चिंता मत करना, ईश्वर सब ठीक करेगा !!!
( लेखांक : – २१२९ )
विनोदकुमार महाजन
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भयंकर भागदौड़ !
विनाविश्राम भयंकर भागदौड़ !
रोजी – रोटी के लिए भागदौड़ !
पैसा कमाने के लिए भागदौड़ !
ऐशोआराम का जीवन जीने के लिए भागदौड़ !
और हमारा जीवन ?
बिल्कुल अस्तित्व शून्य !
पैसा और पैसा कमाने की होड ने मनुष्य प्राणियों का लगभग मानसिक स्वास्थ्य ही खराब कर दिया है !
केवल पैसा और पैसा चाहिए !
कम श्रमों में जादा पैसा !
और उसीके लिए भागदौड़ !
दिनरात का बस्स्…
एक ही सपना… पैसा और पैसा !
और समाधान ?
शून्य !
दस लाख मिलेंगे तो बीस लाख कैसे होंगे ?
बीस करोड़ मिलेंगे तो चालीस करोड़ कैसे होंगे ?
यही सपना !
यही जीवन का उद्दीष्ट !
लालच ने तो पूरी जींदगी खराब कर दी ! और नींद भी उडा दी !
इसने पचास लाख का बंगाल बनाया… मैं एक करोड़ का बनाऊंगा !
उसने चालिस लाख की गाडी खरीदी… मैं अस्सी लाख की गाडी खरीद लूंगा !
चारों तरफ इर्ष्या !
और समाधान ?
शून्य !
मानसिक स्वास्थ्य शून्य !
आरोग्य शून्य !
और पैसे कमाने की होड में,
रीश्ते – नाते भी समाप्त !
आपसी प्रेम – भाईचारा भी समाप्त !
सत्यानाश हो गया सारा पैसों के चक्कर में !
मनुष्य प्राणी बरबाद हो गया इसी चक्कर में !
दुनिया पागल कर दी पैसों के मायावी बाजार ने !
और रूपयों की खनखनाहट ने !
क्या यही जीवन है ?
और उसी रास्ते से चलते चलते मानसिक थकान की दस्तक !
टेंशन, टेंशन !
टेंशन ही टेंशन !
और टेंशन का हल भी ?
शून्य !
घर के सभी सदस्य नौकरी – धंदे के चक्कर में, चौबीसों घंटे घर के बाहर !
ना संवाद, ना आत्मीयता !
ना एक दूसरे के प्रती…
दो प्रेम के शब्दों की अपेक्षा !
जब भयंकर मुसीबत आती है,
घोर संकट सामने खडा होता है,
कोई रास्ता नहीं दिखाई देता है..
तब…कोई सहारा देगा
कोई मानसिक सांत्वना करेगा,
इसकी भी आशा खतम्…
” चिंता मत करना, ईश्वर सब ठीक करेगा…! ”
ऐसे चार धीरोदात्त शब्दों की अपेक्षा भी लगभग समाप्त !
क्या सामाजिक माहौल ऐसा ही बनता जा रहा है ?
एक दूसरे का दूखदर्द समझने की मानसिकता ही लगभग समाप्त हो गई है ?
अगर हाँ…तो ऐसा भयंकर क्यों हो गया ?
संवाद से हल निकालने के बजाए, विवाद से ही माहौल खराब करने की समाज की मानसिकता क्यों बनती जा रही है ?
मुसिबतों के समय में, एक दूसरे को मानसिक आधार देने के बजाए, मानसिक उत्पीड़न के मामले ही सामने क्यों आ रहे है ?
विशेषता आदर्शवादी हिंदु संस्कृति में…
पती पत्नी के मतभेदों के प्रमाण क्यों बढते जा रहे है ?
एक दूसरे को समझने की मानसिकता ही लगभग समाप्त होती जा रही है ?
दूसरों का भयंकर दूखदर्द, भयंकर आत्मक्लेश भी कोई पारीवारिक सदस्य समझने में सक्षम नहीं है तो….
हमारा समाज आखिर जा कहाँ रहा है ?
परीणाम स्वरूप पती पत्नी में तलाक तक का भयंकर रोग तेजीसे फैलता जा रहा है !
वजह क्या है आखिर ?
और हल क्या है ?
दो शब्दों का आधार भी इंन्सान, मुसीबत की घडी में नहीं दे सकता है… तो…???
आखिर जीवन का उद्देश्य भी क्या है ?
एक संस्कृत सुभाषित है…
” ।। ××× चरीतम् पुरूषस्य् भाग्यम्…देवो न जानयेत ।। ”
( कोई विवाद खडा न हो,इसीलिए यह संस्कृत सुभाषित आधा,अधूरा दे रहा हूं ! )
क्या यही वजह है सभी समस्याओं की ?
क्या यही जड है ?
धर्म शास्त्र, तर्क शास्त्र, मानस् शास्त्र सभी को बाजू में रखकर,
एक वास्तविकता को समझेंगे तो…?
क्या नजर आयेगा ?
समस्या कि वजह, जड कहाँ पर छूपी है ?
और हल क्या है ?
।। सर्वाभूती भगवंत ।।
कहनेवाला और सभी को सुसंस्कारों का अपार धन देनेवाला, हमारा सनातन धर्म का सिध्दांत…
आखिर लूप्त सा क्यों होता जा रहा है ?
मानवता के एकसूत्र में बांधने वाले,हमारे आदर्श संस्कार क्यों समाप्त होते जा रहे है ?
भयंकर मुसिबतों की घडी में,
दूसरों का दूखदर्द समझकर,
एक दूसरे के प्रती प्रेमभाव रखकर…
” क्यों चिंता करता है ? ईश्वर सब ठीक करेगा ! ”
ऐसा कहनेवाला, मानसिक आधार देनेवाला, ईश्वर स्वरूप
व्यक्ति क्यों लूप्त होता जा रहा है ?
अथवा,
” ये भी दिन जायेंगे बेटा,तेरे भी दिन आयेंगे ! चिंता मत कर,दयालु ईश्वर सब ठीक ही करेगा ! ”
ऐसी प्रेम की दिव्य बाणी से चार शब्दों का आधार देनेवाला भी आज समाज में नहीं दिखाई दे रहा है !
सब पैसों की नौटंकी !
सब रूपयों का मायाबाजर !
” मगर मेरे प्यारे दोस्तों,
चिंता मत करना !
ये भी दिन जायेंगे !
और हमारे भी दिन आयेंगे ! ”
ऐसी उम्मीद करते है !
और हमारे महान उद्दीष्टों की ओर हर कदम, आगे बढते है !
” मजबूरी का नाम जींदगी है ! ”
मगर,
मजबूरी को भी बाय बाय करते है !
नई उम्मीद से,नई आशा लेकर, नई रोशनी की ओर हर पल,हर दिन आगे आगे ही बढते है !
हरी ओम्
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