Wed. Sep 18th, 2024

प्रारब्ध गति का जहर हजम करके,बढते है नवयुग निर्माण की ओर

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प्रारब्ध गती का जहर,
हजम किए बगैर,
दुखों से मुक्ति नही मिलती !
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जहर,
जो मनुष्यों का जीवन समाप्त कर देता है।उध्वस्त कर देता है।
और ठीक इसी प्रकार से अगर हमें,हर पल,हर समय,हर दिन भयंकर दुखों का,यातनाओं का,पिडा का,अपमान का,बिमारियों का,अपयश का,भयंकर आर्थिक मुसिबतों का,स्वकियों के विरोध तथा भयंकर अपमानजनक तथा मानहानिकारक बर्ताव का,सामना करना पडे,ऐसा जीवन जीना पडे….
हमारी सच्चाई, अच्छाई, नेकी,पावित्र्य, मन की शुध्दता एवं स्वच्छता, सभी के प्रती दिव्य प्रेम होकर भी…
अगर हमें भयंकर नारकीय,दुखदायी, क्लेशदाई,अपमानित जीवन जीना पडता है…तो यह जरूर हमारे ही प्रारब्ध गती का खेल है,ऐसा समझ लीजिए।

यह एक भयंकर चक्रव्यूह जैसा जीवन होता है।शापित जीवन।और इससे बाहर निकलना भी भयंकर क्लेशदाई होता है।अथवा अनेक बार असंभव भी होता है।

इसीलिए ऐसा प्रारब्ध गती का जहर हजम करना भी भयंकर क्लेशदाई होता है।
अगर असली जहर पियेंगे तो एक तो तत्काल मृत्यु होगी।अथवा योग्यतापूर्ण बैद्य द्धारा इसका इलाज करके,यातनाओं से,दुखों से मुक्ति भी मिल सकेगी।

मगर प्रारब्ध गती का जहर हजम करना इतना आसान नही होता है।

अगर सत्कर्म करने पर भी,चौबीसों घंटे मुसीबतों की आग ही आग,अथवा मुसिबतों के आग में जलना, अथवा मानव रूपी,सैतानी, भयंकर जहरीले साँपों के बीच में चौतरफा फँस जाना,अथवा दुष्टों द्वारा सत्कर्म करने पर भी जानबूझकर अपमानित कर देना,भयंकर… अती भयावह आर्थिक मुसीबतों का सदैव सामना करना,हाथ में सोना लिया…तो भी उसकी मिट्टी बन जाना,अनेक प्रयासों के बाद भी बारबार हाथ में यश के बजाए अपयश ही आना…

यही होता है साथियों ऐसे भयंकर समय में।इसीलिए यह भयंकर प्रारब्ध का जहर हजम करना इतना आसान नही है।

हमारा मन शुध्द होनेपर भी,सभी के कल्याण का उदात्त भाव होकर भी समाज द्वारा, स्वकियों द्वारा अगर हमें बारबार प्रताड़ित किया जाता है,अपमानित किया जाता है,हमारी छोटीसी गलती का भी हमारे विरोधियों द्वारा भयंकर बडा पहाड़ बनाकर उसको चारों तरफ प्रस्तुत किया जाता है,जानबूझकर आग ही तरह चारों तरफ फैलाया जाता है,हमें जानबूझकर बदनाम किया जाता है,टारगेट किया जाता है…
तो…
यह भी हमारे प्रारब्ध गती का ही खेल है।और दुष्ट लोग,समाज में अच्छाई का मुखौटा धारण करनेवाले, नौटंकीबाज भी हमें भयंकर मुसीबतों में तथा नारकीय जीवन में डालने की बारबार कोशिश भी कर सकते है।

और यह जहर हजम करना इतना आसान नही होता है।
तंग आकर कोई आत्महत्या करता है।कोई पागल हो जाता है।कोई नशा के अधीन हो जाता है।कोई भयंकर बडा अपराधी बन जाता है।तो प्रतिशोध के भयंकर आग में जलकर भयंकर बडा हत्यारा बनकर,सलाखों के पिछे संपूर्ण जीवन बरबाद कर देता है।

ऐसे भयंकर समय में,विपदाओं की घडी में,प्रारब्ध गती के भयंकर जहर के समय में भुगत रहे भयंकर यातनाओं में अगर कोई एक बुंद भी,अमृत का..मतलब आधार का ,सहारे का,
एक शब्द भी देता है,आसरा देता है…
तो वह क्षण अत्यंत अवर्णनीय भी होता है।और उसी समय में हमें अत्यधिक आनंद भी होता है।
मगर साथियों, प्रारब्ध गती के अनुसार ऐसा एक शब्द का आधार देनेवाला भी दुर्देव से कोई नही मिलता है।अथवा हमारे सहयोग के लिए सामने नही आता है।

तो इससे बचने का उपाय क्या है ?
उपाय है।
अगर ईश्वर ने जहर का निर्माण किया है तो अमृत का भी निर्माण किया है।
और ऐसे भयंकर समय में सद्गुरु के चरणों में सबकुछ समर्पित करना अथवा संपूर्ण समर्पित भाव से ईश्वर के शरण में जाना ही इससे छूटने का एकमात्र उपाय है।
अखंड ईश्वरी चिंतन,गुरूमंत्र का अखंड जाप,कठोर तपस्या ही ऐसे भयंकर जहर से छुटकारा दे सकता है।

और जब आप ऐसा प्रारब्ध गती का भयंकर जहर हजम कर रहे होते है तब…
केवल और केवल सद्गुरु अथवा ईश्वर ही आपको इससे छुटकारा अथवा मुक्ति दिला सकते है।
और जब यह भयंकर जहर हजम होता है….
तो…
सद्गुरु कृपा से,अथवा ईश्वरी कृपा से,
आप,
विश्व विजेता भी
बन सकते हो।तो इससे बढकर और भाग्य क्या हो सकता है ?

भाग्य की रेखा बदलने का सामर्थ्य ईश्वर की कृपा में होता है।

मैंने तो अनेक सालों का यह भयंकर, भयानक, भयावह प्रारब्ध गती का जहर मेरे सद्गुरु आण्णा की कृपा से हजम किया है और ईश्वरी कृपा के अनेक अमृत कूंभ खुद ईश्वर ने ही मुझे दिये है।
और अगला रास्ता भी आसान कर दिया है।

भाईयों,
अगर प्रारब्ध बदलने की भी शक्ति सद्गुरु के चरणों में शरण जाने में अथवा ईश्वरी चिंतन में होती है…तो…
हम सभी इसी आदर्श रास्ते से जाकर हमारे जीवन का अखंड कल्याण क्यों न करें ?

तो आवो चलें,इसी ईश्वरी कृपा के आधार पर हम युग बदलने का और नया युग आरंभ करने का संकल्प करते है।और हर पल ,एक एक कदम हमारी दिव्य मंजिल की ओर बढते रहते है।

संपूर्ण देश का,संपूर्ण विश्व का,संपूर्ण मानवजाति का भाग्य बदलने का भी हम सभी मिलकर शुभ संकल्प करते है।

चलो नये युग की ओर।
चलो नवसमाज निर्माण की ओर।

हरी ओम्
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विनोदकुमार महाजन

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