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संपत्ति, समाधान और मन का बडप्पन !!

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संपत्ति, समाधान और मन का बडप्पन !!
✍️ २२३९

विनोदकुमार महाजन

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संपत्ति !
समस्त मानवसमुह में संपत्ति का महत्व विशेष होता है !
संपत्ति और संपत्तियों से मिलनेवाले सुखसमाधान प्राप्त करने के लिए,लगभग सभी मनुष्य प्राणीयों में,सदैव होड सी लगी रहती है !
धनवान बनने का,संपत्ति कमाने का,सभी का सपना होता है !
और यही सपना पूरा करने के लिए, मनुष्य प्राणी हर समय,दिनराती प्रयत्नशील रहता ही है !

संपत्ति, धनलाभ, यह आखिर अपने अपने नशीब का भाग होता है !

कुछ गिनेचुने व्यक्ति, संपत्ति कमाने में ,यशस्वी भी होते है !
मगर संपत्ति, धनवैभव आने के बाद,अगला सफर होता है, मन का समाधान और मन के बडप्पन का !

इसिलिए संपत्ति तो कमाई,मगर मन का समाधान और मन का बडप्पन कितने प्रतिशत कमाया ? यह महत्वपूर्ण प्रश्न होता है !

दस करोड़ तो मिले,मगर दस करोड़ के सौ करोड़ कैसे बनेंगे, इसी विचारधारा से,मनुष्य प्राणी सदैव असामाधानी रहता है !
और मन का असामाधान ही सभी दुखों का कारण भी है !

ऐसी स्थिति में ,अल्पसमाधानी व्यक्ति भी बहुत मिलते है ! ईश्वर ने जो भी धन,वैभव दिया है, उसी में समाधान मानकर, बडे आनंद से जिनेवाले भी अनेक व्यक्ति मिलेंगे !

मगर बहुत कुछ धन मिलने के बावजूद भी,असामाधानी, अतृप्त, लालची लोग भी बहुत मिलेंगे !
और लालच का कोई उत्तर भी नहीं है ! लालच बहुत बूरी चिज तो है ही ! यह लालच मन का समाधान ही खत्म कर देती है !

इसिलिए मन का समाधान यह अत्यंत महत्वपूर्ण बात है !

संपत्ति भी मिल गई,समाधान भी है ! मगर मन का बडप्पन कितना होता है,यह भी महत्वपूर्ण है !

कोई बडा धनीशेठ है,सौ – दो सौ करोड़ का मालिक भी है !
मगर मन का बडप्पन ही नहीं है तो,उस धन और संपत्ति का क्या फायदा ?
करोड़ों का धन विदेशों में जमा करके रखा है, और इसका फायदा, समाज को,देश को नहीं है तो… उस धन,संपत्ति का भी क्या फायदा ?

जो दूसरों के काम ना आयें,ऐसे संपत्ति का भी क्या फायदा ?

उल्टा विदेशों में जमा धन,वैभव दिनबदिन कैसे बढेगा, इसकी ही निरंंतर चिंता सताती है, तो उस धन,वैभव का भी क्या फायदा ?

धन,वैभव, संपत्ति का,उपयोग,परोपकार के लिए करना भी बहुत महत्वपूर्ण होती है ! मगर मन की कंजूसी परोपकार करने ही नहीं देती है तो क्या करें ?
अब्जो रूपयों का धन पडा है !
और नजदीक कोई तडपतडपकर मर रहा है, ऐसे समय में, उसे थोडाबहुत आर्थिक सहयोग करने के लिए भी मन तैयार नहीं होता है, तो उस धन संपत्ति का भी क्या फायदा ?

कभी कभी,रास्ते पर बैठकर भीक माँगने वाले भी,ऐसे उपर लिखे हुए, करोडपति भिखारियों से बढकर होते है !
कैसे ?
कोई भिखारी, भिक माँगकर पाई – पाई जमा करता है ! बैंक में पैसे जमा करता है ! और अगर कोई दुखी हैं, मुसिबतों में फँसा है,तो…वह भिक माँगकर,पाई – पाई जमा करके रखा हुवा,सारा का सारा धन,यक ही झटके में,किसी दुखितोंको को बाँट देता है !

तो प्रश्न यह उठता है की,
असली भिखारी कौन और असली धनवान कौन ?

धन वैभव, संपत्ति होने के बावजूद भी, जो दूसरों के काम नहीं आता है, वास्तव में, वही भिखारी होता है ?
या फिर पाई – पाई जमाकर रखनेवाला, भिखारी, एक ही झटके में, किसी जरूरत मंदों को,पूरा धन बाँट देता है,
वही असली राजा होता है ?

मन की गरीबी यह एक श्राप है ! और मन की अमीरी यही एक वरदान है !

मन की अमीरी का मतलब यह नहीं है की,अपने पास जो जमा धन है,वह सब का सब दूसरों के लिए लूटा दो ! मगर कुछ प्रतिशत धन जरूमंदों को भी दे सकते है ?

मैंने देहात में, ऐसे भी अनेक लोग देखे है की,खुद मुसिबतों में होकर भी, अपनी खुद की जरूरतों को दूर रखकर,दुसरों के दुखदर्द में सहायक होते है,दूसरों को आधार देते है !
और ऐसे भी लोग देखे है की,कोई नजदीकी व्यक्ति भी तडपतडपकर मर रहा है, और धनवान व्यक्ति, अपने पास के धन की, फूटी कौड़ी भी,जरूमंदों को नहीं दे रहा है !

और ईश्वर भी उन्हींका ही सहयोग करता है, जो खुद मुसिबतों में होकर भी,दूसरों की यथासंभव सहायता करते है !

आखिर कर्म अपना अपना !

हरी ओम्

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