अलौकिक जीवन अलग होता है
और लौकिक जीवन अलग होता है।
यहाँ पृथ्वी पर ,मृत्यु लोक में तो सभी लौकिक और भौतिक के मायाजाल में ही फँसें हुएं है।
जो एक भ्रम है।
मेरा – तेरा,नफरत, स्वैराचार का यह भयंकर माहौल है।
अंतिम सत्य तो आत्मसाक्षात्कार है।और ईश्वर स्वरूप हो जाना है।
यही अलौकिक है।
और यही सत्य है।
और सत्य सनातन धर्म यही अंतिम सत्य सिखाता भी है और उसी दिशा में ले जाता है।
हरी ओम्
विनोदकुमार महाजन