धनदौलत चाहिए या ईश्वर ?
✍️ २१८८
विनोदकुमार महाजन
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एक तराजु में भयंकर मुसिबतों का दौर है,मगर फिर भी उसमें
सद्गुरू के चरणकमल और खुद ईश्वर उपस्थित है…
और दूसरे तराजु में सभी सुखों का भंडार है,मगर उसमें सद्गुरू चरण और ईश्वर नही है तो…?
आप किसे चुनेंगे ?
साधारण मनुष्य सद्गुरू चरण और ईश्वर को त्यागकर, केवल सभी सुखों का भंडार ही स्विकार करता है ?
मगर सिध्दपुरूष, महापुरुष, साधुसंत सभी सुखों का भंडार त्यागकर,भयंकर मुसिबतों वाला तराजु ही स्विकार करेंगे ! क्योंकि सद्गुरू चरण और साक्षात ईश्वर के कृपा का असली धन का भंडार तो,उसी तराजु में ही मौजूद होता है !
सद्गुरु कृपा और ईश्वर प्राप्ति भी,कोई साधारण घटना नहीं है ! सद्गुरु कृपा के लिए,तपना पडता है !
समय आयेगा तो,मुसिबतों का जहर भी हजम करना पडता है ! मुसिबतों के अनेक सागर भी पार करने पडते है ! अनेक ईश्वरी अग्नीपरीक्षा तथा सत्वपरीक्षाएं भी देनी पडती है !
रिश्तेनाते तथा धनवैभव का मोहमई तथा झूठा मृगजल भी त्यागना पडता है !
तभी ईश्वर श्रेष्ठत्व बहाल करता है ! परीक्षा पास किये बगैर वह श्रेष्ठत्व कैसे देगा ?
और यही फर्क होता है,साधारण मनुष्य प्राणी और सिध्दपुरूषों में !
इसिलिए सिध्दपुरूष और महापुरुष हमेशा श्रेष्ठत्व को प्राप्त करते है !
क्योंकि ईश्वर प्राप्ति के लिए, अनेक मुसिबतों के भयंकर जहर भी हजम करने की भी क्षमता उन्हीमें होती है !
और इसिलिए, ईश्वर भी ऐसे ही सर्वश्रेष्ठ ,समर्पित भक्तोंपर ही सच्चा प्रेम करता है ! और निरंंतर, हरपल उन्हीके साथ भी रहता है !
रिश्तेदारी और धनवैभव के मोहजाल में जो फँसता है,वह शायद… कभी महापुरुष, सिध्दपुरूष नहीं बन सकता है !
मोहमाया का यह चक्रव्यूह जिसने भेदन किया,वहीं ईश्वर स्वरूप बन गया !
सद्गुरु कृपा सभी असंभव कार्यों को संभव बनाते है !
ईश्वर प्राप्ति भी,सद्गुरु कृपा के सिवाय असंभव होती है !
हरी ओम्
हरे कृष्णा
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