Mon. Sep 16th, 2024

हे ईश्वर, तूने आखिर यह खेला ही क्यों रचाया ?

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हे ईश्वर, तूने गजब का खेल रचाया।🙏🙏🙏
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जो सच्चे, अच्छे और नेक होते है
उनके साथ हमेशा अनेक विपरीत घटनाएं होती है।
शायद सभी को यह सत्य स्विकारना भी होगा।

अनेक साधुसंतों का भी शायद यही अनुभव रहा होगा।

वास्तव में अगर हम पशुपक्षियों पर प्रेम करेंगे तो सभी पशुपक्षी हमसे उतना ही पवित्र और शुध्द प्रेम ही करेंगे।
बाघ सिंह भी।
क्रूर ,हिंसक और मांसाहारी होकर भी।

और इंन्सानों की दुनिया ?
सभी के अनुभव इंन्सानों की दुनिया पर शायद अलग अलग होंगे।

इंन्सानों की दुनिया में हमेशा विपरीत होता है।
ऐसा क्यों होता है समझ से बाहर है।

अनेक बार ऐसा अनुभव होता है की अगर हम किसी पर…
शुध्द, पवित्र, निष्पाप प्रेम करनेपर भी….
शायद अनेक बार धोका ही मिलता है।
मनुष्य प्राणी ही एकमेव ऐसा है की….
प्रेम करनेपर भी….
अनेक बार दंश करता है,डंख मारता है।
धोका देता है,विश्वासघात करता है।

लालच बहुत बुरी चिज है।

इसीलिए सिध्दपुरूष भी इंन्सानों से हमेशा दूरी बनाए रखते है…
अथवा एकांत में रहते है या फिर निर्जन स्थान पर जाकर, ईश्वरी साधना में ही मस्त रहते है।

और पशुपक्षी भी जबतक इंन्सानों का भरौसा नही होता है….तबतब इंन्सानों से दूरी बनाए रखते है।
जब उन्हें किसी में सच्चा प्रेम दिखाई देता है तभी वह इंन्सानों पर विश्वास करते है…और तभी सच्चा प्रेम भी करते है।

और पशुपक्षी एक बार प्रेम करनेपर जीवन भर के लिए साथ निभाते है और शुध्द, निरपेक्ष प्रेम ही करते रहते है।

इसीलिए मायावी दुनिया भी केवल इंन्सानों की ही होती है।पशुपक्षियों की नही।

अनुभव करके देख लो।
चिडिय़ा कौवे भी उसी घर में जाकर दाना पानी खाते है…जहाँ पर दानापानी के साथ प्रेम, विश्वास भी मिलता है।

साँप ही केवल ऐसा प्राणी होता है की,
कितना भी दूध पिलाओ दंश ही करता है।
और शायद इसीलिए साँपों पर और साँप जैसे इंन्सानों पर कोई भरौसा नहीं करता है।

अजब गजब की इंन्सानों की दुनिया।
हे ईश्वर, चौ-याशी लक्ष योनियों में से तूने…
छोटेसे मगर महाभयंकर दिमाग वाला इंन्सान ही नही बनाया होता….
तो शायद सृष्टि असुंतलन का खतरा पृथ्वी पर कभी भी नहीं आता।

आखिर सब तेरा ही खेल प्रभु।
सुर – असुरों का बैर और
धर्म – अधर्म का निरंतर चलता संघर्ष भी आखिर तूने ही बनाया।

बाकी पशुपक्षियों में यह विपरीत खेला है ही नहीं।

आखिर तेरी लीला तू ही जाने।
तूने ऐसा विपरीत खेला रचा ही क्यों आखिर ?

हरी ओम्
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विनोदकुमार महाजन

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