हमें दुख क्यों भोगना पड़ता है ? ? ?
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दुख,संकटों से हम सदैव डरकर रहते है।हमें सदैव सुख चाहिए।दुख की कल्पना से ही हमें डर लगता है।और होता यह है की,जीवनचक्र में दुख ही दुख होता है।और हम इसकी वजह से परेशान रहते है।
दुखों से छुटकारा पाने के लिए अनेक उपाय करते रहते है।
मगर यह दुख आता ही क्यों है….???
कर्म,प्रारब्ध, संचित।
जिस प्रकार का कर्म हमने पिछले जनम में किया है,उसका फलस्वरूप हमें सुखदुख तो भोगना ही पडता है।
पुण्य कम और पाप जादा होगा तो दुख तो भोगना ही पडेगा।
इससे छुटकारा पाने के लिए, अखंड ईश्वरी चिंतन,खडतर तप,परोपकार, दया,क्षमा,सभी पर पवित्र प्रेम ,निष्कपट मन द्वारा हमारे संचित कर्म या गतजनम के पाप कम होते है,और जैसे जैसे पुण्य संचय बढता जाता है,दुखों से भी छुटकारा मिल जाता है।
कभी कभी हमारे पिछले जनम के पापों के पर्बत इतने बडे होते है की,कठोर तप करनेपर भी हमें दुखों से छुटकारा नही मिलता।और कठोर तपश्चर्या की वजह से भगवान हमारे साथ,आसपास चौबीसों घंटे तो अदृश्य रूप से रहता तो है,मगर हमारे कर्म की वजह से दुखों से छुटकारा दिलाने के लिए सहायता नही करता है।
जैसे की,
चक्रव्यूह भेदन के समय प्रत्यक्ष परमात्मा श्रीकृष्ण देहरूप से अभिमन्यु के साथ तो था।मगर फिर भी चक्रव्यूह भेदन करके अभिमन्यु वापिस न आ सका।
ऐसा ही होता है हमारे साथ भी।और हम दुखों से छुटकारा नही मिलनेपर भगवान को कोसते रहते है।
तो भाईयों,
अगर हमें दुखों से अगर छुटकारा चाहिए तो अखंड ईश्वरी चिंतन,मनन,ध्यान नितांत जरूरी है ही है।
तब हमारा कर्म जलकर खाक होगा और हमें दुखों से छुटकारा होकर,सुखों की प्राप्ति होगी।
हरी ओम।
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विनोदकुमार महाजन।