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चक्रव्यूह भेदन करना होगा

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— चक्रव्यूह भेदन —
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भगवान ने हमें जन्म तो दिया है।जन्म मृत्यु तो भगवान के हाथ में है।चाहे मनुष्य हो या अन्य सजीव।
मनुष्य जन्म मिलने पर हमें इच्छा आकांक्षाएं होती है।
जैसे की,किसी को ऐश्वर्य कमाना है,तो कोई धन के लिए दिन रात दौड रहा है।किसिको नाम,इज्जत कमानी है तो किसिको यश चाहिए।तो अनेकों को इज्जत-प्रतिष्ठा चाहिए।
किसिको संकटों से तुरंत छुटकारा, तो किसिको बिमारियों से मुक्ति चाहिए।तो किसिको नौकरी-धंदा-काम चाहिए।
अनेक समस्या और समस्याओं से समाधान चाहिए।
वह भी तुरंत।
मगर प्रारब्ध, नशीब, संचित कर्म यह बात हमें छुटकारा नही देती।और अपेक्षित यश नही मिलता,हाथ में नही लगता।और हम नाराज हो जाते है।
लगातार कोशिश करनेपर भी यश कोसों दूर रहता है तो आदमी हताश-निराश होकर नशीब को कोसता है और दुखों से तडपता रहता है।
यह हकीकत है-मेरी आपकी, हम सभीकी।
और अगर किसिका सपना बडा होता है…और सपना पूरा करने में अनेक रूकावटें आती है तो वह जीव थक हारकर, काफी हताश उदास हो जाता है।
इंन्सान जब मुसिबतों के घोर चक्रव्यूह में पूरा फँस जाता है…और बाहर निकलने के लिए, दुखों से छुटकारा पाने के लिए दिन रात तडपता रहता है..और कोई साथ भी नही देता है बाहर निकलने के लिए… सभी तडपाते रहते है,मजे देखते है,यातनाएं देते है या फिर भाग जाते है तो और भी दुख बढता है।
जब अभिमन्यु चक्रव्यूह में अकेला फँसा था,अकेला लड रहा था तो भगवान श्रीकृष्ण देहरुप से प्रत्यक्ष अभिमन्यु के साथ होकर भी,प्रारब्ध गति अनुसार प्रत्यक्ष परमात्मा भी अभिमन्यु को नही बचा सका था।अर्जुन का बेटा होकर भी-और अर्जुन पर निस्सीम प्रेम होकर भी।
यही तो प्रारब्ध है यारों।
हम सभी भी ठीक इसी तरह हर दिन,हर पल चक्रव्यूह भेदन करने की,दुखों से मुक्ति मिलने कि कोशिश में लगातार रहते है।दिव्य मंजिल की ओर निरंतर बढने कि लगातार कोशिश में रहते है….।
मगर उफ्फ….
संकटों से,दुखों से,मुसीबतों से छुटकारा ही नही मिलता।
और…हमारे ही प्रारब्ध गति अनुसार अगर प्रत्यक्ष परमात्मा श्रीकृष्ण भी हमारे साथ है और वो भी हमें,अभिमन्यु कि तरह सहायता नही करता है तो…दुख,भयंकर दुख तो होता ही है।भयंकर आत्मक्लेश तथा यातनाएं तो होती ही है।
है ना मेरे प्यारे सभी दोस्तों,मित्रों…???
कोई बात नही।
ऐसा होने के बावजूद भी,लगातार कोशिश मेन रहने के बावजूद भी हमें निराशा आ रही है,यश नही मिल रहा तो भी…!!!
यारों……
हिंदुराष्ट्र निर्माण के लिए, अखंड हिंदुराष्ट्र निर्माण का हमारा संकल्प और ध्यास पूरा करने के लिए… ईश्वरी राज्य लाने के लिए,विश्व मानवता की जीत के लिए, भयंकर हैवानियत कि हार के लिए,
हमें…
सभी को…
एक होकर…
लगातार…
निरंतर….
अथक….
लडते ही रहना है।
चाहे हमारा प्रारब्ध कुछ भी हो….
चक्रव्यूह भेदन के लिए हमें सदैव…
अखंड सावधान होकर
तत्पर होकर…
प्रयत्नरत तो रहना ही है।
न जाने भगवान भी हमारे अथक प्रयत्न, लगातार कोशिशों से प्रसन्न होकर हमारा प्रारब्ध ही बदल दे…
और हमारे झोली में जो हम चाहते है..वही अपेक्षित यश भी दें..।
तो…???
चलो दिव्य मंजिल की ओर।बिना हारके।
(लेख लंबा होने के बाद भी आपने पूरा पढ लिया इसीलिए धन्यवाद।
हरी ओम।
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— विनोदकुमार महाजन।

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