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कालभैरव नाथ की अत्यंत तेजस्वी शक्तियां भक्तों को हमेशा सहायता करती है !!!

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ॐ शिवगोरक्ष योगी आदेश

८-५-२०२२
कालभैरव नाथ देवता अत्यंत जागृत तथा तेजस्वी होते है।आज भी कालभैरव नाथ अनेक अनुभव तथा चमत्कार दिखाते है।
मेरे कालभैरव नाथ के अनुभव बहुत ही दिलचस्प और आश्चर्यजनक तरीकों से मुझे मिले है।
महाराष्ट्र, सोनारी में एक जबरदस्त जागृत कालभैरव नाथ का मंदिर है।और मेरी.कुलदेवता भी यही है।मेरी निरंतर साधना की वजह से मुझे अनेक अनुभव तथा आत्मानुभूति प्राप्त होती रहती है।
विशेषता आर्थिक समस्याओं का समाधान तथा अत्यंत पिडादायक हितशत्रुओं को तुरंत नाश ऐसे अनेक अनुभव बारबार मिलते है।
मेरे खिलाफ अगर कोई कारस्थान कर रहा है तो उसका बंदोबस्त, कालभैरव नाथ कृपा से तुरंत हो जाता है।अथवा हितशत्रुओं का समूल नाश हो जाता है।
आप भी जरूर अनुभव करके देख लो।

कलियुग में कालभैरव नाथ की अनेक तेजस्वी शक्तियां आपने भक्तोँ को सहायक होती है,और आशीर्वाद भी देती है।
मेरे जैसे ही अनेक भक्तों को कालभैरव नाथ सोनारी के अनेक अनुभव आते रहते है।

जो भी व्यक्ति अत्यंत घोर मुसिबतों में फँसा है,उसके लिए कालभैरव नाथ उपासना निश्चित ही फायदेमंद होती है।

अब विस्तृत जानकारी
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।। भैरव कोतवाल ।।
एक पुरानी पोस्ट

हिंदू सनातनी देवताओं में भैरव जी का बहुत ही महत्व है,
इन्हें काशी का कोतवाल एवं रक्षक देव कहा जाता है ।

भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित है,
भैरव शिवजी के गण और माता पार्वती के अनुचर माने जाते हैं ।

पुराणों में उल्लेख है कि शिव के रूधिर या क्रोधाग्नि से भैरव की उत्पत्ति हुई,
बाद में उक्त रूधिर या अग्नि के दो भाग हो गए- पहला बटुक भैरव और दूसरा काल भैरव ।

नाथ सम्प्रदाय में इनकी पूजा का विशेष महत्व है,
भैरव की आराधना का दिन रविवार और मंगलवार नियुक्त है ।

पुराणों के अनुसार भाद्रपद माह को भैरव पूजा के लिए अति उत्तम माना गया है,
उक्त माह के रविवार को बड़ा रविवार मानते हुए व्रत रखते हैं ।

भैरव आराधना से पूर्व जान लें कि कुत्ते को कभी दुत्कारे नहीं बल्कि उसे भरपेट भोजन कराएँ ।

गृहस्थों को पवित्र होकर ही उस्ताद की आराधना करनी चाहिए,
उनके लिए अपवि‍त्रता वर्जित है ।

कापालिक, अघोरी और विरक्त साधुओं के लिए कोई भी नियम मान्य नहीं,
वो अपनी व्यवस्था अनुसार साधना करते है ।

भैरव जी के अनंत रूप है जिसमे प्रमुख अष्ट भैरव है ।

भैरव जी की साधना सात्विक और तामसिक दोनो रूप में होती है ।

साधना करने से पूर्व गुरु के द्वारा मार्गदर्शन प्राप्त करे,
और गुरु आज्ञा अनुसार ही साधना पथ पर अग्रसर हो ।

किसी भी दैवीय शक्ति की साधना में भोग विधान का बड़ा महत्व रहता है,
इसलिए अपनी पारिवारिक मान्यताओं, विचारों, संस्कारों और अपनी मानसिक क्षमता को ध्यान रखते हुए देवता और साधना का चयन करना चाहिए ।

क्योंकि यदि साधना में ग्लानि या भय का भाव आया तो अनर्थ होने से कोई नही रोक सकता ।

स्वार्थ, अनिक्षा और मजबूरी में की गई कोई भी भक्ति, जप, साधना फल नहीं देती ।

स्वम को हमेशा आपमे इष्ट का सेवक ही मानना चाहिए,
मैं साधक हूँ, भक्त हूँ, सिद्ध हूँ ये भाव सदैव पतन का सूचक है ।

कालभैरव की पूजाप्राय: पूरे देश में होती है,
और अलग-अलग अंचलों में अलग-अलग नामों से वह जाने-पहचाने जाते हैं ।

भैरव का भयदायी और उग्र देवता के रूप में प्रचलित हैं,
भूत, प्रेत, पिशाच, पूतना, कोटरा और रेवती आदि की गणना भगवान शिव के अन्यतम गणों में की जाती है,
शिवजी के सब गणों के अधिपति या सेनानायक हैं महा कालभैरव ।

भारत में भैरव के प्रसिद्ध मंदिर हैं जिनमें काशी का काल भैरव मंदिर सर्वप्रमुख माना जाता है ।

दूसरा नई दिल्ली के विनय मार्ग पर नेहरू पार्क में बटुक भैरव का पांडवकालीन मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है ।

तीसरा उज्जैन के काल भैरव की प्रसिद्धि का कारण भी ऐतिहासिक और तांत्रिक है ।

नैनीताल के समीप घोड़ाखाल का बटुकभैरव मंदिर भी अत्यंत प्रसिद्ध है,
यहाँ गोलू देवता के नाम से भैरव की प्रसिद्धि है ।

जयगढ़ के प्रसिद्ध किले में काल-भैरव का बड़ा प्राचीन मंदिर है ।

मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के ग्राम अदेगाव में भी श्री कालभैरव का मंदिर है जो किले के अंदर है जिसे गढ़ी ऊपर के नाम से जाना जाता है ।

कहते हैं औरंगजेब के शासन काल में जब काशी के भारत-विख्यात विश्वनाथ मंदिर का ध्वंस किया गया,
तब भी कालभैरव का मंदिर पूरी तरह अछूता बना रहा था ।

जनश्रुतियों के अनुसार कालभैरव का मंदिर तोड़ने के लिये जब औरंगज़ेब के सैनिक वहाँ पहुँचे तो अचानक पागल कुत्तों का एक पूरा समूह कहीं से निकल पड़ा,
और उन कुत्तों ने जिन सैनिकों को काटा वे तुरंत पागल हो गये और फिर स्वयं अपने ही साथियों को उन्होंने काटना शुरू कर दिया ।

बादशाह को भी अपनी जान बचा कर भागने के लिये विवश हो जाना पड़ा,
उसने अपने अंगरक्षकों द्वारा अपने ही सैनिक सिर्फ इसलिये मरवा दिये किं पागल होते सैनिकों का सिलसिला कहीं खु़द उसके पास तक न पहुँच जाए ।

भारतीय संस्कृति प्रारंभ से ही प्रतीकवादी रही है और यहाँ की परम्परा में प्रत्येक पदार्थ तथा भाव के प्रतीक उपलब्ध हैं,
यह प्रतीक उभयात्मक हैं – अर्थात स्थूल भी हैं और सूक्ष्म भी,
सूक्ष्म भावनात्मक प्रतीक को ही कहा जाता है -देवता।

चूँकि भय भी एक भाव है,
अत: उसका भी प्रतीक है, उसका भी एक देवता है,
और उसी भय का हमारा देवता हैं- महा कालभैरव ।।

भैरव उपासना से सभी भय, संकट, ब्याधि, गृह दोष, भौतिक परेशानी का नाश होता है ।।

भाव रहे कुछ ऐसा मेरा कि तुझे अगर स्वीकार हो मेरी सेवा,
तो मुक्त करना आवागमन से चरणों मे शरण देना पगलु को मेरे देवा ।।

शिवगोरक्ष कल्याण करे ।
शिवशक्ति भक्ति, शक्ति, मुक्ति, सद्बुद्धि दे ।
भैरव उस्ताद सदा सहाय ।।

आदेश😌

संकलन : – विनोदकुमार महाजन

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