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निसर्ग, नियती और ईश्वर ?

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निसर्ग और नियती मनुष्य प्राणीयों को नही छोडेगी ??
✍️ २२२८

विनोदकुमार महाजन
———————————
खुद का अती स्वार्थ, मोह,मद,मत्सर,अहंकार की वजह से, मनुष्य प्राणियों ने आजतक अती भयंकर गलतियां की है !
और इसी वजह से निसर्ग पर,निसर्ग नियम पर ,कुदरत के कानून पर भयंकर अत्याचार भी किये हुए है !

और आज भी यही सिलसिला लगातार जारी है !

खुद के स्वार्थ के लिए, मनुष्यों नै,निष्पाप जीवोँ की हत्याएं की है ! उनके खून की नदीयां बहाई है !

क्या ईश्वर ने मनुष्यों के लिए, पर्याप्त मात्रा में ,यथोचित भोजन की व्यवस्था नहीं करके रखी है ?

फिर भी मनुष्य हाहाकारी क्यों बना ?

और अदृश्य नियती ??
मनुष्यों की क्रूरता का,अती भयंकर स्वार्थ का,भयावह पाप का दूरसे निरीक्षण करती रही !
निशब्द होकर ! मौन रहकर !

और अती स्वार्थान्ध मनुष्य ?
हरदिन अती उन्मत्त बनता गया !
कुदरत को ही हर पल ललकारता रहा !

और नियती पर ध्यान रखनेवाला ईश्वर ?
चौ-यांशी लक्ष योनियों का पूरा हिसाब – किताब रखने वाला,अदृश्य ईश्वर, सभी के जन्म मृत्यु की नोंद रखने वाला ईश्वर ?
अदृश्य रूप से यह मनुष्य प्राणीयों का एक अतीभयावह खेल देखता रहा !भयावह तमाशा ? देखता रहा !
दूरसे !
निश्चल होकर !

सभी सजीवों का,पशुपक्षीयों का पालकत्व ईश्वर ने मनुष्यों पर छोड दिया है !
हर एक के अंदर दयाभाव निर्माण किया है !

आदर्श सनातन धर्म के रास्ते से जाकर, आदर्श ईश्वरी सिध्दातों को स्विकारकर,उसे स्थापित करने के लिए, मनुष्य प्राणियों के लिए, बुध्दि का वरदान भी ईश्वर ने ही दिया हुवा है !!

और मनुष्य प्राणी ?
ईश्वर को भूलकर ?
हरदिन भयंकर हैवानियत, हाहाकार बढाता रहा !
ईश्वरी सिध्दातों के खिलाफ जानबूझकर आचरण करता रहा ! राक्षसी आचरण करता रहा ! गलतीयों पर गलतियां करता रहा !
चौबिसों घंटे !!

और आज के माहौल में ?

हरदिन की भागदौड़ में लगभग सभी मनुष्य प्राणी व्यस्त है !
रोजीरोटी के चक्कर में खुद का अस्तित्व ही भूल बैठा है !
और इसीलिए, निजी व्यस्तता के कारण,संवेदनशीलता भी भूल गया है !

संवेदनाशून्य समाज !
संवेदनाशून्य परिवार !
संवेदनाशून्य व्यक्ति !
संवेदनाशून्य मनुष्य ?

और ?
इसी संवेदना शून्यता की वजह से,मौन और स्तब्ध रहकर, हैवानियत को भी बढावा देता रहा ! तो ?
ऐसे माहौल में, आत्मा की आवाज, संस्कृति की हानी,धर्म ग्लानि के बारें में,कौन, कैसे और कब सोचेगा ?

कुदरत का कानून, निसर्ग, निसर्ग नियम, ईश्वरी सिध्दातों के बारे में कब सोचेगा ?

अस्तीत्व शून्य समाज ?
चेतना शून्य समाज ?
मरे हुए मन से जीने वाला समाज ?

और इसी कारण, संपूर्ण धरती पर बढता हुवा भयंकर ही नहीं, अती भयंकर पाप …
अधर्म को ही धर्म मानने का प्रघात … अल्पबुद्धि मनुष्यों का,
असत्य को ही सत्य के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास..
और उसका भी बढचढकर प्रचार – प्रसार करने का प्रयास !
गलत सिध्दातों को स्थापित करने का प्रयास !

क्या नियती ? निसर्ग ? ईश्वर ?
दूरसे देखते नहीं है ?

सबकुछ देखते है !!
मौन और निश्चल होकर !
मनुष्य प्राणियों का यह भयंकर तमाशा, यह स्वार्थांधता का जालिम खेल ?

ईश्वर देखता था !
और ?
समय का इंतजार भी करता था !
क्योंकि निसर्गनियम यह है की,
जो जिस प्रकार से देता है,
निसर्ग, नियती और ईश्वर उसे,
ब्याज सहित वापिस करती ही है !

यही कुदरत का कानून है !
यही निसर्ग नियम है !
यही ईश्वर का न्याय भी है !

इतना होने के बावजूद भी,
ईश्वर ने अनेक मार्गों से, हर एक मनुष्य प्राणीयों को सचेत करने के बावजूद भी,
मनुष्य प्राणीयों ने अहंकार का त्याग नहीं किया !

अनेक आदर्श धर्मग्रंथों का निर्माण करने के बावजूद भी,
मनुष्य प्राणी,उस आदर्श धर्मग्रंथों को ही भूलता गया !
उस आदर्श धर्मग्रंथों को ही जलाने लगा ???
जो आदर्श जीवनप्रणाली का,यशस्वी जीवनप्रणाली का रास्ता दिखाते है !
मनुष्य प्राणीयों सहित सभी के अखंड कल्याण का रास्ता दिखाते है…
उसी धर्मग्रंथों को जलाने लगा ?

विकृत मानव ?
महापातकी मानव ?
महाअहंकारी मानव ?
स्वार्थान्ध मानव ?
दुष्ट मानव ?
क्रूर मानव ?

और ?
इतना कुछ होने के बावजूद भी ?
अहंकार, मदोन्मत्तता त्याग नहीं रहा है ?
और अभी भी नहीं जागे तो ?
विनाश निश्चित है !
नजदीक भी है !!
देख लेना !

मनुष्यों की अतीस्वार्थांतका के कारण ?
भयंकर जनसंख्या विस्फोट ?
परिणाम ?
सभी ईश्वर निर्मित पशुपक्षीयों का,प्राणीयों का जीना हराम ?

क्या इसीलिए ईश्वर ने मनुष्य प्राणी निर्माण किया है ?
हाहाकारी बनकर हैवानियत बढाने के लिए ?
पापों का भयावह उन्माद बढाने के लिए ?
दूसरों का जीना ही मुश्किल करने के लिए ?
दूसरों का जीना हराम करने के लिए ?

अतीस्वार्थांतका के कारण,
मनुष्य प्राणी जहर की भी खेती करने लगा !
मतलब ?
रासायनिक खेती !
जहरयुक्त खेती !
हरदिन, हरजगह जहर ही जहर बोता रहा !
हर फसल पर ?
जहर ही जहर !!

और परीणाम ?
हर घर में बढती हुई भयंकर बिमारियां !
हरदिन ! हरपल !
और इलाज ?
ना के बराबर !

निसर्ग पर विजय प्राप्त करने के होड में,मनुष्य प्राणीयों ने,
निसर्ग नियमों को ही ललकारा !
कुदरत का कानून स्वीकारकर, एक आनंदी जीवन जीनें के बजाय ?
कुदरत के कानून को ही आव्हान दिया !
तो ?
इसके भयंकर उग्र परिणाम मनुष्य प्राणीयों को तो ? भूगतने ही पडेंगे ना ?

निसर्ग, नियती, ईश्वर तो एक दिन अपनी शक्ति तो दिखाई ही देंगे ना ?

और आज बिल्कुल यही हो रहा है !
अनेक अदृश्य विनाषकारी व्हायरस का आक्रमण ?
क्या दर्शाता है ?
व्हायरस का अदृश्य संक्रमण ?
और ?
हतबल, हताश मनुष्य प्राणी ?

मनुष्यों ने जैसा कर्म किया,वैसा फल निसर्ग और नियती ने दे दिया !

और दुर्देव यह है की,
इतना भयंकर होने के बावजूद भी, इंन्सान नहीं सुधर रहा है !
अहंकार त्यागकर ईश्वर के शरण में नहीं जा रहा है !
आज भी कुदरत के कानून को नहीं स्विकार रहा है !

मदमस्त इंन्सान!
बेफिकर इंन्सान !
हाहाकारी इंन्सान !
उन्मत्त इंन्सान !
स्वार्थान्ध इंन्सान !

ग्लोबल वार्मींग क्या दर्शाता है ?
जलप्रदूषण, हवाप्रदुषण क्या दर्शाता है ?
किसकी वजह से यह सबकुछ हो रहा है ?
कौन जिम्मेदार है आखिर इसका ?
निष्पाप पशुपक्षी,प्राणी ?
या केवल और केवल एकमात्र मनुष्य प्राणी ?

और आखिरी प्रश्न ?
यह संपूर्ण विश्व, संपूर्ण मानवप्राणी, संपूर्ण मानवसमुह आखिर कहाँ जा रहा है ?
विनाश की ओर ?
अंतिम विनाश की ओर ?
जहाँ पर बचने का कोई भी रास्ता शेष नहीं है !
उसी की ओर ?

हो सके तो सोचो !
क्योंकि निसर्ग, नियती और ईश्वर का क्रोध भयंकर होता है !
और इससे कोई भी बचता भी नहीं है !

तो अल्पमती,अल्पबुद्धि वाला,छोटासा मनुष्य प्राणी कैसे बचेगा ?
और ईश्वर भी इन्हें क्यों बचायेगा ?

मेरी बात सही है या गलत इसका निर्णय भी आप सभी को ही करना है !

आगे भगवान की इच्छा !!

हरी ओम्

🙏🙏🙏

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