मैं…जंगल का ” राजा ” शेर हुं !!
( लेखांक : – २१२५ )
विनोदकुमार महाजन ( योगी विनोद )
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मैं,
” जंगल का राजा शेर हुं ! ”
यह मनोगत है…
जंगल के राजा शेर का !
अब हम उसके मनोमस्तिष्क में क्या विचार चल रहा है यह बात ” परकाया प्रवेश सिध्दी ” का उपयोग करके देखते है !
सामर्थ्य संपन्न, बुलंद आवाज, एक ही गर्जना से पूरे जंगल में सनसनी पैदा करने की क्षमता रखने वाला,जबरदस्त शक्तिशाली ,ईश्वर निर्मित एक हिंस्र पशु !
वो आज कहता है…
” मैं जंगल का राजा शेर हुं ! शक्तिशाली, बलशाली !
मगर…
आज मैं मजबूर हुं !
क्योंकि ईश्वर निर्मित छोटेसे देहधारी, छोटेसे दिमाग वाले मनुष्य नामक,भयंकर प्राणी ने मेरा और मेरे जैसे अनेक जंगल वासियों का ,पशुपक्षीयों का जीना ही हराम कर दिया है !खुद के निजी स्वार्थ के लिए, मानवप्राणी इतना भयंकर गिर सकता है, ऐसा हमने कभी सपनों में भी सोचा नहीं था !
यह छोटेसे दिमाग का भयंकर मनुष्य प्राणी, हमारे वास्तव्य के जंगल के जंगल ही हडप कर रहा है ! उसमें अनगिनत घरों का,कारखानदारी का निर्माण कर रहा है ! और हमारे घर उध्दस्त कर रहा है ! जो ईश्वर ने हमें वरदान के रूप में प्रदान किए है !
अगर हमारे जंगल कट रहे है…हमारा ईश्वर निर्मित भोजन भी मानवप्राणीयों द्वारा समाप्त किया जा रहा है, हमारे लिए जल भी मिलना मुश्किल हो रहा है…तो ???
हम जाएंगे तो आखिर कहाँ ?
हमारे पेट की भयंकर आग बुझायेंगे कैसे ?
हमारे लिए जल का प्रबंध कौन करेगा ?
बरबाद कर दिया हमारा जीना इस महाभयंकर मानवप्राणी ने ! हमारा जीना ही अब मुश्किल हो गया है !
और उपर से मृत्यु भी नहीं आती है ! तो आखिर क्या करें ?
इसिलिए अब हमें और हमारे जैसे प्रजातियों को मनुष्य बस्ती में घुसकर भोजन ढुंडने की,पाणी ढुंडने की मुसिबत आ गई है !
और मनुष्य प्राणी हमें मानव बस्ती में देखकर भयंकर हैरान और परेशान हो रहा है !
आखिर हम करें तो क्या करें ?
हमारे पेट की आग कैसी बुझायेंगे ?
पाणी की प्यास कैसे बुझायेंगे ?
हम आखिर कहां जायेंगे ?
कभी कभी पाणी गहरे कुंवे में दिखाई देता है ! और पाणी की प्यास बुझाने के लिए, हम गहरे कुंवे में ही कूद पडते है ! और वहीं पर अटक जाते है !
और क्रूर इंन्सान ?
उपर से हमपर गोलियां चलाकर हमें समाप्त करने की कोशिश करता है !
हाय रे भगवान !
हाय रे दुर्दैव !
इतना हमारा डर है मानवप्राणी को ?
हम हिंसक है,क्रूर भी हो सकते है !
मगर खुद ईश्वर ने ही हमें ऐसा बनाया है… क्या यह हमारा दोष है ?
पिछले जनम में मैं कौन था, यह मुझे पता नहीं है !
मगर पिछले जनम में,जरूर कोई भयंकर पाप किया होगा,जीसकी सजा आज…
यह शेर का देह धारण करके भूगत रहे है !
और लोग कहते है…
यह जंगल का राजा है !
आज जंगल का राजा,सचमुच में मानव की गलतियों की वजह से भयंकर त्रस्त है, परेशान है !
भूका,कंगाल है !
जल के बिना तडप रहा है !
भोजन के लिए तरस रहा है !
कौन हमपर दया करेगा ?
मानव को दूसरा भोजन मिल सकता है ! फिर भी वह हमारे जैसा माँसाहारी क्यों बन रहा है…? यह हमें भी समझ में नहीं आ रहा है !
हमें माँसाहारी तो खुद ईश्वर ने ही बनाया है !
क्या यह हमारी गलती है ?
आखिर में मानवप्राणी को मैं,
जंगल का शेर होकर भी निवेदन करता हुं की,
हे मानव,हमें भी जीने का अधिकार है !
हमें भी भोजन, पाणी की जरूरत है !
और खुद ईश्वर ने ही बडे बडे जंगल बनाकर, हमारे भोजन पाणी की व्यवस्था कर रखी है !
मगर हे मानव, तुने तो हमारे ईश्वर निर्मित आश्रय स्थान पर ही आघात किए हुए है ! और अनेक पशुपक्षीयों का जीवन मुसिबतों में डाल रखा है !
तो क्या हमारा जीवन उध्दस्त करनेवालों को दंडित करने का भी अधिकार हमें है ? ”
( शेर का मनोगत समाप्त )
साथियों,
सभी सजीवों में एकसमान आत्मतत्व होता है !
सभी को संन्मान से जीने का ईश्वरीय अधिकार भी है !
सभी ईश्वर की ही संतान है !
और उसकी संतानों पर कोई अत्याचार कर रहा है, उसे तडपा तडपा कर मार रहा है…
तो क्या ईश्वर अपनी सभी संतानों की रक्षा के लिए, क्रूर मानवप्राणी को सबक सिखाएगा ?
या दयालु बनकर सभी को क्षमा कर देगा ?
लाखों गौमाताएं आज कृष्ण भगवान को आक्रंदन करके पूकार रही है !
हे कृष्ण आ जा !
हे तारणहारी गोपाल आ भी जा !!!
क्रूर मानव से अपनी जान बचाने की,गौपालक भगवान श्रीकृष्ण के सामने माँग कर रही है !
जीवन का वरदान माँग रही है !
क्या क्रूर मानवप्राणी इसपर गहराई से विचार करके,पशुहत्या पर रोक लगायेगा ?
तो…?साथियों,
मानवप्राणी को उन सभी प्राणियों का जीना मुश्किल कर देने का अधिकार सचमुच में है मेरे प्यारे मित्रों ?
सभी सजीव, मनुष्य प्राणियों को दया की भीक माँग रहे है !
क्या सचमुच में मनुष्य प्राणी सभी सजीवों को अभय देगा ?
कठोर ह्रदय को ईश्वर के लिए, सुह्रदयी बनायेगा ?
सभी पशुपक्षीयों के लिए, सभी सजीवों के लिए, उनकी संपूर्ण रक्षा के लिए, आगे आयेगा ?
और सृष्टिरचियेता भगवान को आनंदी करने की,उसे आनंदित देखने की कोशिश करेगा ?
मानव कब जागेगा ?
मानव , मानव कब बनेगा ?
मानव दानवत्व कब त्यागेगा ?
हरी ओम्
🙏🙏🙏🕉