Mon. Sep 16th, 2024

अपयश का जहर !!!

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सबसे महाभयानक होता है….
अपयश का जहर !!!
लेखांक : – २०२७

विनोदकुमार महाजन
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सबसे महाभयानक अपयश का जहर होता है साहब !
हर क्षेत्र में यश मिलना इतना आसान नही होता है !
बहुत पापड बेलने पडते है !
अनेक चुनौतीयों का सामना करना पडता है !
अनेक मुश्कीलें पार करनी पडती है !
प्रारब्ध, संचित को भी हराना पडता है !
अनेक मुकाम,अनेक डगर पार करने पडते है !
अनेक विपदाओं का आपदाओं का सामना करना पडता है !
बारबार अपयश,अपमान, मनस्ताप, मानहानी, आत्मक्लेश का सामना करना पडता है !
अनेक आर्थिक मुसिबतें झेलनी पडती है !
बहुत जालीम जहर हजम करने पडते है !
जहर के अनेक सागर पार करने पडते है !
बारबार खून के आँसू भी पिने पडते है !
स्वकीय, समाज का भी भयंकर अवरोध सहना पडता है !
अनेक रूकावटें पार करनी पडती है !

भयंकर तप भी करना पडता है !

ईश्वर भी भयंकर कठोर अग्नीपरीक्षाएं,सत्वपरीक्षाएं लेता है !
नशीब भी भयंकर परीक्षाएं लेता है !
नियती भी बारबार रूलाती है !

तभी जाकर कोई,
लाखों में एखाद महात्मा दिव्य मंजील तक,ध्येय तक,कार्यसफलता तक पहुंच जाता है !!!

सावरकर, सुभाषबाबू जी ने कितने दुखदर्द झेलें ?
राजे शिवबा, राजे संभाजी जी ने कितने दुखदर्द झेलें ?
महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान जी ने कितने दुखदर्द झेलें ?
गुरूगोविंद सिंह,राणी लक्ष्मीबाई जी ने कितने दुखदर्द झेलें ?
श्यामाप्रसाद मुखर्जी, करपात्री महाराज जी ने कितने दुखदर्द झेलें ?

याद करों सभी के भयंकर दिन और हजारों चुनौतीयों को !

अनेक महापुरुष, सिध्दपुरूषों ने
अनेक साधुसंतों ने,महंतों ने,
अनेक क्रांतिकारी, समाजसुधारकों ने….
बारबार कितने भयंकर दुखदर्द झेलें ?

और कितने के नशीब में….
अपयश को पार करके
यश हासिल हुवा ?
कितने अपने मंजील तक पहुंचे ?

इसीलिए साथींयों,
हिंदुराष्ट्र निर्माण,
अखंड भारत,
अथवा,
हिदुमय विश्व ,
के निर्माण के लिए अखंड प्रयासरत रहनेवालों को कितनी भयंकर चुनौतीयों का सामना करना पडेगा ?

मूगल, अंग्रेज,काले अंग्रेजों की मानसिक गुलामी करने की आदत सी लगने वाले,निद्रीस्त समाज को,हिलाहिलाकर जगाने से….
समाज की …
” चेतना जगाव अभियान ” से,
सचमुच में अंतीम मंजील मिलेगी ?
या फिर,
अपयश को समाप्त करके,
यशप्राप्ती के लिए,
साक्षात ईश्वरी वरदान ही प्राप्त करना पडेगा ?

संकल्प से सिध्दीयों तक पहुंचने के लिए….
क्या करना पडेगा ?

और हम सभी सत्यप्रेमी,ईश्वर प्रेमी,मानवता प्रेमी,
विश्वमानव को,
हम सभी पुरूषार्थी यों को…
क्या करना पडेगा ?

हम सभी हमारी दिव्य मंजील तक पहुंचकर रहेंगे ?

जी हाँ,
हम सभी हमारी दिव्य मंजील तक पहुंचकर ही रहेंगे !
यश हासिल करके ही रहेंगे !

क्यों ???

क्योंकी ईश्वर भी यही चाहता होगा !
यूग भी बदल रहा है !
समय भी करवट बदल रहा है !

हर क्षेत्र में वैश्विक उथल पुथल आरंभ हो गई है !

तो…???
यश पक्का है !
सौ प्रतिशत !

इसीलिए साथीयों,
चलो दिव्य मंजील की ओर !
बिना थके,बिना हारे….
चलो ध्येयपूर्ती की ओर !

अपयश का भयंकर जालीम जहर पार करके,
चलो….
भव्यदिव्य यशस्वीता की ओर !
समय हमारा इंतजार कर रहा है !

हरी ओम्
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