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देवगिरी ( गढ ) और जीवनगढ

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देवगिरी ( गढ ) और जीवनगढ

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देवगिरी अर्थात, दौलताबाद एक गढ है,जो महाराष्ट्र संभाजी नगर ( औरंगाबाद ) के नजदिक है।
यह गढ अतिशय कठीण है।गढ चढने के बाद उपर एकनाथ स्वामी तथा उनके गुरु जनार्दन स्वामी महाराज का भी दर्शन होते है।और यह दर्शन अत्यंत दुर्लभ होते है।जिसके नशीब में यह दर्शन होते है उन्हीको ही यह अद्भुत ईश्वरी लाभ तथा वरदान प्राप्त होता है।
और एकनाथ स्वामी तथा जनार्दन स्वामी के दर्शन याने की साक्षात गुरू दत्तात्रेय के दर्शन।

ईश्वरी कार्य करने के लिए उनके दर्शन होकर आशिर्वाद प्राप्त होना यह बात अत्यंत सौभाग्य की होती है।
यहाँ आनेपर
” भाग्योदय ”
होता है।अर्थात ईश्वरी कार्य के लिए जो धन की जरूरत होती है इसकी पुर्ती होती है,ऐसा माना जाता है।

एक क्रूर आक्रमणकारी मुगल ने भी यहाँ आकर धन अर्जीत किया था।इसिलिए उस किले का,गढ का नाम उसने
” दौलताबाद ”
किया है।
दौलत देनेवाला दौलताबाद।

और हमारे जीवन का गढ भी तो ठीक ऐसा ही है।जितना उपर जाने की कोशिश करेंगे उतनी मुसिबतें भी तीव्र होती जायेगी।अनेक संकटों की मालिका आरंभ हो जायेगी।हमारे साथ वह गढ चढने के लिए कोई रिश्तेदार,संगी साथी,परिवार वाला है तो भी ऐसा
” जीवन का गढ ”
” कठीण किला “,
चढते समय हमें अनेक मुसिबतों में डालने की कोशिश करेगा,हमे हतबल – मजबूर करेगा।हमारे ह्रदय पर बारबार जहरिले साँप जैसे अनेक बार दंश करके हमें घायल कर देगा,बारबार रूलायेगा,परेशानीयों में डालेगा,परेशान करेगा,भयंकर कठीण सत्वपरीक्षायें भी लेगा।

ऐसा किला चढते समय बारबार भयंकर सजग एवं सावधान रहकर बडे हिम्मत से धिरे धिरे आगे बढाना पडता है।थोडीशी लापरवाही, गलती भी हमें काफी निचे गिरा सकती है और संपूर्ण रूप से तबाह, बरबाद कर सकती है।समाप्त कर सकती है।

इसिलिए सावधानी बहुत जरूरी होती है।

मगर जब हम यह किला चढने का आरंभ करते है…
तो हमारे साथ अगर कोई हमारा संगी साथी भी है तो वह भी उपर तक जाने नही देगा।बारबार अनेक मुसिबतें खडा कर देगा।
वापिस जाने के लिए बारबार जीद करेगा।

तो भी बुलंद हौसले लेकर एक एक कदम आगे बढते ही रहना है।ह्रदय में अनेक मुसिबतों का जहर लेकर, स्वकीय – समाज का जहरिला दंश झेलकर आगे आगे जाना ही है।

तभी कामयाबी मिलेगी।अपेक्षित यश भी मिलेगा।
एकनाथ स्वामी,जनार्दन स्वामी,गुरू दत्तात्रेय के अपने ही सद्गुरू कृपा से दर्शन भी होंगे।और ईश्वरी कार्य के लिए जरूरी धन ( दौलत ) भी मिलेगी।

तो आप भी चढिये ये गढ।मगर सबसे पहले अपने जीवन का कठीण गढ ही चढना पडता है।
कामयाबी के लिए, उपर जाने के लिए, अनेक साल भी लग सकते है और अनेक मुसीबतों का सामना भी करना पडता है।

मैंने तो बडे हिम्मत से यह जीवन का भयंकर कठीण गढ भी चढ लिया है…और देवगिरी ( दौलताबाद ) का गढ ( किला ) भी चढ लिया है।
और मुझे मेरे सद्गुरु आण्णा की कृपा से, एकनाथ स्वामी,जनार्दन स्वामी तथा गुरू दत्तात्रेय के भी दर्शन हो गये है।
और मुझे अपेक्षित,
” भाग्योदय ”
का फलक भी ईश्वरी कृपा से दिखाई पडा है।

अब वैश्विक ईश्वरी कार्य के रास्ते भी आसान हो जायेंगे।
क्योंकि मेरे सद्गुरु मेरे आण्णा ने भी गुरू दत्तात्रेय के साथ मुझे दृष्टांत में दर्शन देकर,
मेरे सरपर हाथ रखकर,
” तेरा विश्व कार्य आरंभ हो चुका है ”
ऐसा आशिर्वाद भी दिया है।इसके साथ ही शेगांव के दत्त अवतारी हठयोगी संत गजानन महाराज जी ने भी मेरे पर पर हाथ रखकर,
” तेरा यश आरंभ हो गया है ”
ऐसा आशिर्वाद दिया है।
इसके साथ ही सज्जन गढ के स्वामी रामदासजी जी ने कल्याण स्वामी को मेरे सरपर हाथ रखने को कहा है,और आशिर्वाद भी दिया है।
अनेक देवी देवताओं का,सिध्द पुरूषों का वरदान भी मुझे प्राप्त हो गया है।

काळभैरवनाथ
( सोनारी ) खंडोबा (ग्रामदैवत ) हनुमान ( भानसगांव ) नारसिंव्ह ( कोळे ) माता महालक्ष्मी ( कोल्हापूर ) संत ज्ञानेश्वर ( आलंदी ) ने भी मुझे आशिर्वाद दिया है।

मगर इसके लिए चौबिस साल की खडतर तप:श्चर्या ( पंढरपूर तथा आलंदी में ,इसके साक्षी है आलंदी के एक मेरे मित्र – श्री.गणेश मुंगशे) भी करनी पडी है।अनेक बार अनेक जहर हजम करने पडे है।अनेक जहरिले साँपों का जहर भी हजम करना पडा है।एकांत में अनेक बार रोना पडा है।अनेक भयंकर सत्वपरीक्षायें, अग्नीपरीक्षायें भी देनी पडी है।
अब तो जीवन का कठीण गढ भी और देवगिरी ( दौलत )भी चढ कर सर्वोच्च शिखर पर आज विराजमान हुं।

अब मेरे वैश्विक ईश्वरी कार्य को कौन रोकेगा ?

हरी ओम्
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विनोदकुमार महाजन

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