दुखदर्द में साथ निभाए,वही दोस्त होता है…
दुखदर्द केवल उसी को ही बताए जो हमारा दुखदर्द समझ सके और योग्य रास्ता भी दिखा सके।
हमारा उदास चेहरा देखकर ही जिसका ह्रदय पिघल जाता है,और दो शब्दों का आधार देता है….
वही असली रिश्ता होता है।
मुसिबतों में साथ निभाएं,वही दोस्त कहलाएंगे।
जो मुसिबतों में दूर भागेंगे और दूर से तमाशा देखेंगे,ऐसे दोस्त कैसे होंगे ? और रिश्तेदार भी कैसे होंगे ?
ऐसे रिश्ते कहाँ मिलेंगे ?
दुखदर्द, अंदर की वेदना, पिडा उसी को ना बताए की,
तुम्हारा दुखदर्द देखकर वह अंदर ही अंदर खुश हो जाएं।
परखकर दोस्ती करेंगे
तो ही मुसिबतों से दूर रह सकेंगे।
अन्यथा मनस्ताप और पश्चाताप के सिवाय हाथ में कुछ भी नही लगेगा।
हरी ओम्
विनोदकुमार महाजन