जो दुसरों को संन्मानीत करता है,
ईश्वर उसको संन्मानीत करता है।
जो दुसरों को अपमानित करता है,
ईश्वर उसको अपमानित करता है।
इसिलिए साथीयों,
कभी किसी को संन्मानीत करों या ना करों,
मगर एक बात पक्की ध्यान में रखिए की,
कभी भी किसी को अपमानित मत करो।
क्योंकी ईश्वर का और कुदरत का न्याय भी ,
जैसे को तैसा ही होता है।
जब दुसरों को विनावजह से पिडा देते हो,अपमानित करते हो,दुख देते हो,
तो ईश्वरी न्याय के अनुसार वह आपके तरफ ही एक दिन लौटकर आनेवाला ही है।
इसिलिए सदैव दुसरों को संन्मानीत करो और ईश्वरीय आनंद का अनुभव करों।
हरी ओम्
विनोदकुमार महाजन