मंदिर को सोने का कलश चढायेंगे।
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भाईयों,
एक वास्तव लिख रहा हुं।जो मैंने देखा है,आजमाया है।शायद यह मेरा अंदाज आपकी नजरों से गलत भी हो सकता है।
हमारे ज्ञानेश्वर, तुकाराम जैसे महान संत हो,या महात्मा हो,या अवतारी पुरुष हो,या महायोगी-सिध्दयोगी हो।
उनके हयात में हमारे अपने ही ऐसे अनेक महापुरूषों को अनेक प्रकार की पिडाएं,नरक यातनाएं,दुख दर्द देते है।
कभी कभी उनका जिना भी हराम कर देते है।उन्हे भी रूलाते है।
और…
उनके मृत्यु के बाद…?
उनका भव्य दिव्य मंदिर बनाना,समाधी निर्माण करना,और कभी कभी
उनके मंदिरों को सुवर्ण कलश भी चढाना।
जब देह तत्व में होते है तो…
खून के आँसु बहाना,
और मृत्यु के बाद..
नितदिन…
मंगलआरती करना…
सोचो दोस्तों,
क्या यही सच्चाई है?
यही वास्तव है?
यही दुनियादारी है?
अगर हाँ…तो…
क्यों …???
हरी ओम…🙏
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— विनोदकुमार महाजन।