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*खाओ पिओ ऐश करो ?* ✍️ २६३२

” उसने ” इतनी जमीन ली ,
उतना पैसा कमाया , इतने का सोना लिया , इतने फ्लैट लिये , इतनी संपत्ति कमाई..
इसके आगे हमारी सोच , हमारे विचार , आगे नहीं बढ सकते है ना ?

अडोस पडोस में , रिश्तेनातों में किसी का बूरा हाल होता है ? कोई मुसीबत में फँसता है ? कोई परेशान रहता है तो ?
उसकी सहायता करना दूर की बात , उसपर जोरजोर के ठहाके लगाकर उसे ही हँसना , उसका हँसी मजाक बनाना ? उसे और परेशानी में डालना ?
लगभग यही सभ्यता और संस्कृति बन गई है ?

दूसरा ? जब दुखी होता है तब ? आनंद से पटाखे फोडना ? क्या ऐसी मानसिकता सही है ?

दूसरों के दुखों में , उसे सहायता करों न करों चलेगा ! मगर दूसरों के दुखों में , कम से कम उसे तडपाओ तो मत !?
याद रखिए , दुख हरेक मनुष्य प्राणी को भोगना ही पडता है !
किसी को कम , किसीको जादा !

और हमारे ? हिंदुस्तान में शायद अब एक नया ,
” फार्मुला ” बना हुआ है… ऐसा लगता है… दूसरों के दुखों में तडपाने का !

विकृत मानसिकता !??

धर्म, संस्कृति, देश,ईश्वरी सिध्दांतों की जीत ,
इसके बारे में हम कब विचार करेंगे ? कब जागृत होंगे ?
आत्मोध्दार भी हुवा मगर
राष्ट्रोध्दार , विश्वोध्दार , समाजोध्दार , मानवीय उत्थान , इसपर हम कब चिंतन , मनन , अध्ययन करेंगे ?

सत्ता और संपत्ति यह अंतिम साध्य नहीं होता है ! यह जीवनोपयोगी साधन जरूर है ! मगर धन , संपत्ति के सिवाय , इसके सिवाय दूसरा विचार करना भी गलत लगता है ?
जैसे – हिंदुत्व का स्वीकार ?
और ? हिंदुत्व जागृति अभियान में सामुहिक तेज गति लाना !?

खाओ पिओ ऐश करो के लिए , मानवी देह नहीं है ,अथवा नाही इसका ईश्वरी प्रायोजन है !

ईश्वर प्राप्ति और नर का नारायण बनकर , ईश्वर का कार्य करना , यही मानवी देह का मुख्य उद्देश्य है !

इसीलिए , धर्म के लिए कुछ तो भी करो !
धर्म के लिए कुछ करना होगा !

जागो !

*जय हिंदुराष्ट्र*

*विनोदकुमार महाजन*

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