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सैध्दांतिक जीवन

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श्रीकृष्ण निती !
✍️ २६९१

किसी उत्सव में उपस्थीत रहकर कुछ लोगों द्वारा अपमानित होने से , अपनी बेईज्ज़ती करवाने से बेहतर होगा ? अनुपस्थित रहकर अपनी ईज्जत बढाना
और स्वाभिमान से रहना !

श्रीकृष्ण ने एकबार कोई गांव , नगर , व्यक्ति छोडने के बाद वापिस वहाँ जाने की , अथवा उस व्यक्ति को अपनाने की , कोशिश नहीं की !
सबसे प्रीय साक्षात राधा को भी जीवन में कभी भी मूडकर भगवान श्रीकृष्ण नहीं मिले!

मोदिजी भी इसका उदाहरण है ! जबतक माँ थी तबतक आनाजाना था !
माँ गई ? सबकुछ खतम् ?
रिश्तेनातों को त्याग दिया !
समाज और देश के लिए खुद की पत्नी को भी त्याग दिया !

कितना श्रेष्ठत्व ! कितना बड़ा बैराग्य ?

योगी आदित्यनाथ जी ने भी देशहित के लिए सदा के लिए रिश्तेनातों को छोड़ दिया !

क्यों ?
क्योंकि एकबार जो बात मन से , आत्मा से निकाल दी है उसे दुबारा प्राप्त करने की कोशिश भी नहीं करनी चाहिए !
चाहे कितना भी लाभ हो अथवा हानि ?
यही सैध्दांतिक जीवन होता है !

यही होता है स्वाभीमानी जीवन !
यही होता है असली ईश्वरीय जीवन !
यही होता है सच्चे महापुरुषों का जीवन !

” पारसमणि ”

जय श्रीकृष्णा !!

विनोदकुमार महाजन

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