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पवित्र प्रेम

 क्या आपका प्रेम पवित्र है।

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ऐसा कहते है की,प्रेम पवित्र होना चाहिए।चाहे यह प्रेम भगवान के प्रती हो या फिर अपनों के प्रती।

स्वार्थ, मोह,अहंकार से हटकर, सर्वस्व समर्पित प्रेम ही सच्चा होता है।

क्या आप सभी भी ऐसा पवित्र प्रेम करते हो?

अगर आपकी आँखों में दुख के आँसु आ जाते है…और आपको ऐसा लगता है की,मेरे आँसु देखकर, मेरा दुखदर्द देखकर खुद भगवान के आँखों में भी आँसु आते है।अगर…

आपका प्रेम पवित्र है,सही है,सच्चा है,निष्पाप है और…भगवान के लिए आपके मन में दृढ विश्वास है तो…

आपका दुखदर्द, आपके आँसु देखकर जरूर भगवान के आँखों में भी आँसु जरूर आयेंगे ही।

इसके लिए आपका प्रेम, विश्वास, सच्चाई, श्रध्दा पवित्र होना ही अनिवार्य है।

और इसको ही बोलते है…

भक्त और भगवान का आत्मशक्ति और परमात्म शक्ती से एकरूप होना।

देह दो आत्मा एक- दुखदर्द, सुखदुख एक।

जैसे…

गुरू – शिष्य,राम-हनुमान, कृष्ण-अर्जुन, राधा-कृष्ण, मिरा-कृष्ण, आण्णा – बापू, भक्त -भगवंत।

हरी ओम।

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—  विनोदकुमार महाजन।

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