हम तो चले परदेश !!
✍️ २२२४
विनोदकुमार महाजन
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भारतीय लोकतंत्र !
और लोकतंत्र का सिस्टम ?
कैसा था ?
अनेक बुध्दीवान,गुणवान, योग्यतापूर्ण व्यक्तियों को…बहुतांश जगहों पर ,
कभी भी कीमत न देनेवाला,
गुणवत्ता पूर्ण व्यक्तियों को ,योग्य न्याय न देनेवाला, उल्टा, उनका ही मानसिक उत्पीड़न करनेवाला, भयंकर विचित्र सिस्टम !
सभ्य, सुसंस्कृत लोगों को,बारबार अपमानित करने वाला ही था सचमुच में ?
और इसी कारणवश, अनेक गुणवत्ता पूर्ण व्यक्तियों ने,यहाँ के भयंकर लोकतंत्र से तंग आकर,
अपना देश ही छोडने का निर्णय लिया !
और ?
ऐसे व्यक्ति विदेशों में जाकर, बसने लगे !
वहाँ का उत्कृष्ट जीवन ,गुणवान व्यक्तियों का…यथोचित मानसंन्मान,योग्य कीमत,उत्तम न्यायप्रणाली और ? अच्छी खासी आमदनी !
इसी के कारण,हमारे देश के अनेक विद्वतापूर्ण व्यक्ति, यहाँ के सिस्टम से तंग आकर, विदेशों में ” भाग गये ! ”
( या उन्हें यहाँ के सिस्टम ने,भागने के लिए… मजबूर कर दिया ? )
वहाँ… विदेशों में जाकर, अच्छा खासा पैसा कमाया ! एक आनंदी जीवन की शुरूआत की !
एक प्रतिष्ठित जीवनप्रणाली आरंभ की !
अनेक भारतीयों ने ऐसा ही रास्ता चुना !
तंग आकर ,विदेशों में भाग गये !
और ?
वहाँ की शासनप्रणाली के लिए, उनके उत्कर्ष के लिए, भरपूर योगदान भी दिया !
अनेक देशों में, हमारे देश के, अनेक योग्यतापूर्ण व्यक्ति, जाकर बस गये,और वहाँ का विकास किया !
हमारे देश में ऐसे लोगों को प्रोत्साहित करने के बजाए, बारबार अपमानित, प्रताडित क्यों किया गया ?
क्या यह भी एक भयंकर साजिश थी ? इसकी भी कानूनी जाँच होनी आज की घडी में,अनिर्वार्य है !
इसका मास्टर माइंड कौन था ?
ऐसा जानबूझकर करने की वजह क्या थी ?
यह महत्वपूर्ण बात भी संपूर्ण देश तथा विदेशों में बसे हुए, भारतीय नागरिक जानना चाहते है !
” हम तो चले परदेश ”
कहकर, हमारे देश को,हमेशा के लिए, ” अलविदा ” , कहनेवाले अनेक लोगों ने सदा के लिए देश त्याग दिया !
और उनकी मानसिकता भी ऐसी बन गई की,
वापिस कभी भी अपने देश में आने के लिए, तैयार हो नहीं हुए !
यहाँ आकर भी आखिर क्या मिलेगा ?
अपमान, नींदा,मत्सर, अवहेलना, प्रताडऩा के सिवाय कुछ हासिल ही नहीं होगा ?
तंग आ गये अनेक लोग, इसी कारण से !
यहां की गंदी राजनीति, सडा हुवा सिस्टम, बजबजपूरी,खराब मानसिकता, विनावजह का द्वेष – मत्सर,से तंग आकर,सदा के लिए देश छोडने वालें,भारतीयों का… ” आदर्श राष्ट्रप्रेम ” फिर भी जागृत ही रहा !
अंदर की आत्मपीड़ा, आत्मक्लेश, अंदर दबाकर, उन्होंने, राष्ट्रोन्नति के लिए ,राष्ट्रोत्थान के लिए , हमेशा योगदान दिया !
यह होता है राष्ट्रप्रेम !!
सभी राष्ट्रप्रेमियों के नशीब में आखिर, इतनी भयंकर प्रताडऩा क्यों आ गई ?
किसने ऐसा किया ?
यहाँ की न्यायप्रणाली को,सिस्टम को तंग आकर,
” चले गये वह सभी परदेश ! ”
आखिर ऐसा क्यों हो गया ?
अनुत्तरित प्रश्न है ये ?
या कुछ वजह थी इसके पिछे ?
मैं भी अब बारबार यही सोच रहा हूं की,चलो अब हम भी विदेशों में चलते है !
आत्मक्लेश वाला ,भयंकर नारकिय जीवन त्यागकर, विदेशों में जाकर बसते है !
” हमारे ही लोगों को ” ,
हमारी कीमत भी नहीं है, और जरूरत भी नहीं है… तो यहाँ रहने से आखिर क्या फायदा ???
हम भी चलें परदेश !!
हरी ओम्
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