Fri. Nov 22nd, 2024

गौमाताओं को भी समझता है दिव्य प्रेम

Spread the love

गौमाता भी समझती है दिव्य प्रेम

कितना पवित्र प्रेम अरते है यह दोनों पवित्र आत्माएं एक दुसरे पर…?
दो देह.और आत्मा एक जैसा निष्पाप प्रेम।
कितना सुंदर ईश्वरी प्रेम।
यह है मेरे मित्र, जगदीश जी गौड।
गौपालक, गौपूजक।
कितना अवर्णनीय, ईश्वरी आनंद मिलता है,ऐसा दिव्य प्रेम देखकर।
स्वर्ग की दिव्य अनुभूति तो यही होती है।

बस्स्…आपको आत्मानुभूति प्राप्त करने के लिए,
तीसरी आँख खोलनी चाहिए…
दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होनी चाहिए…
आज्ञाचक्र जागृत होना चाहिए

तभी आप के ऐसे अनेक अद्भुत, अवर्णनीय दृष्य देखने को मिलेंगे।
हरी ओम्

विनोदकुमार महाजन

Related Post

Translate »
error: Content is protected !!