राह का राही,रास्ता देखो,
भूल गया रे !!
✍️ २२३४
विनोदकुमार महाजन
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कौन राही ? कौनसा रास्ता ?
हम धरती पर क्यों आये है ?
कहाँ से आये है ?
हम कौन है ?
हमारा जीवन का रास्ता कौनसा है ?
ईश्वर ने हमें यहाँ क्यों भेजा है ?
हमें करना क्या है ?
शायद,लगभग यही बात मनुष्य प्राणी भूल गया है ?
आत्मा का दिव्यप्रकाश !
पशुपक्षीयों का तो ठीक है !
उनको आत्मा का ज्ञान ही नही होता है !
केवल कर्मभोग भोगने के लिए ही जन्म लेना !
इसिलिए, उन्हे कौन राही ? कौनसा रास्ता ? इससे कुछ लेनादेना ही नही होता है !
मगर मनुष्य प्राणी ?
कब खुद को पहचानेगा ?
खुद का आत्मप्रकाश कब जान जायेगा ?
पशुओं की तरह का निरर्थक जीवन कब त्याग देगा ?
दिव्य आत्मप्रकाश ही आत्मानंद की ओर ले जाता है !
और यही प्रकाश,आत्मानुभूती भी सिखाता है !
हम देह नही, बल्की आत्मा है !
और यह आत्मा निरंतर, चौबिसों घंटे,श्वासों द्वारा, ईश्वर से जूडा हुवा है !
करोडो के मनुष्य समुह में खुद की असली पहचान करनेवाले,
सही रास्ते से चलनेवाले, असली राही कितने और कौन होंगे ?
यह बात तो केवल ईश्वर को ही पता होगी ?
और सबसे महत्वपूर्ण बात…
मैं देह नही, बल्की आत्मा हूं,इसका सत्य ज्ञान देनेवाला ,ईश्वर से निरंतर जोडनेवाला,
सत्य धर्म आखिर कौनसा है ?
वैदिक सत्य सनातन हिंदु धर्म !!
जो अनेक गूढ विषयों के रहस्योद्घाटन करता है !
आत्मा की खोज करता है !
आत्मज्ञान द्वारा, परमात्मा से जोडता है !
एकमात्र, सत्य ,अंतिम सत्य, केवल सनातन धर्म ही है !
इसिलिए,
” इधर – उधर भटकनेवाले,
रास्ता छोडनेवाले,
खुद का अस्तित्व ही भूलनेवाले,
आत्मा की पहचान ही भूलनेवाले,
भटके हुए राही,
….धनदौलत के लिए,लालच में आकर,अथवा डर के मारे….
” हमारा असली घर ”
छोडनेवाले !
और ? खुद का अस्तित्व ही भूलनेवाले ?? ”
इसिलिए,
मैं,सभी मानवसमुह को नम्र निवेदन और आवाहन करता हूं की….
” अपने घर ….वापिस लौट के आ जाना ! ”
यह
” असली घर…” ही,
बहुत ही सुंदर है !
सर्वांग सुंदर भी है !
यहाँ पर पूर्णत्व भी है !
सभी सुखों का भंडार भी है !
आत्मज्ञान, ब्रम्हज्ञान का भंडार है !
हमारा,हम सभी का,
” सत्य सनातन वैदिक हिंदु धर्म,
ही असली
घर है ! ”
यही ” सभी का ” असली धर्म भी है !
केवल और केवल इसी में ही आत्मानुभूती का दिव्य ज्ञान है !
आत्मोध्दार है !
इसी में ही संपूर्ण ईश्वर निर्मित मानवप्राणी का उध्दार है ! इसी में ही विश्वोध्दार भी है !
इसीमें ही भव्यत्व है,दिव्यत्व भी है !
इसिलिए,
राह का राही,रास्ता छोडकर,
इधर उधर मत भटकना !
” अपने घर वापिस आ जाना ! ”
हरी ओम्
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