क्या ईश्वर को दुख होता है ?
ईश्वर को क्रोध भी आता है ?
✍️ २१९९
विनोदकुमार महाजन
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जब मनुष्य वैयक्तिक स्वार्थ, लोभ,मोह,अहंकार में अटक जाता है, तब उसे ईश्वर की दिव्यात्मानुभूती प्राप्त नहीं हो सकती है !
मगर जब मनुष्य वैयक्तिक स्वार्थ, लोभ,मोह,अहंकार से हटकर,ईश्वर से निरपेक्ष प्रेम करने लगता है,
सभी प्राणीयों का कल्याण देखने लगता है, सभी के कल्याण के बारे में सोचने लगता है तो,
उसका सभी सजीवों के प्रती,उच्च करूणाभाव मन में उत्पन्न हो जाता है !और सभी सजीवों को वही प्रेम,वात्सल्य भाव से देखने लगता है !
और यही करूणाभाव से सभी सजीवों के सुखदुखों का हिस्सेदार बन जाता है !और परपीडा को भी खुद की पीडा समझने लगता है !
तब उसे ईश्वरी दिव्यानुभूतीयाँ मिलने प्रारंभ हो जाती है !
जबतक मनुष्य खुद के लिए, तथा खुद के सुखों के लिए ही ईश्वर से प्रार्थना करता है, तब वह मनुष्य ईशत्व को नहीं समझ सकता है ! और ईशत्व से जूड भी नहीं सकता है ! मगर खुद के सुख के बजाए, सभी के सुख के लिए, मनुष्य ईश्वर से प्रार्थना करने लगता है,तब वहीं मनुष्य धिरे धिरे ईशत्व की ओर बढने लगता है ! और एक दिन खुद ईश्वर स्वरूप भी बन जाता है !
और जब व्यापक ईशत्व को समझने लगता है, तब सभी सजीव, सभी पशुपक्षी भी वहीं ईश्वर की संतानें है,जो आत्मतत्व से एकसमान ही है,इसकी दिव्यात्मानुभूती को प्राप्त कर सकता है ! छोटिसी चींटीयों में भी उसे ईश्वर ही दिखाई देने लगता है !
चारों तरफ भगवंत का अस्तित्व दिखाई देता है ! हर सजीवों में,हर भूतमात्र में ईश्वर का ही अंश दिखाई देने लगता है !
” सर्वाभूती भगवंत ! ” की अनुभुतीयाँ मिलने लगती है !
और मनुष्य द्वेष,स्वार्थ, अहंकार जैसे राक्षसी गुणों का त्याग करके,प्रेम, परोपकार, शालीनता का स्विकार करने लगता है,और धिरे धिरे ईशत्व को भी प्राप्त कर सकता है !
इसिलिए दुसरोँ का,सभी प्राणियों का, दुखदर्द जब वह मनुष्य देखता है, तो उसके आँखों में पाणी आ जाता है !
दूसरों का दुखदर्द देखकर उसकी आत्मा तडप उठती है !
इसिलिए कोई गाय काटकर खा रहा है तो ऐसे मनुष्य को अतीव दुख होता है !
और वह सोचने लगता है, कितने क्रूर लोग है ये ? सभी ईश्वर की ही संतांने है ! और ईश्वर के संतानों को भी कोई खुलेआम काटकर खाता है ,तो उसे अंदर ही अंदर भयंकर पीडा होने लगती है !
और उसके मन के दयाभाव के कारण,
” ईश्वर क्या सोचता होगा ? ऐसा घोर पापों को देखकर ? ”
ऐसी दिव्यात्मानुभूती उसके मन में आने लगती है !
और इसिलिए वह सोचने लगता है की,क्या ईश्वर को भी दुख हो सकता है ? और ऐसा भयंकर पाप देखकर,क्या ईश्वर भी क्रोधित हो सकता है ?
वैसे तो हमारी ,हम सभी की,सभी सजीवों की,हर श्वास ईश्वर से ही,निराकार ब्रह्म से ही जुड़ी हुई है ! यही श्वास हमें ईश्वर की हर दिव्यात्मानुभूती दिखाती है !
हमारी श्वास भी निराकार, हमारी आत्मा भी निराकार ! और बाहरी ब्रम्ह भी निराकार !
और यही श्वास हमें,निरंंतर,बाहर के निराकार ब्रम्ह को जोडती है !
कैसे ?
” सो…अहम्…द्वारा ! ”
श्वास अंदर ?
सो…
श्वास बाहर ?
अहम्…
अंदर बाहर
सो…अहम्… सो…अहम्…
मैं ही ब्रम्ह हूं ! मैं ही ब्रम्ह हूं !
जब हमारी श्वास अंदर जाती है, तो वह हमारे आत्मा को जोडती है !और बाहर आती है तो ? निराकार ब्रम्ह में एकरूप हो जाती है !
मतलब ?
साफ है !
अंदर की आत्मा और बाहर का परमात्मा एक ही है ? केवल एक श्वास ही दोनों को जोडती है ?
अद्भुत !
मतलब ?
आत्मा – परमात्मा का निरंंतर का मिलन ! चौबिसों घंटे !
तो भेद ही कहाँ रह गया ?
हममें और ईश्वर में ?
आप सभी में और हममें ?
और यही आत्मा – परमात्मा का मिलन, निराकार,ईश्वर का सुखदुख भी देख सकता है, जान सकता है !
उसका क्रोध भी समझ सकता है !
इसिलिए ईश्वर को दुखी और क्रोधित कभी भी नहीं करना चाहिए ! और नाही कभी ईश्वर को क्रोधित भी देखना चाहिए !
क्योंकि इससे हमें भी भयंकर दुख और क्रोध हो जाता है !
और ईश्वर का क्रोध ?
भयंकर, अतीभयंकर होता है !
ईश्वर का दुख और क्रोध के बारे में, देखते है, विस्तार से !
जब कोई मनुष्य गाय को अथवा किसी दूसरे प्राणीयों को काटकर खाता है तो ? दयालु ईश्वर को भयंकर दुखदर्द होता है ! क्योंकि आखिर सब उसी की ही संतानें है ! और ईश्वर ने सभी सजीवों को आजीवन जिने का अधिकार भी वरदान स्वरूप दिया है ! और उसका अधिकार कोई छीनता है तो ? ईश्वर जरूर दुखी होता है ! और जब अन्याय – अत्याचार भयंकर बढता है तो ? ईश्वर क्रोधित भी हो उठता है ! और ईश्वर का क्रोध मतलब ?
पापीयों का संपूर्ण सफाया !
जब हिरण्यकशिपु भक्त प्रल्हाद को भयंकर पीडा, दुखदर्द दे रहा था ? तब दयालु ईश्वर सबसे पहले दुखी हो गया ! और ?
जब हिरण्यकशिपु नहीं सुधरा तो ? ईश्वर भयंकर क्रोधित भी हो गया !
और भक्तों की रक्षा के लिए, नारसिंह बनकर प्रकट हो गया !
और हिरण्यकशिपु को उसने टरटरा फाड दिया !
राम को क्रोध हुवा तो ?
रावण का नाश हुवा !
कृष्ण को क्रोध हुवा तो ?
सगा मामा कँस को भी मार दिया !
और अब ? आज का संपूर्ण पृथ्वी का भयंकर पाप का माहौल देखकर, ईश्वर सचमुच में भयंकर दुखी है ?
और क्रोधित भी है ?
आप सभी दयालु महात्माओं को क्या लगता है ?
तो क्या फिरसे…? दयालु प्रभु परमात्मा, समस्त पापियों के नाश के लिए, उन्मत्त, उन्मादी, हाहाकारी,पापीयों को टरटरा फाडने के लिए, फिरसे अवतरित होनेवाला है ?
वही नारसिंह का उग्र तेज और ज्वाला लेकर ?
ज्वाला नारसिंह बनकर ?
अगर हाँ…तो कौनसे रूप में ?
फिरसे वही नारसिंह रूप ?
या दूसरा कोई भयंकर तेजस्वी रूप ?
या फिर…
कल्की अवतार बनकर प्रभु आयेगा ?
निष्पाप जीवों की रक्षा के लिए ? धर्म की रक्षा के लिए ?
सत्य की रक्षा के लिए ?
ईश्वर निर्मित, सत्य सनातन धर्म की रक्षा के लिए ?
सृष्टी संतुलन के लिए ?
पापीयों को कठोर शासन देने के लिए ,और दंडित करने के लिए ? पापीयों के समूल नाश के लिए ?
युगपरिवर्तन के लिए ?
धर्म पुनर्स्थापना के लिए ?
अगर आयेगा तो कब ?
कहाँ ?
या फिर प्रभु परमात्मा आज आ भी गया है ?
अगर हाँ…तो कहाँ है वह ?
कौनसे रूप में है ?
हमारी साधारण आँखें
” उसे ”
जान – पहचान सकेगी ?
क्या सचमुच में …
” युगपरिवर्तन ! ” का
समय आरंभ हो चूका है ?
हिंदुराष्ट्र ? अखंड भारत ?
हिंदुमय विश्व ?
हरी बोल्
हरी ओम्
🙏🙏🙏