हमारे रिश्तेदार
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हमारे सच्चे रिश्तेदार कौन ?
केवल एक जनम में ही साथ रहनेवाले हाडमांस के रिश्तेदार ?
या फिर आत्मतत्त्व से जुडकर जनम जनम साथ देनेवाले आत्मीय रिश्तेदार ?
अगर हम स्वर्ग से धरती पर आये है तो…
हमारे रिश्तेदार भी स्वर्गीय, दिव्य,भव्य,सुंदर,निरपेक्ष जैसे ही होंगे।
जितने भी देवीदेवता पृथ्वी पर आये है,वह सभी भी हमारे रिश्तेदार ही है।दिखते तो नही,मगर हरपल नई आत्मप्रचिती तो देते ही रहते है।
निरंतर दिव्य प्रेम तो देते ही रहते है।अनेक अनुभूतियां तो बारबार देते ही रहते है।
मेरे आण्णा,मेरी गोजरमाय,मेरी माई,मेरा भगवान श्रीकृष्ण, मेरी गोमाता, मेरा ग्रामदैवत खंडोबा, नारायण, दत्तात्रेय, गजानन महाराज, रामदास स्वामी, कल्याण स्वामी, मेरी कोल्हापुर की माता महालक्ष्मी, ज्वाला नारसिंह, मेरा हनुमान, मेरे सोनारी के कालभैरव नाथ,जोगेश्वरी,मेरे बार्शी का भगवंत, पांडूरंग, ज्ञानराजा ऐसे अनेक देवी देवता मेरे असली रिश्तेदार है।और मुझे हर सुखदुखों में सहयोग, प्रेम करते ही है।
यह एक उच्च प्रेम की उच्च अनुभूति है।
आप भी ऐसा उच्च कोटि का देवताओं पर पवित्र ईश्वरीय प्रेम करके तो देखो,सभी देवीदेवता भी हमपर उतना ही पवित्र, दिव्य प्रेम करके ही दिखायेंगे।
केवल एक बार पुकारने से भगवान दौडकर नही आते है,अनेक साल,जनम ईश्वर पर पवित्र, निरपेक्ष प्रेम करना चाहिए।
तभी ईश्वर के प्रेम की दिव्य अनुभूति मिलती है।
इसिलिए सुखदुख में स्वार्थ के लिए साथ छोडऩे वाले और दूरसे तमाशा देखने वाले, हमारे रिश्तेदार नही होते है साथीयों।हर सुखदुख में जनम जनम तक साथ देनेवाले ही हमारे असली रिश्तेदार होते है।
हरी ओम्
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विनोदकुमार महाजन