भगवान की प्राप्ति आसान नहीं है, कठिन है।
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सृष्टि रचियते भगवान को पहचानना आसान नहीं है।और उसे प्राप्त करना तो बहुत ही कठिन होता है।जनम जनम तक खडतर तपश्चर्या तो करनी पडती ही है।और उसके प्राप्ति के लिए सर्वस्व त्यागना भी पडता है।सर्वस्व समर्पित प्रेम ही भगवत् प्राप्ति की ओर ले जाता है।सर्वस्व समर्पित प्रेम होकर भी,भगवान किसीको युंही अपने नजदीक नही आने देता है।अनेक कठोर अग्नीपरिक्षाएं,सत्वपरिक्षिएं देनी होती है।
इसीलिए यह कोई बच्चों का खेल नहीं है।
और आज इंन्स्टंट जमाने में तो तुरंत फलप्राप्ति चाहिए लोगों को।
आग में जलना पडता है ईश्वर प्राप्ति के लिए।
मगर जो सद्गुरु के चरणों में समर्पित हो जाते है तो सद्गुरु, भक्त और भगवान को जोडते है।और भवसागर पार कराके ही देते है।
इसके लिए सद्गुरु भी पहुंचे हुए चाहिए और चेला भी हार नही मानने वाला चाहिए।तभी आज्ञाचक्र में शिव-शक्ति का सुंदर मिलन हो जाता है।और सद्गुरु कृपा से चेला भी एकदिन ईश्वर स्वरूप हो जाता है।
सो अहम्..सो अहम्..
मगर हर जिव मोह माया, धन वैभव,यश किर्ती, मान सन्मान, अपमान अहंकार में,माया के मोहमई बाजार में इतना अटक जाता है की,भगवान का अस्तित्व भी है यही बात भूल जाता है।
तो भगवत् प्राप्ति कैसी?
अगर इससे भी मुक्त हुवा, तो अत्यंत भयंकर संकटों की मालिकाएं शुरू हो जाती है।और इंन्सान भगवान को ही कोसने लगता है।
फिर भगवत् प्राप्ति कैसी?
फिर भगवान कुछ सिध्दीयाँ,ब्रम्हज्ञान जैसे प्रलोभन भेजता है।इसमें भी अनेक महात्माएं फँसकर रह जाते है।चक्रव्यूह भेदकर आगे नही जा सकते।अटक जाते है।
फिर भगवत् प्राप्ति कैसी?
मगर सच्चा भक्त इसका भी त्याग कर देता है।सिर्फ भगवान को ही चुनता है।तब… धिरे धिरे भगवान भी भक्तों के प्रेम, दृढनिश्चय से आनंदित होने लगता है।
और अपने बच्चे को सही मार्ग दिखाकर दर्शन देते है।और उसे भी नर का नारायण अर्थात ईश्वर स्वरूप बना देते है।
नाना नाटक सुत्रधारीया है मेरा भगवान।नर का नारायण युंही नही बनने देते।जब नर का नारायण बनेगा….
और तभी से ही उसका, विश्वोध्दार का अवतार कार्य आरंभ कर देते है।
क्या केवल एक जनम में ही यह सब मुश्किल हो जायेगा?
हरि ओम।
——————————— विनोदकुमार महाजन।