Fri. Oct 18th, 2024

धधगता ईश्वरी तेज,परशुराम

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धधगता ईश्वरी तेज , परशुराम…!!!

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जहाँ ब्रम्हतेज और छात्रतेज एक होता है वहाँ इतीहास बन जाता है।

दोनों तेजों में हमेशा जबरदस्त शक्तीसंचलन होता है।

अब विष्णु के दशावतार में भी देखो।

वामन और परशुराम ब्रम्हतेज, और राम और कृष्ण छात्रतेज।वामन और परशुराम, राम और कृष्ण की तरह भगवान विष्णु की तरह दशावतार में से ही है।इसीलिए इस विषय में विनावजह का झगडा कोई उत्पन्न नही करेगा ऐसी आशा करता हुं।

क्योंकि विश्व में महान हिंदु हमेशा सभी देवताओं के साथ विष्णु के दशावतार की भी पूजा हमेशा करता आया है।और वह भी विना कोई झगडे या विवाद से।

राम और कृष्ण की महती तो हम हमेशा गाते ही है।

अब परशुराम के बारें में भी थोडासा और मेरी अल्प बुध्दि के अनुसार लिखने का प्रयास कर रहा हुं।

अपने हाथ में हमेशा परशु लेनेवाले और चिरंजीव का वरदान प्राप्त तथा धधगता ईश्वरी तेज ,तथा अंगार,उग्र तथा शिघ्र कोपी जामदग्नी पुत्र  साक्षात विष्णु का अवतार परशुराम।

भगवान हमेशा उन्मत्त पापियों का नाश करने के लिए स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरित होते रहते है।उन्मादी पापीयों का सफाया करके,फिर से स्वर्ग को वापिस लौट जाते है।

भगवान विष्णु भी परशुराम बनकर इसी कारण से आये थे।

भगवान की लिला हमेशा अगाध, अलौकिक, अतर्क्य होती है।और इसमें अनेक आश्चर्यकारक और आश्चर्यजनक घटनाएं, अनुभव और अनुभूतियां भी होती है।और असंभव लगनेवाली घटनाएं भी संभव होती है।मानवीय शक्ति से भी कई गुना अधिक शक्तिशाली तथा आश्चर्यजनक।

और भगवान परशुराम के जीवन में भी ऐसी अनेक अद्भुत, अतर्क्य और आश्चर्यजनक घटनाएं घटी है।

अपने पिता और शिघ्र कोपी जामदग्नी के आदेश पर अपनी ही माता रेणुका का सर अलग करना और फिर उसी सर को अपने ही पिता के प्रसन्न होने के वरदान में फिर से जिवीत करना भी एक अद्भुत तथा अलौकिक घटना ही है।जिस रेणुका माता की आज भी माहुर गड में एक शक्ति पीठ के तौर पर अखंड पूजा होती है।

विज्ञान हमेशा सिमित होता है और हमेशा उसे मर्यादाओं में बांध दिया जाता है।मगर सनातन संस्कृति के अनुसार प्रचलित अध्यात्म हमेशा अलौकिक ही रहा है और अमर्याद सिध्दातों पर ही हमेशा आधारित रहा है।इसीलिए यहाँ हमेशा असंभव दिखाई देनेवाली घटनाएं भी संभव होती दिखाई देती है।

जिस प्रकार से आत्मा का अस्तित्व जानना विज्ञान के बस की बात नही है।क्योंकि जो दृष्य स्वरूप में होता है वही विज्ञान स्विकारता है।मगर अध्यात्म तो हमेशा अदृष्य, अद्भुत घटनाओं का भी हमेशा वर्णन करता है जो की सत्य निष्ठ भी होता है।

मनुष्य प्राणी सहीत सभी पशुपक्षीयों सहीत सभी प्राणियों का मृत्यु तो विज्ञान स्विकारती है,जो डेड बाँडी तक ही सिमीत होती है।मगर अध्यात्म तो मृत्यु के बाद का जीवन अर्थात अदृष्य आत्मतत्व का भी स्विकार करती है।और मृत्यु पश्चात जीवन का भी वर्णन करती है।मगर इसकी आत्मानुभूति के लिए आत्मचेतना जागृती भी आवश्यक होती है।जो अथक और कठोर तपःश्चर्या द्वारा प्राप्त होती है।

इसी विषय में इतना विस्तृत लिखने की वजह केवल एक ही है की जो भी असामाजिक अथवा हिंदुत्वविरोधी तथा सत्य सनातन विरोधी असुरी तत्व होते है वह हमेशा वामन और परशुराम अवतार के बारे में विनावजह का झगडा उपस्थित करके समाज में संभ्रम तथा असहिष्णु वातावरण पैदा करने की लगातार कोशिश करते है।जो एकसंध हिंदु समाज को और सहिष्णु हिंदु धर्म को तोडऩे की एक भयंकर साजिश है।

क्योंकि राम और कृष्ण के सच्चे भक्त हमेशा वामन और परशुराम की भी बिना भेदभाव पूजा ही करते है।और वामन और परशुराम के भक्त भी हमेशा राम और कृष्ण की भी बिना भेदभाव के पूजा करते है।

क्योंकि सच्चाई जानने वालों को पता है की यह तो भगवान महाविष्णु की अगाध माया तथा अगाध लिला है।और भगवान विष्णु हमेशा पूजनीय और वंदनीय ही होते है।चाहे अवतार कार्य के लिए ,पंचमहाभूतों का देह कौनसा भी धारण करें।चाहे वामन हो या कृष्ण।या फिर चाहे परशुराम हो या फिर राम।

ऐसे दशावतारी भगवान विष्णु को मेरा कोटी कोटी प्रणाम।भगवान परशुराम को कोटी कोटी प्रणाम।

हरी हरीः ओम्।

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विनोदकुमार महाजन।

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