*मरा हुवा साँप जींदा हो सकता* *है ?*
✍️ लेखांक : – २५२०
*विनोदकुमार महाजन*
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जी हाँ !
कैसे ?
जानीए….
जहरीला साँप ?
एकबार काटता है तो ?
उस सजीव की तुरंत जान जा सकती है !
और इंन्सानरूपी दुष्टात्मे भी साँपों से भी भयंकर होते है !?
वैसे ही दुष्टों द्वारा सज्जनशक्तियों को बारबार परेशान किया जाता है तो ? ऐसे जहरीले साँप जैसे दुष्टों का बंदोबस्त सदा के लिए करना ही चाहिए ना ?
मगर हम तो ठहरे सहिष्णु ?
अहिंसा और परोपकार ही हमारे खून में कुटकुटकर भरा हुवा है !
मगर फिर भी हमें कोई व्यक्ति जानबूझकर बारबार….
हिंसक हिंसक कहके प्रताडित , अपमानित कर रहा है , सहिष्णु समाज को ही उल्टा बारबार बदनाम कर रहा है , समाज में भयंकर संभ्रम फैला रहा है तो ?
इसे क्या कहेंगे ?
इसका तुरंत कानूनी कार्यवाही से बंदोबस्त करना ही चाहिए ना ?
या फिर मुकदर्शक तमाशाई बनकर ?
हिंदुओं को विनावजह और जानबूझकर बदनाम करनेवाले को ?
और जादा प्रोत्साहित करना चाहिए ?
मुकदर्शक मत बनो !
सभी सत्यप्रेमी यह समझ रहे थे की ,
यह तो मरा हुवा साँप है ?
मगर इसी जहरीले साँप ने कमाल कर दिखाया ना ?
हिंसक हिंसक कहके ?
भरी लोकसभा में ?
उसके पार्टी के भी हिंदुओं की पर्वा किए बगैर ?
सहिष्णु समाज का एक भयंकर
” विकपाँईंट ” है !
कमजोर नस !
सहिष्णु समाज दयालु जादा मात्रा में है !
असली साँपों को भी ईश्वर समझकर पूजता जरूर है !
मगर इंन्सानरूपी दुष्ट और जहरीले साँपों पर दया भी तुरंत दिखाता भी है !
अब यही देखिए ना ?
पृथ्वीराज चौहान जी ने इंन्सानरूपी जहरीले साँप को बारबार मरा हुवा समझकर छोड दिया !?
कौनसा साँप ? पता है ना ?
मगर वहीं भयंकर जहरीला साँप आखिर पृथ्वीराज चौहान जी को डस ही गया ना ?
अति सहिष्णु और अति दयालु स्वभाव के कारण पृथ्वीराज चौहान जी का अंत हो गया ना ?
यह हिंदुओं की कमजोर नस है !
मगर….
आदर्श राजे शिवछत्रपती जी का उदाहरण देखिए !
शिवाजी महाराज कभी भी साँपों पर अर्थात कपटी शत्रुओं पर विश्वास भी नहीं करते थे !
और नाही उसे अधमरा छोडते थे !
और दुष्टों के प्रती ना ही कभी अति सहिष्णुता दिखाते थे !
और नाही इंन्सानरूपी दुष्ट जहरीले साँपों पर दयाभाव दिखाते थे !
इसीलिए राजे शिवछत्रपती एक आदर्श राजा थे !
जानता राजा !
हिंदवी स्वराज्य संस्थापक आदर्श राजा !
अब हम तो आदर्श राजे शिवछत्रपती जी के आदर्श सिध्दातों को ही भूल रहे है क्या ?
एक हिंदुद्वेष्टा खुलेआम सभी अहिंसक हिंदुओं को….
हिंसक हिंसक….
कहता है ?
तो भी हिंदू ? मौन और शांत ?
कहाँ लुप्त हो गया महान राजे
शिवछत्रपती ने भरा हुवा हमारे अंदर का धधगता तेज ?
हमें
हिंसक कहनेवाले ने तो एक तीर में अनेक शिकार किए है !
पहला
वो जाँच रहा है की कितने हिंदू जागृत और तेजस्वी है ?
कितने मरे हुए है ?
उसने आजमाया है की सब ?
मरे हुए , मुर्दाड है !
अब आगे की अगली रणनीति बनाने के लिए….
वह तैयार बन बैठा है !?
दूसरा यह भी है की
कितने प्रतिशत हिंदू संगठित और एक होते है ?
यह भी उसने बिल्कुल सही आजमाया है !
तुम उसे पप्पू पप्पू कहते रहो…
वह उसकी योजनाओं के अनुसार आगे बढ ही रहा है !
उसे पता है….
हिंदू कभी भी एक नहीं होगा !
और नाही अत्याचारीयों का विरोध करेगा ?
अब बोलो ?
और तुम ?
रामराज्य का सपना देख रहे हो ?
संकट गहरा है !
जागरूक होना हिंदुओं का काम नहीं है !
मुर्दाड मन से जीना ही हमारे नशीब में है ?
और हमें जो जागरूक कर रहे है ? उनको ही उल्टा गाली देना ?
मुर्ख समझना ??
हरे राम !
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