Sat. Sep 7th, 2024

नौटंकीबाज डर लगनेवालों का संपूर्ण बहिष्कार

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इस देश में डर…
क्यों लगता है ?
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कुछ फिल्मों के लोग कहते है की,
इस देश में डर लगता है।
जानबुझकर ऐसा बयान देनेवालों को मेरे व्यक्तीगत प्रश्न है।शायद ,डर लगनेवाले जरूर उत्तर देंगे।
(1)हिंदुस्थान यह एक ऐसा देश है जहाँ पर पाकिस्तान या दुसरे मुस्लिम देशों से भी,सभी धर्म-पंथीय, मुस्लिम जादा सुरक्षितता महसुस करते है,और यह सच्चाई भी है।
(2)जिनको इस देश में डर लगता है,वहाँ के नागरिक डर लगनेवालों पर भी प्रेम करते है,उनकी फिल्मे देखते है,फिल्मे सुपर हिट भी बनाते है,और डर लगनेवालों की झोलियाँ रूपयों से भर देते है।
(3)डर लगनेवाले,”हिंदु आतंकवाद”,शब्द कहनेपर भी हिंदु डर लगनेवालों पर बिना भेदभाव करके प्रेम करते है।तो भी इनको डर क्यों और कैसे लगता है यह मेरी समझ में नही आता है।
(4)डर लगनेवालों को हिंदु सरपर लेकर नाचते है,
फिर भी इनको डर कैसे लगता है ?
और सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न,
(5)अगर इनको सचमुच में इतना डर लगता ही है ,तो भी इस सहिष्णु देश में क्यों रहते है ??तुरंत देश छोडकर कोई सुरक्षित देश में या पाकिस्तान में क्यों नही चले जाते?
वहाँ जानेपर इनको सच्चाई जरूर समझ में आयेगी।
(6)यहाँ के समाज की भयंकर निंदा करनेपर भी बडे आराम से इस देश में ही रहनेपर इनको शरम क्यों और कैसे नही आती है ?
(7)इनका इतना भयंकर गीरा हुवा वक्तव्य सुनकर भी यहाँ के सहिष्णू देशवासी इनसे फिर भी प्रेम करते है,इनकी फिल्मे देखते है,पैसों से मिलनेवाली सभी सुखसुविधाएं,ऐशोआराम की जिंदगी देते है।
फिर भी इनको डर क्यों लगता है ?
इतने नीच,कृतघ्न और गिरे हुए तो जानवर भी नही होते है।जानवरों को भी सच्चा प्रेम समझता है।और ये…?
और अगर समझो की,
इतने गिरे हुए लोगों पर सचमुच में इस देश के समाज ने बहिष्कार किया तो क्या करेंगे?
इनकी फिल्मे देखना बंद किया तो क्या करेंगे?
आर्थिक फायदा बंद किया तो क्या करेंगे?
कहाँ जाओगे,क्या खाओगे ?
नमकहरामों,जिस थाली में खाते हो,उसी थाली में छेद मत करो।
नही तो समाज तो क्या,समय और भगवान भी क्षमा नही करेगा।
असुरी सिध्दांतों को छोडकर ईश्वरी सिध्दांत और मानवता का स्वीकार करो।
दृष्टि साफ करो।और सहिष्णु समाज की ओर एक अच्छी नजरों से देखो।
फिर…
आपको…
डर…
नही सताएगा।
इस देश का,इस समाज का खाकर इस देश को,और देशवासियों को गाली मत देना।
डर लगनेवालों,
एक बार नही सौ बार सोचना।सच्चाई का स्विकार करना और सच्चाई में ही जीना।

क्या यह वास्तव, कडवी सच्चाई मंजूर है ?

हरी ओम।
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जागृत पत्रकार,
विनोदकुमार महाजन।

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