*मैंने ? जहरीले साँपों को देखा है !! क्या आपने भी देखा है ??*
✍️ २४८७
*विनोदकुमार महाजन*
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जी हाँ दोस्तों ,
सचमुच में मैंने विनाशकारी जहरीले साँपों को देखा है !
अधर्मी साँप !
हमारे संस्कृती ,सभ्यता को निगलनेवाला साँप !
हमारे सत्य की आवाज जमीन में गाडनेवाला साँप !
हमारे मठ मंदिरों को जमीनदोस्त करके , आसुरीक संपत्तीयों को बढाने वाला भयंकर जालीम और जहरीला साँप !
*और ? यह साँप हमारे बिस्तर के निचे ही है !* ! 🤔
❓⁉❓⁉
और इसीलिए मैं जादा परेशान और चिंतीत हूं !!
अनेक सालों तक मैं इसे देखता आया हूं ! इसका भयंकर विनाशकारी जहरीला रूप मैं मेरे आँखों से निरंतर देखता आया हूं !
इसिलिए मैं बेचैन हूं !
अस्वस्थ हूं !
निरंतर !
चोबिसो घंटे !!
क्योंकी यह साँप हमारी आदर्श और ईश्वरी संस्कृती को सदियों से निगलने का निरंतर प्रयास कर रहा है ! दस दिशाओं से अपनी शक्ती तेजी से बढा रहा है !
सत्य को और सत्यवादीयों को सदा के लिए निगलने के लिए !?
क्या आपने भी इस जालिम साँप को देखा है ?
विशेष और भयंकर ,भयानक बात यह है की ,
इस साँप की चौतरफा शक्ती बढाने के लिए ,
हमारे , हमारे अपने ही संपूर्ण और दिनरात सहयोग कर रहे है !
है ना आश्चर्य की बात दोस्तों ?
आत्मघाती लोग ❓⁉
इसिलिए तो मैं और जादा परेशान हूं !
मेरे ही लोग ?
मेरे ईश्वरी कार्य को सहयोग करने के बजाए ?
मुझे ही ? मेरे सत्य को ही ?
मेरे आदर्श सिध्दांतों को ही ?
जमीन में दफनाने की लगातार ?
दिनरात ? कोशिश कर रहे है !
*मेरे अपने ?*
है ना गजब सबकुछ ?
*उफ्*!!
करें तो क्या करें ??
क्या हर सत्यवादी ऐसी भयंकर समस्याओं से त्रस्त है ?
परेशान है ?
*धर्मग्लानी !!*
अंदर , बाहर !
तो इसका अंतिम इलाज क्या है ? इसका आखिरी हल क्या है ?
” *विश्व स्वधर्म सुर्ये पाहो ! “*
की अंतिम फलप्राप्ती क्या है ?
सातसौ साल पहले , कृष्ण अवतारी ,संत ज्ञानेश्वर जी ने अपने ,
*ज्ञानेश्वरी में*
और *पसायदान* में
लिखी हुई है ?
और इसके *फलप्राप्ति* का
समय भी नजदीक आया है ?
मगर कैसे ?
चारों ओर अधर्म की आग तेजीसे बढ रही है !
धर्म और संस्कृति को निगलने के लिए , संपूर्ण विश्वस्तर पर जहरीले साँप अपनी शक्ति तेज गती से बढा रहे है !
तो ??
*सत्य की अंतिम जीत ?*
कैसे होगी ?
कौन करेगा ?
जहरीले साँपों का सर्वनाश कौन करेगा ?
खुद ईश्वर ?
या कोई देवअवतारी मनुष्य ?
*कौन उत्तर देगा ?*
*कौन बेचैनी समाप्त करेगा ?*
*जय जय रामकृष्णहरी !!*
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