश्व के कोने कोने में हमारे आदर्श दैवीय सिध्दांत, बडे प्रयत्नपूर्वक पहुंचाते है !
” व्यापक जनहित आंदोलन द्वारा “… मन मन जगाते है !
उन सभी के अंदर का आत्मतत्व, दिव्य तेज,दिव्यानुभूति जगाते है !
उनके अंदर का मरा हुवा चैतन्य, ईश्वरी तेज फिरसे जगाते है !
चलो उठो !
क्यों ?
क्योंकि मानसिक गुलाम हो गये है !
सब के सब मानसिक गुलाम हो गये है,ऐसा नहीं लिख सकूंगा ! क्योंकि ऐसे भयंकर
” कलंक को ” हटाने का भी अनेक महात्माएं,अनेक सालों से प्रयास कर रहे है !
ईश्वर ऐसे पुण्यात्माओं को जल्दी से जल्दी यश दें,ऐसी प्रभुचरणी प्रार्थना !
मुझे पता है,
मेरा इस कार्य का यह सोशल मीडिया का प्रयास अत्यल्प है !
फिर भी मेरा प्रयास दिनरात जारी है !
एक छोटासा गीलहरी का प्रयास !
सभी का आत्मतेज, आत्मसंन्मान,स्वाभिमान, ईश्वरी तेज,चैतन्य जगाने का मेरा प्रयास निरंंतर जारी है !
इसे विश्व व्यापक बनाने के लिए, हमारी आवाज बुलंद करने के लिए, आप सभी का प्रेम,सहयोग और आशिर्वाद चाहिए !
साथियों,
मेरे जैसे अनेक हजारों – लाखों, तन – मन – धन समर्पित कार्यकर्ता, हमारे आदर्श ईश्वरीय सिध्दांतों को विश्व विजयी बनाने का दिनरात, अखंड प्रयास कर रहे है !
उन सभी का साथ लेकर आगे बढते है !
और कामयाब भी होते है !
चलो उठो !
मानसिक गुलामी त्याग दो !
पागलों के गुलाम बनना छोड दो !
और ?
हमारे संस्कृति का,आदर्शों का,दैवीय सिध्दांतों का,आदर्श ईश्वरी सिध्दांतों का स्विकार करो !
हरी ओम्
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