Mon. Sep 16th, 2024

” पिता “सबकुछ बरबाद कैसे कर सकता है ???

Spread the love

*फिर भी तु संत कैसे बन गया ?*
( यह कोई व्यक्ति विशेष का उपरोध,विरोध या उपहास नही है,बल्कि सत्य कथन द्वारा समाज जागृती का प्रयास है।कानूनी विपरीत परिस्थिति निर्माण ना हो इसिलिए इसमें किसी व्यक्ति विशेष का उल्लेख टाल दिया है।बाकी मेरे समस्त देशवासी तथा राष्ट्राभिमानी इसका यथोचित मतितार्थ समझने में समर्थ होंगे,ऐसी आशा करता हुं। )
👇👇👇
ऐसा कैसे तुने संत पद धारण किया ?
सत्य, ईश्वरी सिध्दांतों को उखाड़ फेंकने का इसके आड में तुने क्यों नाटक किया ?
अहिंसा के नाम पर हिंसक व्यक्ति, समाज, समुह को तुने क्यों आगे किया ?
और सत्य वादियों को क्यों तबाह, बरबाद, नेस्तनाबूद किया ???
ऐसा खेला तुने क्यों किया ?
इतना भयंकर, भयानक, भयावह धोका,विश्वासघात, दगा,कपट,छल तुने भोलेभाले देशवासियों के साथ बारबार क्यों किया ?
सत्य और अहिंसा के नाम पर तुने असत्य और हिंसा का बीज क्यों बोया ?
जानबूझकर तुने देश बरबाद क्यों किया…???
फिर भी तु संत कैसे बना ?
बेईमानी, फरेब, धोकाधड़ी करनेवालों के हाथों में देश का पूरा कारोबार दिया।
और इमानदार, सत्य प्रिय,सिध्दांतों पर चलने वालों को तुने धिरे धिरे समाप्त क्यों किया ???

अगर आसुरों का रखवाला शुक्राचार्य ही बनना था,
तो खुलेआम बनते मगर तुने तो
खुलेआम ईश्वरी सिध्दांतों पर चलने वालों के पीठ में बेरहमी से खंजर घोंप दिया।

तुने ऐसा क्यों किया ???
जब जनता जागृत, सुजान बनेगी, अज्ञान का पर्दा उनके आँखों के सामने से उठेगा
तो….???
तेरे तत्वों पर लोग,समाज, सत्य प्रिय, सत्यवादी थूकने लगेंगे।
और तेरे साथ मिलकर जिन्होंने देश के साथ विश्वासघात किया है….
तो यही ज्ञानी समाज
फिरसे तेरे ,तुम्हारे मुर्ती के सामने खडे होकर,
सचमूच में पूजा करेंगे ?

ईश्वर को फँसाने वाली बूरी आत्माओं को ईश्वर भी क्षमा नही करता है,
ईश्वरी कानून के अनूसार तू तो एक विश्वासघाती है…
और उसके दरबार में तुझे कौनसी सजा मिल गई होगी
यह भी पता नही…
पर इतना तो पक्का है की तुझे मोक्ष तो कतई नही मिला होगा।

कई बार ईश्वर पापीयों को,अतृप्त आत्माओं को पिशाच योनी में धकेलता है…
अथवा गंदी नाली का किडा बनाकर विश्वासघात की सजा दिलाता है।

आखिर, अभी तु कहाँ है ?
और सचमुच मैं तु संत कहने के योग्य भी है ????

अगर तेरी आत्मा अश्वथामा की तरह अदृष्य होकर आसमान में घुमती है…
तो तेरे आत्मा को ही तु मेरा यह प्रश्न पूछ ले..।
क्या देश को,सत्य को बरबाद करने का,
ईश्वर का नाम लेकर ईश्वर को ही फँसाने का घोर अपराध तुने आखिर क्यों किया ???
उत्तर तो देना ही होगा।

अगर अश्वथामा उसके पापों की सजा ईश्वरी इच्छा से भूगत रहा है और इसके अनेक प्रमाण भी आज भी मिलते है
तो….
*राम की कसम*
सत्य का रखवाला कहने वाले संत बनकर देश को गुमराह करनेवाले
तुझे अश्वथामा की तरह अनेक युगों तक अपनी जख्म माथे पर लेकर अदृष्य रूप से
पापों का प्रायश्चित तो भोगना ही पडेगा।

अज्ञान,भोलेभाले इंन्सान कुछ समझे न समझें।
ईश्वर सब समझता है ।

मेरे जैसे अनेक,लाखों,करोड़ों, पुण्यआत्माओं का श्राप कभी भी तेरा पिछा नही छोडेगा।
अश्वथामा को दिपावली के दिनों में अपनी जख्मों पर दिये का तेल लगाकर जख्म शांत करने का अधिकार ईश्वर ने दिया है।तुने तो यह अधिकार भी खोया है।

एक ” पिता ” नाम धारण करके संपूर्ण राष्ट्र को बरबाद कैसे कर सकता है ? ( सोचनीय )

आज तेरा नाम लेने से भी सत्य प्रीय व्यक्ति घृणा करते है।इतना भयावह षड्यंत्र तुने किया है।
आशा करता हुं,मेरी आत्मा की आवाज तेरी तडपती हुई अतृप्त आत्मा तक जरूर पहुंची होगी।
हरी ओम्

सत्य की कठोर राहपर चलने वाला एक प्रखर राष्ट्राभिमानी
*विनोदकुमार महाजन*

Related Post

Translate »
error: Content is protected !!