*जीना इसी का नाम है !??*
✍️ २६०६
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नशीब का फेरा
प्रारब्ध गती का फेरा
कालसर्पयोग का फेरा
शनीदेव का फेरा
साडेसाती का फेरा
करणी भानामती का फेरा
भूतबाधा का फेरा
यह सब मनुष्य जन्म में
अती भयावह होता है !
जिसने भी इसका अनुभव
किया हुवा है इसके
दुखदर्द कितने भयंकर
पिडादायक होते है ?
वहीं जाने !
अकेले की लडाई !
बडे बडे महापुरुष भी ऐसे
महाभयंकर चक्रव्यूह में
फँस जाते है तब ?
शक्तीमान ईश्वरी शक्तीयाँ भी
सहायता नहीं कर
सकती है ?
कैसे ?
जब प्रत्यक्ष भगवान श्रीकृष्ण देहरूप में
पांडवों के साथ
अर्जून और अभिमन्यु
के साथ होकर भी ?
स्वयं भगवान भी
अभिमन्यु को चक्रव्यूह से
नहीं बचा पायें ?
ऐसा क्यों ?
आखिर ऐसा क्यों ?
स्वयं भगवान श्रीकृष्ण भी
जन्म से लेकर मृत्यु तक
खुद के दुखों को ?
नहीं टाल सकें !?
आजीवन संघर्ष !!?
जन्म होते ही ?
खुद के माता पिता को
छोडकर आसुरीक प्रहार से बचकर
सुरक्षित जगहपर
भगवान को जाना पडा !
स्वयं भगवान की मृत्यु भी ?
व्याध का जहरीला बाण लगकर ?
प्रारब्ध और प्रारब्ध भोग तो
ईश्वर भी नहीं टाल सका !
राम को राजऐश्वर्य का त्याग करके , एक ही झटके में
बनवास भोगना पडा !
आदिमाया होकर भी
माता सीता को
रावण जैसे महाराक्षस के
कब्जे में रहना पडा !
राम की मृत्यु भी
शरयू में और मातासीता को
धरणी में एकरूप होना पडा !
राजे शिवाजी , राजे संभाजी
पृथ्वीराज चौहान , महाराणा प्रताप , गुरु गोविंद सिंह
जैसे महापुरुषों को भी ?
भयंकर दुखदर्द भोगना पडा !
सावरकर , सुभाष बाबू
जैसे महानायकों को भी ?
आजीवन भयंकर संघर्ष
करना पडा !
तो हम ?
कौनसे खेत की मूली है ?
जो कर्मगति के भयंकर
चंगुल से बच जायेंगे ?
जितना कार्य महान ?
उतना दुखदर्द , आत्मक्लेश
पिडा , यातनाएं भी
अधिक होती है !
इतना होने के बावजूद भी ?
महापुरुष पिछे नहीं हटते है !
डटकर लडते ही रहते है !
सुख दुखों की
मान अपमान की
यश अपयश की
मान संन्मान की
धन वैभव की
अपेक्षा किए बगैर
सिध्दांतों के लिए
बडे हिम्मत से जीते है !
चाहे मुसिबतें कितनी भी
भयंकर अक्रालविक्राल हो
दिनरात , अकेले
लडते रहते है !
अभिमन्यु की तरह !
परीणामों की चींता किए बगैर जीते है !
जीना इसी का नाम है !
आज भी ?
हिंदुराष्ट्र का सपना देखने वाले महायोध्दा
हिंदुराष्ट्र निर्माण के लिए
मुसिबतें कितनी भी भयंकर हो ? दिनरात लडते रहते है !
कोई साथ देनेवाला मिलें
या ना भी मिलें !?
ऐसे महान योध्दाओं को
ऐसे महान आत्माओं को
कोटि कोटि प्रणाम
दंडवत !!
जय श्रीकृष्ण !!
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*विनोदकुमार महाजन*