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साधू अपनी मस्ती में !

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साधू अपनी मस्ती में !
✍️ २१९३

विनोदकुमार महाजन
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जिसने जीवन का उद्देश्य साध लिया वही साधू होता है !
स्थितप्रज्ञ !
अपने ही धून में,अपनी ही मस्ती में मस्त ! बिनधास्त !
ना सुख का आनंद है,ना दुख की चींता है !
हमेशा सुख दुखों से मुक्त !

साधू,संत,योगी,जोगी,स्मशान बैरागी, अघोरी, हठयोगी, क्रीयायोगी,सिध्द,महासिद्ध,
नागासाधू, तांत्रिक, मांत्रिक,नाथपंथी, डवरी,गोसाईं, भक्त, साधक…ऐसे अनेक प्रकार की ईश्वर भक्ति की उच्चतम अवस्था !
ईश्वर प्राप्ति के रास्ते अलग !
मगर उद्देश्य एक !

स्मशान जोगी तो ?
अवर्णीय !
चिताभस्म लगाकर, स्मशान में रहकर, ईश्वरी उपासना, आराधना करना !

साधुओं का जीवन ही अलग !
ना खुशी, ना गम !
कोई पागल कहें,कोई अज्ञानी जीव,कोई भोंदू कहे,कोई नौटंकीबाज कहें !
ना फिक्र ना चींता !

और समाज मन ?
कितने अच्छे, सच्चे मिलेंगे ?
साधू को भी हँसने वाले,पीडा देनेवाले, पागल कहनेवाले, मिलेंगे हजार !
मगर इस मायावी बाजार में, कितने मिलेंगे, साधुओं की इज्ज़त करनेवाले,सच्चे जाणकार ?

कोई पागल कहें,कोई कहे मूर्ख !
नौटंकीबाज कहें,कहे कोई धूर्त !
क्या फर्क पडता है आखिर पहुंचे हुए साधुओं पर ?
मुर्खों के ,मायावी बाजार में,उपरी पहनावे पर भूलभूलैया में लटकने वालें…
क्या जानेंगे साधू की शक्ति ?
साधू की सच्चाई ?
साधू की तपस्या ?

ऐसे अज्ञानी,मोहमई पागलों के बाजार में
हँसने वाले मिलेंगे हजार !
कितने मिलेंगे, सच्चाई को पहचानने वाले जाणकार ?
और साधू ?
अपनी ही धून में,अपनी ही मस्ती में मुर्खों के मायावी बाजार को,
मन ही मन…हँसता हुवा… आगे निकल जाता है !

मन में शायद यहीं कहकर,
मुर्खों के ऐसे बाजार में,
पहुंचे हुए साधुओं को भी और खुद सृष्टिकर्ता ईश्वर को भी हँसने वाले…
मिलेंगे पागल हजार !
नितदिन के नये तमाशियों का यहाँ का बाजार !

हर हर महादेव !

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