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ऐसे होते है महापुरुष

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ऐसे होते है,
महापुरुष…!
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सत्य के लिए संपूर्ण जीवन समर्पित करनेवाले,
सिध्दांतों के लिए मर मिटनेवाले,
परिणामों की फिकर,पर्वा नही करनेवाले,
जबरदस्त सामर्थ्यसंपन्न,शक्तीमान, अतुट,दुर्जनों के सामने कभी भी नही झुकने वाले,
तेजस्वी, तपस्वी,
ऐसे होते है महापुरुष, दिव्य पुरूष, अवतारी पुरूष।सिध्दांतों के लिए
सभी सुखों का,सर्वस्व का त्याग करके,दुखों को गले लगाने वाले,निर्भय फिर भी दयालु, ममतालु,
ऐसे होते है महापुरुष।
याद करो मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम को,श्रीकृष्ण को,राजा शिवाजी को,राजा संभाजी को,सावरकरजी को,सुभाषचंद्र बोस जी को,अनेक क्रांतिकारीयों को।
सिध्दांतों के लिए सभी ऐश्वर्य का त्याग करके,सुखों का त्याग करके,
दुखों का स्विकार किया।
खडतर जीवन का स्वीकार किया।
राजे संभाजी ने मृत्यु को गले लगाया।मगर दुष्ट, दुरात्मा, दुर्जन औरंगजेब के सामने झुके नही।भयंकर अती पिडादायक,दुखदाई, क्लेशदायक मृत्यु को गले लगाया।मगर सिध्दांतों को छोडा नही।दुष्टों के सामने झुके नही।मृत्यु को भी डरे नही।सत्ता, संपत्ति के लालच में खुद का आत्मा बेचा नही।
ऐसे होते है महापुरुष।
राजे शिवाजी ने महाभयंकर, क्रुर औरंगजेब की और परिणामों की पर्वा किए बगैर राजसभा में गर्जना करके,औरंगजेब जैसे पापात्मा को भी सबक सिखाया।
ऐसे होते है महापुरुष।
निश्चल,अटल,निर्भय।

स्वामी विवेकानंद जी कहते है,
महापुरुष अपने सिध्दांतों पर इतने अटल होते है की,चाहे संपूर्ण विश्व भी एकसाथ उनके विरोध में खडा हो,
तो भी महापुरुष डगमगाते नही है।

और दुर्दैवता से,
सभी महापुरुषों को,सिध्दपुरूषों को,दिव्य पुरूषों को,अवतारी पुरुषों को,
समाज-स्वकीय हमेशा प्रताडित करते है,अपमानित करते है,भर्स्सना करते है।
और….
इतना होने के बावजूद भी वही महात्मा, महापुरुष अपने दिव्य मंजिल तक पहुंचकर,अपना अटल स्थान प्राप्त करके ही रहते है।
और विडंबना, विरोधाभास ऐसा होता है की,उस महात्मा को
पिडा देनेवाले भी उन्ही महात्माओं का मंदिर निर्माण करते है,सोने का कलश लगाते है।
दुर्दैव हिंदु समाज का,और हिंदु समाज में जन्म लेनेवाले महापुरुषों का।
और फिर भी वैशिष्ट्य है सनातन हिंदु धर्म का,की फिर से,बारबार ऐसे महान आत्मे हिंदु धर्म में ही जन्म लेते है,और समाज का उध्दार भी करते है।
धन्य है सनातन हिंदु धर्म।धन्य होते है इसमें जन्म लेनेवाले महापुरुष।

हरी ओम।
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विनोदकुमार महाजन।

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