*विश्वास और घात ??*
✍️ २४५९
*विनोदकुमार महाजन*
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विश्वास ?
बहुत ही महत्वपूर्ण शब्द !
ऐसा कहते है की ,
विश्वास से ही दुनिया चलती है !
मगर आज के भयावह समय में क्या आपको लगता है की ?
विश्वास से ही दुनिया चलती है ?
शायद विश्वास यह शब्द आज के जमाने में शाप सा बन गया है !
क्योंकि विश्वास शब्द के आगे ही जब घात शब्द लगाया जाता है तो…विश्वासघात… यह शब्द बनता है !
और आज का माहौल शायद विश्वासघात का ही दिखाई देता है ! कैसे ?
न जाने क्यों हम किसी पर विश्वास ,भरौसा रखते है तो ?
घात हो जाता है , हमारे साथ धोखा हो जाता है !
वह भी इंन्सानों द्वारा !
अपनों द्वारा !
तब ?
अंतरात्मा भी तडपती है !
क्योंकि धोखा ,घात जैसे शब्द जहर से भी जालीम होते है !
और अगर बारबार हमारे साथ ऐसा ही होने लगता है तो ?
मन में विचार आता है…
आखिर विश्वास ,भरौसा करें तो किसपर करें ?
और अगर प्रेम में धोखा हुआ तो ? क्योंकि प्रेम भी आखिर विश्वास रखकर ही किया जाता है ना ? इसीलिए प्रेम में भी जब धोखा होता है तब…
शायद उसी आदमी का जीना ही मुश्किल होता है ? या फिर जीवन ही बरबाद होता है ?
क्योंकि प्रेम यह एक पवित्र शब्द है और प्रेम अमृत के समान होता है ! और ईश्वर के ह्रदय से उत्पन्न होता है !
और धोखा ,घात ,छल ,कपट एक जहर के समान होता है !
जालीम जहर !
और यह जालीम जहर सैतान के ह्रदय से उत्पन्न होता है !
और आज के भयंकर उन्मादी ,कलियुगी तथा सैतानी राज में क्या किसी पर विश्वास ,भरौसा करना उचित रहेगा ? सच्चा प्रेम करना उचित रहेगा ?
पशुपक्षियों को भी शायद पवित्र और सच्चे प्रेम की भाषा ,व्यवहार समझता होगा !
गौमाता – कुत्ते जैसे इमानदार , प्रामाणिक पशुओं पर प्रेम करके देखिए…. उनसे कभी भी धोखा ,विश्वासघात नहीं होगा !
घात ,धोखा तो इंन्सानों से ही होगा !
इसिलिए चौबीसों घंटे बचके रहना ही उचित रहेगा ?
अखंड सावधानियां बरतनी पडेगी ?
और अखंड सावधानियां बरतने पर भी घात ,धोखा हुआ तो इसका इलाज क्या है ?
सिध्दयोगी पुरूष सभी का अतरंग तो देख सकते है !
और उसी के अनुसार आचरण करते है ! या फिर मनुष्य प्राणीयों से हमेशा दूरी रखते है ?
या हमेशा मौन और एकांत में रहना ही पसंद करते है ?
इसीलिए निर्जन स्थानों पर तपस्या अथवा ईश्वरी चिंतन करके ही जीवन बिताते है ?
मगर साधारण व्यक्ति क्या करें ?
आखिर मनुष्य प्राणी तो अजब का है ! और गजब का भी !
कब ? कौन ? कैसा व्यवहार करेगा ? और कौन ? किसे ? कैसे ? कब ?धोखा देगा ?
इसका भी कोई भरौसा नहीं है !
तो आज के हर जगहों पर दिखाई दे रहे सिसिटिव्ही के जमाने में ,ऐसी भयंकर मुसीबतों की घडी में ? ईश्वरी कार्य ,मानवता का कार्य ,वैश्विक कार्य आगे कैसे बढा सकते है ?
हर एक की परीक्षा भी कैसे ले सकते है ? और परीक्षा में खरा उतरेगा इसका भी भरौसा कैसे किया जा सकता है ?
संत ,सत्पुरुष ,सिध्द महात्मा भी परीक्षा किए बगैर किसी को सद्शिष्य के रूप में नहीं स्विकारते है !!
तो मेरे प्यारे साथियों ,
सनातन संस्कृति और सनातन धर्म का वैश्विक कार्य तेजीसे आगे बढाने के लिए आखिर कौनसी प्रभावी निती का अमल करना चाहिए ?
वह भी ऐसे भयंकर और स्वार्थ के माहौल में ?
भयावह सैतानी राज में ?
स्वामी विवेकानंद जी को वैश्विक ईश्वरी कार्य आगे बढाने के लिए ,कितने सच्चे सतशिष्य मिल गये ? यह भी एक अत्यंत महत्वपूर्ण मुद्दा है !
हर एक अवतारी पुरूष, महापुरुष ,सिध्दपुरूषों को भी ऐसा प्रश्न दिखाई देता होगा ?
ज्योत से ज्योत जलाते चलो
प्रेम की गंगा बहाते चलो…
ऐसा एक महत्वपूर्ण वाक्य है !
मगर क्या हमारे सनातन संस्कृति का वैश्विक कार्य आगे बढाने के लिए , यही एकमेव वाक्य फलीभूत होगा ?
या फिर…
भगवत् गीता और कृष्णनिती के अनुसार ही ऐसा कार्य शिखर पर पहुंचाना आसान होगा ?
ऐसा कार्य आगे बढाने के लिए
आखिर…
नारायण भी किसे प्रेरीत करेगा ?
और उसे हर पल कौन और कितना साथ देगा ?
यह तो नारायण ही जान सकेगा !
फिर भी ऐसे भयंकर तथा सैतानी भयावह राज में
ऐसा प्रयास करना और कार्य आगे बढाकर सफल बनाना…
ईश्वरी कृपा के सिवाय संभव नहीं होगा !
आपको क्या लगता है ?
धर्म ग्लानि हटाकर
हिंदुराष्ट्र निर्माण
अखंड भारत
और
विश्व गुरु भारत के लिए कौनसा रास्ता अपनाना होगा ?
पग पगपर धोखा है
क्योंकि यह सत्ययुग नहीं है !
परख परखकर आगे बढना है
क्योंकि यह उन्मादी कलियुग का महिमा है !
जय श्रीकृष्ण !!
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