
*क्या हम, हमारा नशीब* *बदल सकते है ?*
✍️लेखांक : – २७१५
*विनोदकुमार महाजन*
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क्या सचमुच में हम,
हमारा नशीब बदल सकते है ?
जी हाँ…हम हमारा नशीब बदल सकते है !
मगर इसका उदाहरण करोडों में शायद ना के बराबर अथवा शायद सौ करोड में से एक हो सकता है !
क्या मैंने मेरा नशीब और संपूर्ण जीवन ही बदल दिया है ?
जी हाँ… बिल्कुल !
यह सौ प्रतिशत सही बात है !
बचपन से मुझे नजदिकी से देखनेवाले और मुझे जाननेवाले भी…शायद…
मेरे जीवन का यह संपूर्ण परिवर्तन देखकर , द्वीधा में पड गये होंगे !?
नशीब बदलने की प्रक्रिया कैसे होती है ?
मार्केंडेय ऋषी इसका प्रमाण है !
वैसे तो काल , नियती साधारणतः ईश्वरी शक्तियों के अधिन होते है !
जो विधी का विधान होता है , इसी ईश्वरीय प्रक्रिया में साधारणतः ईश्वर भी हस्तक्षेप नहीं करता है !
काल और नियती भी विधी का विधान ही है !
जो विधीलीखीत घटनाएं होती है , ऐसी घटनाएं कोई भी नहीं टाल सकता है !
राम और कृष्ण का देहरूप धारण करके , धरती पर आ जाना , यह भी विधीलिखीत ही था !
जो स्वयं ईश्वर भी नहीं टाल सकता है !
भाग्य , भाग्यरेखा , नशीब, प्रारब्ध , कर्म जैसी घटनाएं भी आत्माओं से संबंधित होती है !
जैसा जिसका प्रारब्ध कर्म है , उसीके अनुसार , सुखदुःख या फिर कौनसे योनी में जन्म होना है ,यह तय होता है !
और यह सब ईश्वराधीन तथा सृष्टीचक्र के अनुसार ही होता है !
इसिलिए हर एक का सुखदुःख भी अलग अलग होता है !
और हर एक का नशीब भी अलग अलग होता है !
और साधारणतः ईश्वर अथवा नियती इसमें हस्तक्षेप नहीं करती है !
जो घटनाएं तय है और जो घटनाएं होनी है , इसे कोई भी नहीं टाल सकता है !
इसिलिए होनी को कोई भी नहीं टाल सकता है !
इसेही भाग्य अथवा नशीब बोलते है !
और यह सृष्टीरचना का विषय होने के कारण , स्वयं ईश्वर , अथवा महासिध्दयोयी अथवा सिध्दपुरूष भी इसे नहीं टाल सकते है !
और नाही इसिमें हस्तक्षेप करते है !
इसिलिए भगवान श्रीकृष्ण ने , अर्जुन के पूत्र अभिमन्यू का , चक्रव्यूह में मृत्युयोग नहीं टाला था !
स्वयं भगवान श्रीकृष्ण देहरूप से मौजूद होकर भी !!?
मगर पंचमहाभूत अथवा काल ईश्वर के , सिध्द पुरूषों के अधीन जरूर होता है !
इसिलिए दिव्यात्माएं होनी को भी टाल सकते है !
मगर सृष्टीचक्र पर इसका गहरा असर होकर , सृष्टीरचना पर भी इसका परिणाम होगा , इसिलिए ईश्वर भी सृष्टीचक्र में हस्तक्षेप नहीं करते है !
इसिलिए जब हिंदुत्व का तथा ईश्वर निर्मित सत्य सनातन धर्म का भयंकर बुरा दौर था , तब भी ईश्वर ने इसमें हस्तक्षेप नहीं किया था !
क्योंकी यही विधी का विधान था !
ईश्वर निर्मित सत्य सनातन धर्म के काले दिनों में भी स्वयं ईश्वर भी मौन थे !
गौमाताएं आज भी कट रही है !
मगर अब समय भी करवट बदल रहा है !
और वैश्विक स्तर पर हिंदुत्व की त्रिवार जयजयकार आरंभ हो रही है !
इसी कार्य को वैश्विक स्तर पर बढाने के लिये, एक दिव्य अवतारी पुरुष भी धरती पर आ चुका है !
और अदृष्य रूप से सत्य सनातन धर्म का वैश्विक कार्य बढा भी रहा है !
जो भविष्य में कल्की के रूप में जाना जायेगा !
और यह सब ईश्वराधीन ही हो रहा है !
इसिलिए हिंदुमय विश्व तो होकर ही रहेगा !
और यही विधी का विधान भी है !
और यह त्रिकिलाबाधीत सत्य भी है !
इसे अब कोई भी नहीं रोक सकता है !
स्वयं ईश्वर भी !
रामायण और महाभारत भी तो विधी का विधान ही तो था !
हिंदुमय विश्व कि, इसकी शुरूआत भी तो अब वैश्विक स्तर पर हो चुकी है !
मगर हिंदुमय विश्व होने से पहले संपूर्ण विश्व में भयंकर तेज गती की उथल पूथल होगी !
अनेक प्रकार की भयंकर नैसर्गिक आपदाएं आयेगी !
जिसमें साधारणतः अनेक पापात्माएं भी मारी जायेगी !
और जो पुण्यात्माएं ईश्वर के अधीन जीवन यापन कर रहे है , वह सब आश्चर्यकारक तरीकों से भयंकर मुसिबतों से भी बचेंगे !
स्वयं काल भी इनको कुछ भी नहीं करेगा !
जिनकी उच्च कोटी की साधनाएं है अथवा जो भी उच्च कोटी के सिध्द पुरूष है , अथवा जिसकी आज्ञाचक्र जागृती हो चुकी है, वहीं केवल इसका गूढ और गुह्य अर्थ समझेंगे !
अब आते है मूल विषय पर….
क्या हम हमारा नशीब बदल सकते है !?
जी हाँ… बिल्कुल…!
कैसे ?
आगे का लेख इसके लिए विस्तार से पढना होगा !
जब कोई दिव्यात्मांएं अवतार कार्य हेतू धरती पर अवतरीत होती है तब उन्हे भी अपना संचित , प्रारब्ध , नशीब लेकर आना पडता है !
ईश्वरी पवित्र आत्माओं को भी इससे छुटकारा नहीं मिलता है !
जिसके अधिन सुखदुःख और भाग्य , नशीब होते है !
किसी सिध्द पुरूष के नशीब में ,अंधकार मय भयंकर और नारकीय जीवन का भयंकर शाप यह भी तो प्रारब्ध का ही भाग होता है !
मगर अगर इसी प्रारब्ध गती अनुसार,इसी चक्रव्यूह में फॅंसकर ही अंत होकर , मृत्यू होती है ,तो….?
बचा हुवा अवतार कार्य अगले जन्म में पूरा करना पडता है !
और यही महत्वपूर्ण मुद्दा होता है !
अगले जन्म की प्रक्रिया पूरी होने तक का समय भी जादा होता है !
इसिलिए नशीब , भाग्य बदललकर ही कार्य आगे बढाना पडता है !
और ऐसे समय में ईश्वर स्वयं हस्तक्षेप करके , कालचक्र को आदेश देकर , अगली रणनिती बनाते है !
जयद्रथ , अर्जून और श्रीकृष्ण का इसके लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण है !
स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने , मेरे लिये , देह धारण करके एक चमत्कार दिखाया है…
और तभी से मेरे जीवन की संपूर्ण दिशा ही आश्चर्यजनक तरीकों से बदल गयी !
यही सबसे महत्वपूर्ण मेरे जीवन का
“टर्नींग पाॅईंट ”
रहा है !
इसे ही नशीब बदलने की प्रक्रिया कहते है !
यह श्रद्धा का विषय तो है ही ! इससे भी बढकर स्वयं अनुभूती तथा आत्मानुभूती का भी विषय है !
परकाया प्रवेश करके भी ईश्वर मार्गदर्शन करता है !
मगर इसके बहुत कम उदाहरण देखने को मिलते है !
किसी महान उद्देश्य से अगर स्वयं ईश्वर किसी का भाग्य बदल देता है तो ? इसका मतलब अनेक भविष्य कालीन ईश्वरीय योजनाओं से संबंधित होता है !
तिव्र इच्छा शक्ती , सद्गुरू की संपूर्ण कृपा तथा ईश्वरीय वरदान द्वारा , किसी का नशीब बदलना संभव होता है !
इसके लिए कठोर तपश्चर्या और अथक ईश्वरी सिध्दांतों पर अडीग रहकर मार्गक्रमण करना पडता है !
अनेक जहर सागर पार करने पडते है !
कठोर अग्नीपरीक्षाएं तथा सत्वपरीक्षाएं उत्तीर्ण होनी पडती है !
स्वकीय और सामाजिक उद्वेग तथा अकारण परेशानिओं का सामना करना पडता है !
भयंकर मुसिबतों के असह्य पहाड सामने खडे होते है !
असह्य नारकीय जीवन का सामना करना पडता है !
साक्षात मृत्यू भी अच्छी लगनी लागती है !
ऐसे समय में गुरूबल भयंकर वरदान स्वरूप और तारक रहता है !
तभी जाकर नशीब बदलता है !
और सामान्य व्यक्तियों के लिये ऐसी घटनाएं लगभग नामूमकीन सी होती है !
ईश्वर देह धारण करके तब आता है जब सामाजिक उत्पात अती भयावह हो !
खुद आने से पहले अपने श्रेष्ठ दूतों को भी भेजता है !
जिसने परम ईश्वरी कृपा तथा सद्गुरू कृपा से अपना भाग्य ही बदल दिया है , उसीके सानिध्य में रहनेवालों का भी संपूर्ण जीवन आश्चर्यजनक तरीकों से बदल जाता है !
इसी पर भी भाग्य , नशीब का भी प्रावधान रहता है !
और अती भाग्यवान व्यक्ती ही ऐसे व्यक्तियों के सान्निध्य में टीक सकते है !
अन्यथा जो अती नजदिक थे , वह भी किसी कारण वश सदा के लिये दूर चले जाते है !
भूलभूलैय्या के चक्कर में तथा गलतफहमीयों के कारण , ऐसे व्यक्ती सदा के लिये , दूर चले जाते है !
आखिर ???
नशीब अपना अपना !
प्रारब्ध अपना अपना !
!! *जय जय* *रामकृष्णहरी !!*
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