गौमाता भी समझती है दिव्य प्रेम
कितना पवित्र प्रेम अरते है यह दोनों पवित्र आत्माएं एक दुसरे पर…?
दो देह.और आत्मा एक जैसा निष्पाप प्रेम।
कितना सुंदर ईश्वरी प्रेम।
यह है मेरे मित्र, जगदीश जी गौड।
गौपालक, गौपूजक।
कितना अवर्णनीय, ईश्वरी आनंद मिलता है,ऐसा दिव्य प्रेम देखकर।
स्वर्ग की दिव्य अनुभूति तो यही होती है।
बस्स्…आपको आत्मानुभूति प्राप्त करने के लिए,
तीसरी आँख खोलनी चाहिए…
दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होनी चाहिए…
आज्ञाचक्र जागृत होना चाहिए
तभी आप के ऐसे अनेक अद्भुत, अवर्णनीय दृष्य देखने को मिलेंगे।
हरी ओम्
विनोदकुमार महाजन