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*क्या प्रेम से दुनिया जीती जा* *सकती है ?*

✍️ लेखांक : – २५१९

*विनोदकुमार महाजन*

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प्रेम !!
कितना पवित्र शब्द ?
ईश्वर के ह्रदय से निरंतर निर्माण होनेवाला अमृत !

और नफरत , द्वेष , मत्सर ?
ऐसा जालिम जहर तो भयंकर होता है !
और जो उन्मादी हैवानों के ह्रदय से निरंतर बहता रहता है !

और कलियुग में यह जहर दुष्टों के कंठ में निरंतर रहता है !
और सज्जनशक्तियों को देखकर ऐसा दुष्टों का कंठ का जालिम जहर तुरंत बाहर निकलता है !

प्रेम से ईश्वर जीता जा सकता है ! और चौबिसों घंटे ईश्वर हमारे साथ भी रह सकता है !
मेरा अनुभव है !

मगर वही ईश्वर ने बनाया हुवा मनुष्य प्राणी सचमुच में प्रेम से जीता जा सकता है ?
हरगीज नहीं !!
कैसे ?

श्रीकृष्ण स्वयं भगवान होकर भी ना प्रेम से दुनिया जीत सका ! ना प्रेम से सत्य की जीत कर सका ! ना धर्म की जीत करा सका !
क्योंकी सज्जनों का ह्रदयपरिवर्तन हो सकता है ! मगर दुर्जनों का ह्रदयपरिवर्तन कभी भी नही हो सकता है !
इसिलिए ईश्वर को भी सत्य की और धर्म की जीत के लिए आखिर धर्म युध्द का ही रास्ता अपनाना पडा !

देखिए ,
जब परमात्मा श्रीकृष्ण स्वयं कृष्णशिष्टाई करने के लिए दुर्योधन के पास गया ? तब नतीजा क्या हुवा ?
श्रीकृष्ण के प्रेम के कारण दुर्योधन का ह्रदयपरिवर्तन हुवा ?
हरगिज नहीं !
इसीलिए तो महाभारत हो गई ना ?

तो क्या आज का महाभयानक , राक्षसी सिध्दांतों पर चलनेवाला , उन्मादी मानव सचमुच में प्रेम से बदल सकता है ? जिसका सिध्दांत ही हिंसा का है , उसे अहिंसा की परिभाषा समझ सकती है ? उसे मानवता , भूतदया की भाषा समझ सकती है ?
या फिर उसपर पवित्र , निरपेक्ष ईश्वरी प्रेम करने से उसका ह्रदयपरिवर्तन हो सकता है ?
हरगिज नहीं !
इसीलिए दुष्ट दुर्योधन को धर्म रक्षा के लिए जिस प्रकार से धर्म युध्दद्वारा कठोर दंडित किया गया , ठीक ऐसा ही उन्मादियों को कठोर दंड द्वारा ही काबू में लाया जा सकता है !
तभी भयंकर अराजक भी समाप्त हो सकता है !
और तभी धर्म के जीत की अभिलाषा संकल्पित हो सकती है !

मगर दुर्देव से आज असुरी शक्तियों को ही प्रोत्साहित किया जा रहा है ?
कितना दुर्देव है ना ?
और विडंबन भी ?

मेरे प्यारे साथियों ,
लोकतंत्र के नामपर अगर कोई नंगानाच कर रहा है , उन्माद फैला रहा है , सामाजिक असंतुलन बना रहा है तो ?
उसकी क्या प्रेम से आरती करनी होगी ? तभी वह सुधरेगा ?
हरगिज नहीं !
ऐसे उन्मादियों को कठोर कानून द्वारा दंडित ही करना चाहिए !
तभी सामाजिक सौहार्द और सामाजिक शांती बनी रहेगी !

और अगर किसी देश में सामाजिक सौहार्द ही आसुरिक शक्तीयों द्वारा समाप्त किया जाता है ? तब भी क्या शांती का ढोल पिटते रहना चाहिए ?
उसे प्रेम से बारबार समझाना चाहिए ? और क्या वह हैवान प्रेम की भाषा समझ सकेगा ?
उत्तर आपको देना है !

अगर आज देश में जानबूझकर अराजक फैलाया जा रहा है ?
तो इसका कठोर कानूनी कारवाई द्वारा बंदोबस्त करना चाहिए या नहीं ?
या ऐसे हैवानियत को प्रेम से समझाना चाहिए ?

अब उच्च स्तरीय सत्ताधीशों को सत्य की , मानवता की रक्षा के लिए , कठोर होना ही पडेगा !
हैवानियत पर जमकर आखिरी और कठोर कानूनी प्रहार तो करना ही होगा !

और अगर इसमें कानून ही असफल रहता है तो यह लोकतंत्र कैसा ?
निरंकुश हैवानी शक्तीयों पर कानून तुरंत अंकुश प्राप्त नहीं कर सकता है तो ?
यह कानून का राज्य भी कैसै हो सकता है ?
उल्टा ऐसी विनाशकारी शक्तियाँ ही
संविधान खतरे में
की रट लगाता है
और शासन तथा देशवासी यह तमाशा मूकदर्शक बनकर देखते रहते है तो ?
यह कैसा लोकतंत्र है ?

जिस लोकतंत्र में लोगों के जानमाल की तुरंत रक्षा नहीं की जा सकती तो यह कानून का राज्य भी कैसै हो सकता है ?
लोगों को तुरंत न्याय नहीं मिलता है ? अत्याचारी , उन्मादियों को तुरंत सख्त और कठोर कानून द्वारा दंडित नहीं किया जा सकता है तो ?
यह लोकतंत्र ही कैसे हो सकता है ? उल्टा संविधान खतरे में कहनेवाले ही लोकतंत्र को ही अराजकता फैलाकर खतरे में डाल रहे है तो इसका तुरंत हल भी तो निकालना ही पडेगा ना ?

समाज को संभ्रमित करके , अराजक फैलाने का काम कोई अगर कोई उन्मादी शक्तियों द्वारा जानबूझकर किया जा रहा है तो ?
प्रभावी एकाधिकार शाही का बलपूर्वक प्रयोग करके ,
तबाही की ओर और बरबादी की ओर ले जानेवाला विनाशकारी अराजक तुरंत हटाना ही चाहिए ना ?
इंतजार की घडी ही समाप्त हो गयी है तो ? और इंतजार क्यों ?
और इससे अगर उन्मादी शक्तियों को बल मिलता है और बहुसंख्यक समाज ही त्रस्त है तो ?
कृष्णनिती अनुसार तुरंत कठोर और सख्त कदम उठाने ही पडेंगे !

तभी सत्य बचेगा !
तभी मानवता बचेगी !
तभी धर्म बचेगा !

अन्यथा ?
सर्वनाश अटल है !
और नजदीक भी है !

जागो !!
प्रेम से दुनिया जीतने का दियास्वप्न छोडकर भगवत् गीता के आदर्श रास्ते से चलकर
आदर्श ईश्वरी सिध्दातों की अंतिम जीत की शक्तिशाली रणनीति बनाकर ही….
देश बच सकता है !!

भगवान श्रीकृष्ण की जय हो !!!

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