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निष्क्रिय सज्जन

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निष्क्रिय सज्जन…!
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जी हाँ साथीयों, निष्क्रिय सज्जन।यह एक भयंकर समस्या है समाज में।
भयंकर बीमारी।
सज्जनों को हमेशा सजग और सतर्क होकर सत्य की रक्षा,धर्म की रक्षा करनी ही होगी।
कर्मण्य,अकर्मण्य के झूटे विवादों में मुझे दिलचस्पी नही है।और नाही निष्क्रिय सज्जनों के प्रती अनादर है।
फिर भी,
सज्जन व्यक्ति आत्मोद्धार तो करती है मगर समाज के लिए कुछ नही करती है।सबकुछ ईश्वर पर छोड देती है या फिर हर एक के अपने अपने कर्म गतीपर या प्रारब्ध गती पर छोड देती है।
फिर भी मेरा कहना है की सज्जनों ने कभी भी निष्क्रिय नही रहना चाहिए।सदैव सक्रिय रहना चाहिए।
अगर श्रीकृष्ण धर्मरक्षा के लिए शस्त्र ( सुदर्शन )हाथ में नही उठाते,अगर राजे शिवाजी आसुरिक संपत्ति के विरू हाथ में तलवार नही उठाते( अथवा गांधीजी के तत्वानुसार अहिंसा धर्म का पूर्ण स्वीकार करते तो क्या राजे शिवाजी को औरंगजेब क्षमा करता ?तो फिर गांधीजी को, शिवाजी राजे को भटके हुए देशप्रेमी… कहने का अधिकार कतई नही है…गांधीजी का यह एक तो आधुरा तत्वज्ञान था?
या फिर और कुछ…?
यह संपूर्ण विषय संशोधन का तथा विस्तृत लेखन करने का है।
खैर,यह विषय संपूर्ण अलग है )
या फिर मोदिजी राजनीति में नही आते…तो…?
तो क्या होता…?
सब अधर्म ही अधर्म, और पाप का महाभयंकर अंधियारा।
हाहाकार मच जाता।

इसीलिए सज्जनों ने हमेशा सक्रिय रहना ही चाहिए।अधर्म का विरोध करना ही चाहिए।और अगर समय की माँग है तो हाथ में शस्त्र धारण करना ही चाहिए।
( जैसे की ईश्वर को भी अहिंसा का त्याग करके शस्त्र उठाना पडा था )
और आज लोकतंत्र में सबसे शक्तिशाली हथियार है लेखनी।अधर्म का विरोध करने के लिए जबरदस्त शक्तिशाली हथियार।

यथोचित बुध्दि के बल पर समय समय पर,अधर्म का विरोध करना ही चाहिए।
एक उदाहरण देता हुं,
कश्मीरी हिंदु सज्जन ( पंडित )अगर भागने के बजाय अगर एक होकर हाथ में शस्त्र उठाते और मरने मारने पर तुले होते तो…क्या कश्मीरी पंडितों को आज त्राही माम् होकर,दस दिशाओं में सैरभैर होकर भटकना पडता ?
और विश्व के कोने कोने से जहाँ जहाँ से हिंदु भागा है,वहाँ पर आज अधर्म का अंधियारा होता?संस्कृति की तबाही होती?मंदिर गिराए जाते?

आक्रमणकारियों से जादा दोष मैं निष्क्रिय सज्जनों को देता हुं।क्योंकि अगर एक सज्जन अगर सक्रिय होकर और शक्तीसंपन्न होकर दस सज्जनों को संगठित और सक्रिय तथा शक्तिशाली बनाता है तो…वह दस सज्जन और हजारों.. लाखों सज्जनों को सक्रिय एवं सतर्क बनाते है।
उदासिनता और निष्क्रिय सज्जनता की वजह से हमारे धर्म की,सत्य की आजतक अतीभयंकर क्षती हो चुकी है।
इसीलिए निष्क्रिय सज्जनों को तथा किताबी पंडितों को मैं नम्रतापूर्वक आवाहन करता हुं की,
राष्ट्र रक्षा,
धर्म रक्षा,
सत्य की रक्षा,
कुदरती कानून की रक्षा,
ईशत्व की रक्षा,
के लिए… निष्क्रिय सज्जनता का त्याग करके सक्रिय सज्जन बनना ही होगा।
हिंदु धर्म को,संस्कृति को,देवीदेवताओं को,सत्य को अगर कोई जानबूझकर बदनाम करने की मुहिम चला रहा है तो ताबडतोड उस अधर्मी को,निष्क्रिय सज्जनता का त्याग करके मुंहतोड,करारा जवाब देना ही चाहिए।

बैराग्य यह उच्च कोटी की अवस्था होती है।मगर उच्च कोटी का बैरागी अगर निष्क्रिय रहकर खुले आँखों से अधर्म और पाप को मौन होकर देखता है,तो यह भी अधर्म को बढावा देने की ही बात होती है,और अधर्म को बढावा देना भी मेरे विचारों से भयंकर पाप ही है।

कुटनीति द्वारा अधर्म को बढावा देने के लिए, विषेश निती द्वारा अगर सज्जनों को निष्क्रिय बनाने की योजना जीस समाज में बनाई जाती है,जैसे की हमारे ही देश में आजतक ऐसी घिनौनी साजिश की गई,और साधुसंतों को झूटे मामलों में फँसाया गया,अटकाया -लटकाया गया,और सज्जन शक्ती को निष्क्रिय बनाने की,और अधर्म का अंधियारा फैलाने की जी जान से इस देश में जानबूझकर कोशिश की गई है।इसीलिए अगर कोई सज्जन निष्क्रिय हो गया है,
यह बात मैं मानता हुं,सत्य को स्वीकार भी करता हुं।
मगर इसके बावजूद भी करपात्री जी जैसे अनेक महान तथा सक्रिय साधुओं ने भी अपनी जान की पर्वा किए बगैर धर्म की तथा सत्य की रक्षा की है,अथवा इस कार्य के लिए अपने जान की भी पर्वा नही की है।

और मुझे…
नवराष्ट्र तथा ईश्वरी राष्ट्र निर्माण कार्य के लिए, ऐसे ही सक्रिय सज्जनों की अपेक्षा है।

स्वामी विवेकानंद जी भी एक उच्च कोटी के योगी होकर भी,निष्क्रिय सज्जनता के बजाय सक्रिय सज्जनता का स्वीकार करनेवाले ही महान योगी थे,इसमें कोई संदेह नही है।
भगवान श्रीकृष्ण ने भगवत् गीता में क्रियायोग अथवा हटयोग का वर्णन किया है।इसकी सिध्दियाँ प्राप्त होते ही कुछ सज्जन अथवा साधु हिमालय में चले जाते है या फिर निष्क्रिय सज्जन बनकर समाज में ही रहते है।
और अक्कलकोट स्वामी,रामदास स्वामी,गजानन बाबा जैसे महान सिध्दपुरुष तथा हटयोगी समाज में ही रहकर सामाजिक उत्थान के लिए सदैव प्रयत्नशील रहते है।

जड विषय को ,
” चैतन्य…”,में लाने की तथा इसके द्धारा अधर्म के अंधियारे को कम करने की इस लेख द्वारा कोशिश की गई है।
बाकी सब पठन करनेवालों पर ही छोड देता हुं।
छोटेसे लेख में जादा आषय लिखने की कोशिश की है।इसपर अनेक भाषाओं में,जागतीक स्तर पर किताबें लिखकर,सर्वधर्मीय समाज में चेतना जागृती तथा सत्य ज्ञान द्वारा सभी को…

” प्रेमपूर्वक तथा सत्य ज्ञान देकर…

घरवापसी का….
मेरा निरंतर प्रयास रहेगा।”

इस कार्य के लिए ना मुझे अनुयायी चाहिए, ना शिष्य।मगर तेजस्वी समाज निर्मिती के लिए,
तेजस्वी और धधगते अंगारे जैसे ,
युवक चाहिए।
संपूर्ण विश्व के सभी देशों में,और हर देश के कोने कोने में सक्रिय सज्जनों की तथा तेजस्वी युवकों की फौज खडी करनी है।
इस कार्य के लिए आप सभी का,

भी

प्रेमपूर्वक, तन-मन-धन से पूरा सहयोग एवं समर्थन मिलेगा ऐसी आशा करके,
लेखनी को पूर्ण विराम
देता हुं।

हरी ओम।
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विनोदकुमार महाजन।

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