दिशाहीन मानव ?
( लेखांक : – २१२७ )
विनोदकुमार महाजन
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हर जगह पर होड लगी है मानव प्राणी की दौडने की !
बसें दौडती है,ट्रेन दौडती है,हवाई जहाज दौडते है,कार – मोटर साईकिल दौडती है ?
आखिर मानव क्यों दौड़ रहा है ?
किसके लिए दौड रहा है ?
दिनरात एक करके,क्यों मेहनत कर रहा है ?
पेट के लिए ?
भोजन के लिए ?
पैसा कमाने के लिए ?
करोड़ों रूपये का धन इकठ्ठा करने के लिए ?
ऐशोआराम का जीवन जीने के लिए ?
आखिर दौडने की वजह क्या है ?
आखिर क्या कमाना चाहता है मानव ?
नाम,यश,किर्ती, धनदौलत ?
या और भी कुछ ?
या आत्मसंन्मान,आत्मसंतुष्टि, समाधान ?
आखिर चाहिए ही क्या मनुष्य प्राणी को ?
क्यों करोड़ों, अब्जो रूपये कमाना चाहता है इंन्सान ?
किसके लिए ?
खुद के लिए ?
या दूसरों के लिए ?
अगर मन की आत्मसंतुष्टि है तो..दो वक्त की रूखी सुखी रोटी और रहने के लिए एक झोपड़ी भी काफी है !
मगर मन की संतुष्टि ही नहीं है तो करोड़ों का धन,करोड़ों का राजमहल, करोड़ों की माया ,करोड़ों के गहने भी सुख की, चैन की नींद नहीं आने देती है !
तो आदमी को,इंन्सान को,मानवप्राणी को आखिर कौनसा सुख चाहिए ?
करोड़ों में रहकर मन आनंदित करनेवाला, या फिर गरीबी में भी रहकर, वैराग्य धारण करके,उच्च आत्मसंतुष्टि से आनंदित जीवन बिताने वाला ?
और आखिर जीवन का उद्दीष्ट क्या है,अंतिम लक्ष क्या है, मनुष्य आखिर क्या चाहता है ?
और क्यों दौड रहा है ?
सत्य की खोज में ?
आत्मा की खोज में ?
परमात्मा की खोज में ?
जीवन का उद्दीष्ट और अंतिम सत्य खोजने के लिए दौड रहा है ?
धन – वैभव,मेरा – तेरा,मोह – माया,सोना – चांदी, हिरे – जवाहरात, सोने का राजमहल या इससे भी बढकर और कुछ चाहिए ?
या केवल पापी पेट का सवाल है ?
जीवन का अंतिम उद्दीष्ट क्या है आखिर ?
जनम लेना,चार पैसे कमाना, शादी करना, घर खरिदना,दो – तीन बच्चे पैदा करना,और एक दिन मर जाना !
या यही एकमात्र जीवन का उद्दीष्ट है ?
मनुष्य प्राणियों के व्यतीरीक्त बाकी सजीवों का जीवन देखेंगे तो क्या दिखाई देता है ?
ना मोह है,ना ईर्ष्या है !
ना धन लालसा, ना सोने के राजमहल की अपेक्षा !
ना दो वक्त की रोटी की चिंता !
ईश्वर ने, कुदरत ने जैसा जीवन दिया वैसा मस्त,आनंदी, कलंदर जीवन !
ना ज्ञान की अभिलाषा, ना आत्मोद्धार की परिभाषा !
ना ईश्वर प्राप्ति की अभिलाषा !
पैदा होना, और एक दिन मर जाना !
देह बदलते बदलते अनेक योनियों के चक्कर लगाना !
तो इन सभी प्राणियों से मनुष्य प्राणी हटकर है ?
उसका जीवन अलग है ?
सभी प्राणियों से हटकर है ?
अगर हटकर है तो…
मनुष्य प्राणी का जीवन केवल पैदा होना, चार पैसे कमाना,खावो – पिवो ऐश करो,और एक दिन मर जाना…
क्या मनुष्य प्राणी का जीवन भी दूसरे प्राणीयों की तरह…
इतना ही सिमीत है ?
या फिर और भी कुछ मनुष्य जन्म का उद्देश्य है ?
आखिर हम पृथ्वी पर मानवी देह धारण करके आये ही क्यों है ?
हमारे जीवन का उद्दीष्ट, मकसद, अंतिम साध्य आखिर क्या है ?
वैश्विक मानव के लगभग नब्बे प्रतिशत लोगों का जीवन निरर्थक, अर्थहीन, दिशाहीन सा बन गया है !
अनेक लोगों को हम पैदा क्यों हुए है ?
इसका उद्दीष्ट ही पता नहीं है !
भूलें भटके लोग !
ईश्वरी सिध्दांतों से काफी दूर गये हुए लोग !
मरे हुए मन से जीने वाले लोग !
केवल पैसा, धन,वैभव, यश,किर्ती, आत्मसंन्मान, के ही पिछे भागने वाले लोग !
और इन सभी का निरर्थक जीवन !!!
तो दूसरे सजीवों में और मनुष्य प्राणियों में फर्क ही क्या रहा ?
पैदा होना और मर जाना !
तो असली जीवन क्या है ?
मानवी देह का उद्दीष्ट क्या है ?
मनुष्य योनियों में हमें भेजने का ईश्वर का उद्देश्य क्या है ?
यह बात तो लगभग सभी इंन्सान तो भूल ही गया है ?
मेरे अंदर आत्मा है, और वह आत्मा निरंतर श्वासों द्वारा ईश्वर से जूडी हुई है…
यह मूल सिध्दांत ही लगभग सभी मानवप्राणी भूल गया है !
आत्मोध्दार से ईश्वर प्राप्ति !
और नर का नारायण, और नारी की नारायणी बनकर, सृष्टि का अखंड कल्याण, यह बात लगभग सभी मानवप्राणी भूल गया है ?
आपको क्या लगता है ?
मानवप्राणी दौडता और दौडता रहा है !
दिनरात !
क्यों ? किसके लिए ?
परोपकार, दया, क्षमा, शांति, ईशत्व द्वारा सभी प्राणीयों का अखंड कल्याण तथा धरती को भी स्वर्ग जैसी सुंदर बनाने के लिए का,निरंतर प्रयास…
शायद यह बात ही लगभग सभी मानव भूलता जा रहा है ?
वैयक्तिक स्वार्थ, लोभ,मोह,मद,मत्सर, निंदा इसी में ही फँसता जा रहा है ?
परिणाम ?
हाहाकार !
चारों तरफ विनाषकारी और भयंकर अधर्म का आडंबर !
और ” अंदर – बाहर ” से भयंकर धर्म संकट !
और उत्तर ?
शायद ना के बराबर !
क्या आज पृथ्वी निवासी मानवप्राणी दिशाहीन है ?
अध्यात्म, आत्मतत्व, ईश्वरी सिध्दांतों से काफी दूर जा रहा है ?
ईश्वरी चिंतन, नामस्मरण, गुरूमंत्र जाप,अध्यात्म, पूजा पाठ करनेवाला ही केवल सही रास्ते पर चल रहा है ?
और बाकी ?
ईश्वरी सिध्दांतों को भूलने वाले,अथवा इसको मिटाने की कोशिश करनेवाले ?
ऐसे लोग आखिर साध्य क्या करेंगे ?
हरी ओम्
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