बडे विचित्र होते है सिध्दपुरूष…!
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कभी मौन रहते है,तो कभी चिल्लाते है,कभी एकांत में रहते है तो कभी जोर से बाते करते रहते है।
कभी नंगे साधु बनकर घुमते है,तो कभी चिल्लम भी फुँकते है।कभी किसी को गाली भी देते है,तो किसी का जानबुझकर अपमान भी करते है।
कभी गुप्त रूप में रहते है,तो कभी प्रकट रूप में शक्तिमान बनकर ईश्वरी कार्य बढाते है।
इनको ना नाम की,धन की,वस्त्रों की,प्रतिष्ठा की जरूरत होती है।ना नाम पैसा कमाने की अभिलाषा होती है।
कभी किसी के बदन पर थुकते है,तो कभी किसी को ईश्वरी-स्वर्गीय पवित्र प्रेम दिखाते है।
बडे विचित्र होते है सिध्दपुरूष।
इनको जानना,पहचानना भी बडा मुश्कील कार्य होता है।
इसिलिए इनको अवलिया कहते है।जो मन में आया वही करते है।
ऐसे अनेक संत-साधु-सत्पुरुष-महात्मा-दिव्यात्मा खुद की पहचान छुपाते है।अहंकार शुन्य बनकर ईश्वरी कार्य गुप्त रूप से बढाते है।
ऐसे सिध्दपुरूष बडे विचित्र होते है।
गुप्त रूप से,सुप्त रूप से ईश्वरी कार्य कर रहे ऐसे अनेक पुण्यात्माओं को ,सिध्द पुरूषों को मेरे कोटी कोटी प्रणाम।
हरी ओम।
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विनोदकुमार महाजन।