भगवान राम और कृष्ण का दुख
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यह मृत्यु लोक है।और यहाँ तो दुख ही जादा है,और सुख अत्यल्प।
यहाँ पर देवीदेवता भी अवतार धारण करते है तो भी उनको भी
हमसे जादा अनेक दुख झेलने पडते है।
जी हाँ।
भगवान को भी दुख झेलने पडते है।
विष्णु को भी भयंकर दुखों का सामना करा पडा था।
विशेषता राम और कृष्ण अवतार में तो भयंकर दुख झेलना पडा था।
विष्णु अवतारी परशुराम को तो सिध्दांतों के लिए जन्मदात्री माँ रेणुका ही शिरच्छेद करना पड़ा था।
राजा राम को राजऐश्वर्य छोडकर बनवास का भयंकर दुखदर्द झेलना पडा था।
फिर सिता का हरण।
माता सिता को भूमी में एकरूप हो जाना।
और राम का देहत्याग भी शरयु में।
भगवान कृष्ण को जनम लेते ही माँ बाप से दूर भागना पडा।वसुदेव देवकी का कारावास।
महाभारत के समय का भयंकर प्रसंग।
अनेक मृतदेह।
और यादव वंश का सर्वनाश।
सोने की द्वारका का डुबो देना।
और देहत्याग भी….
एक व्याध के बाण द्वारा।
कितना संघर्ष मय जीवन।
शंभू महादेव का हलाहल प्राशन करना।
और हम ?
छोटी छोटी बातों पर भयंकर दुखी हो जाते है।तरस जाते है।दुखी होते है।
साथीयों,
देवीदेवताओं की कथाएं इसिलिए ही हमें सुननी,सुनानी है ताकी…
हमारा आत्मबल बढ सके।उत्साह बढ सके।
जीवन के भयंकर संघर्ष में हमें शक्ती मिल सके।
और अगर कोई ईश्वर ही मानने को तैयार नही है…
तो….???
दुर्देव….
मनुष्य योनी में जन्म लेकर भी ईश्वर का अस्तित्व ही अमान्य होगा…
तो….
ऐसे महाभयंकर करंटे को क्या कहेंगे ?
ईश्वर को मानने,पूजनेवाला व्यक्ती, समाज आदर्श सिध्दांतों पर चलनेवाला होता है।
स्वाभिमानी और आत्मबल संपन्न होता है।
और ईश्वर का अस्तित्व नकारनेवाला ?
शायद हाहाकारी,उपद्रवी, परपिडा में ही आनंद मानने वाला होता है…
शायद मेरे विचारों से सभी सहमत होंगे ही…
ऐसा मैं नही मानता हुं।
अपने अपने विचार,
अपने अपने सिध्दांत और तर्कशास्त्र।
कल्पना किजिए,
क्या हम देवताओं जैसा भयंकर दुख झेल सकते है ?
भयंकर हलाहल हजम कर सकते है ?
खुद समय ईश्वर के हाथ में होनेपर भी,ईश्वर ने भी सृष्टि चक्र में हस्तक्षेप नहीं किया अथवा सिध्दांतों के विपरीत आचरण नही किया।
मित्रों,
हम ईश्वर को आज यही प्रार्थना करते है की,
हे प्रभो,
हमें दुखदर्द झेलने के लिए शक्ति दे।
हमारा दुखदर्द झेलते झेलते दुसरों के दुखों में भी सहायता करने की हमारी धारणा दे।
दिनदुखितोंके अश्रु पोंछने के लिए हमें भी बल दे।
बाकी अगले लेख में।
हरी ओम्
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विनोदकुमार महाजन