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सद्गुरु के चरणकमल

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सद्गुरु के पवित्र चरणकमल ही अमृत के महासागर होते है !!!
✍️ २१७१

विनोदकुमार महाजन
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सद्गुरु !
सद्गुरु का वर्णन लेखनी कैसी कर सकेगी ?
सद्गुरु चरणों की प्राप्ति जिसे भी हो गई ,उसका जन्म जन्मांतर का कोट कल्याण हो गया !
ऐसा व्यक्ति परमभाग्यशाली,महाभाग्यवान होता है !
सद्गुरु के प्रेम की महती,व्याप्ति, श्रेष्ठता, महानता कोई कर ही नहीं सकता है !

सद्गुरु के चरणकमल,साक्षात महासागर होते है !
सद्गुरु के चरणकमलों पर सर्वस्व समर्पण ही जीवन का उद्दीष्ट होता है !
सद्गुरु चाहे साकार में हो अथवा निराकार में,उनका अद्वितीय, अलौकिक, पारलौकिक प्रेम जन्म जन्मांतर तक,अखंड रहता ही है !
सद्गुरु के चरण मतलब – साक्षात अमृत का सागर !
साक्षात स्वर्ग !
सभी देवीदेवताओं का सहवास !
संपूर्ण ब्रम्हांड की व्यापकता !

सभी सुखों का भंडार !
सुख – शांती – समाधान – आनंद – वैभव – ऐश्वर्य – यश – किर्ती का भंडार !

आत्मानंद और आत्मकल्याण की अलौकिक दिव्य अनुभूति !

जीव – शीव का मिलन !
आत्मा – परमात्मा का मिलन !
सद्गुरु चरणों में लीन होना यही ध्यान है !
यही समाधी है !
और यही मोक्ष भी है !
इससे बढकर अन्य वैभव कौनसा हो सकता है ?

मेरे सद्गुरु आण्णा !!!
क्या और कैसे वर्णन करूँ मेरे सद्गुरु का ?
उनके दिव्य प्रेम का ?
उनके भव्यत्व दिव्यत्व का ?
उस महान आत्मानुभूति का ?
महान साक्षात अमृतसागर का ?
कृपालु, दयालु, ममतालु,परमहितकारी, परमसौभाग्यकारी मेरे आण्णा ने मुझे क्या नहीं दिया ?

सबकुछ दिया !!!
यह संपूर्ण देह भी उनके पवित्र चरणकमलों पर समर्पित कर दूंगा, तो भी कम है !
और मेरे पास सद्गुरु को देनेयोग्य आखिर है ही क्या ?
कुछ भी नहीं !
आखिर जो भी है सब उनका ही है !उन्होंने ही दिया हुवा है !

जब मेरे दादाजी, मेरे सद्गुरु, मेरे आण्णा देहरूप से मेरे साथ थे…तब का अवर्णीय आनंद कैसे व्यक्त कर सकता हूं ?

और जब मेरे आण्णा का देहांत हो गया,उनका देहावसान हो गया,ब्रम्हतत्वों में और पंचमहाभूतों में मेरे आण्णा एकरूप हो गये…और उनका देह अदृश्य हो गया ?
तब मैं निचेष्ट हो गया !
ऐसा लगाने लगा की,मेरी खुद की ही आत्मा मेरे देह से चली गई !
मेरी सुधबुध खो गई !
पागलों की तरह मैं मेरे आण्णा को ढूंडता रहा ! चारों तरफ ! दिनरात !
आत्मा तडप उठी !
मेरा महासागर मुझसे दूर चला गया !
मेरा अमृतसागर मुझसे दूर चला गया !
मेरा साक्षात चलता फिरता स्वर्ग मुझसे दूर चला गया !
मैं धरती पर अनाथ हो गया !
सहारा देनेवाला भी कोई नहीं बचा !
धरती पर मेरे सद्गुरु के बीना, उनके चरणकमलों के बीना, दिनरात, अकेला… जलबिन मछली की तरह तडपता रहा ! रोता रहा ! सिसकता रहा !
दिनरात रोते रोते,पागलों की तरह इधर उधर भटकते भटकते मेरे आण्णा को ढूंडता रहा !

और एक दिन ?
मेरे सद्गुरु आण्णा, मेरे लिए, मुझे भव्यत्व – दिव्यत्व देने के लिए, मेरा ईश्वरी कार्य पूरा करने के लिए…
मेरे सद्गुरु आण्णा…
फिरसे स्वर्ग से आत्मतत्व द्वारा और जागृत चैतन्य द्वारा,वापस लौट के आ गये !

चमत्कार हुवा !
मुझे दुखों से मुक्ति देने के लिए !
मुझे ब्रम्हज्ञान देने के लिए !
मुझे सबकुछ देने के लिए !
गुरूदत्तात्रेय जी के साथ आ गये !
और मेरे सरपर वरदहस्त रख दिया !

और बोले…
” तेरा विश्व कार्य आरंभ हो
गया है !!! ”

उस दिव्यानुभूति का वर्णन कैसे कर सकता हूं ?
आत्मा – आत्मा को मिल गई !
आत्मा – परमात्मा को मिल गई !
सभी सुखों का भंडार मिल गया !
जलबिन तडपती मछली फिरसे उस महान अमृत सागर में एकरूप हो गई !

और मैं शांत हो गया !
शांती का परमवैभव मुझे मिल गया !
जन्म जन्मांतर का कल्याण हो गया !
जलबिन तडपती मछली फिर महासागर में एकरूप हो गई !
अमृतसागर में एकरूप हो गई !

और क्या चाहिए ?

मेरे आण्णा के कृपा आशिर्वाद से,
ईश्वरी कार्यसफलता के लिए अनेक देवीदेवताओं की कृपा भी हो गई !
अनेक सिध्दपुरूषों के वरदहस्त मिल गये !
मेरी कुलदेवता, सोनारी के काळभैरवनाथ की कृपा हो गई !
काळभैरवनाथ ने, मुर्ती से बाहर आकर,मेरे हाथ में धन रख दिया है !

ग्रामदेवता खंडोबा ने भी मेरे गले में तुलसी की माला डाल दी है !खंडोबा की पत्नी – म्हाळसा,मेरे गले में रूद्राक्ष की माला डाल रही थी ! तभी खंडोबा म्हाळसा को बोला…” रूक म्हाळसा,इसे रूद्राक्ष की नहीं, बल्की तुलसी की माला डालनी है ! ”
ऐसा कहकर खंडोबा ने तुलसी की माला मेरे गले में डाल दी !

कोल्हापुर निवासीनी, जगदंबा और जन्म जन्मांतर की मेरी माँ…साक्षात जगदंबा, माता महालक्ष्मी भी मेरे साथ बहुत प्रेम की वाणी से बातें करने लगी ! मेरी माँ का भी आशिर्वाद मिला !

शेगांव के गजानन महाराज, सज्जन गढ के रामदास स्वामी – कल्याण स्वामी के वरदहस्त मिल गये !

भानसगाँव के हनुमानजी, कोले नरसिंहपुर के नारसिंह इनकी भी कृपा हो गई !

गौमाता ने भी मुझे स्त्री की आवाज में बोलकर आशिर्वाद दिए है ! उसका अमृतसमान दूध उसके स्तनों से मुझे बडे प्यार से पिलाया है !
जब मैं मेरी गौमाता को…
” माँ…माँ…” करके पुकार रहा था !

और ? इसी वजह से…
परमशांति का परम भंडार भी मिल गया !

तो दोस्तों, मैं हमेशा खुद को तेजस्वी ईश्वर पुत्र इसिलिए ही कहता हूं ! इसिलिए तेजस्वी लिखता भी हूं !आप सभी को सत्य सनातन धर्म के लिए सत्य के लिए, अनेक लेखों द्वारा,सभी को जगाने का एक छोटासा प्रयास भी निरंतर करता रहता हूं !
और आप सभी सनातनीयों को भी हमेशा, तथा ” विश्व में फैले हुए,सभी सनातन प्रेमीयों ” को भी तेजस्वी ईश्वर पुत्र ही कहता हूं ! और आप सभी
” तेजस्वी ईश्वर पुत्र हो भी ! ”

” जो रामजी से प्रेम करता है, दिव्य प्रेम करता है…उसपर… मेरे,हमारे, हम सभी के रामजी भी दिव्य प्रेम ही करते है ! ”
आत्मानुभूति के लिए केवल दिव्य चक्षु चाहिए !
अतींद्रिय शक्ती चाहिए !

इसिलिये साथियों,
जिसे भी सद्गुरु की कृपा प्राप्त होती है, उससे बडा सौभाग्यशाली इस धरती पर कौन हो सकता है ?
इसिलिये सद्गुरु के चरणकमलों पर,सश्रध्द भाव से,संपूर्ण शरण जाना और उनके स्वर्गीय चरणकमलों पर सर्वस्व समर्पित कर देना ही,जीवन का अंतिम उद्दीष्ट होता है !

इसिसे ही जीवन सफल हो जाता है !

और एक बात बताना चाहता हूं !
मेरे बचपन में मेरे माताजी का,मेरी जन्मदात्री का जब देहावसान हो गया था,तब मेरी तडपती आत्मा को शांत करने के लिए, मेरी माँ – मेरी माई – स्वर्ग से पंचमहाभूतों का देह धारण करके,मेरे लिए, मुझे दर्शन देने के लिए, कुछ क्षणों के लिए, प्रत्यक्ष लौट के आ गई थी !
इसका प्रमाण साक्षात मेरे दादाजी, मेरे आण्णा थे ! मेरे आण्णा के हाथों में मुझे सौंपकर मेरी माई फिर स्वर्ग को वापिस लौट गई थी !

मेरी गोजरमाय !
मेरे जाती की न होकर भी उसने भी मुझे आजीवन… दिव्य,अखंड प्रेमामृत दिया !
इसका भी वर्णन कैसे कर सकता हूं ? मृत्यु के बाद भी स्वर्ग से हमेशा बातें करती है !
दिव्य आत्मानुभूती देती है !
उच्च अनुभूती !

मेरा जन्म दिन भी,विजयादशमी से पिछले का एक दिन !खंडेनवमी ! सिध्दीदात्री का ! शस्त्रपूजन का दिन !

मित्रों,
यह कोई मनगढंत कहाणी नहीं है ! अथवा नाही मेरा कोई भ्रम अथवा आभास है !
अथवा नाही प्रसिद्धी के हव्यास के कारण यह सबकुछ लिखा है !
यह वास्तव है !
यह एक वास्तव सत्य है !

आत्मा के,दिव्य आत्मानुभूती और आत्मानंद का अखंड प्रमाण देनेवाले हमारे अनेक धर्म ग्रंथ ऐसे अनेक उदाहरणों के प्रमाण है !

श्वास ह्रदय को जोडता है,
और ह्रदय आत्मा को जोडता है !
वहीं श्वास निराकार ब्रम्ह को,ईश्वर को भी निरंंतर जोडता है !
जब श्वास रूकती है तब ह्रदय बंद होता है, और निराकार आत्मा, निराकार ब्रम्ह से एकरूप हो जाती है !
जिसे मृत्यु कहते है !

और आधुनिक विज्ञान, इसे ही डेड बाँडी कहता है !
डेड बाँडी के बाद ?
क्या यही आधुनिक विज्ञान आत्मा की खोज करने में,उसका रहस्य बताने में,गूढ़ विषयों का आकलन करने में, सक्षम होता है ?
बिल्कुल नहीं !
और जब…
विज्ञान रूकता है,
तब…
आध्यात्म शुरू हो जाता है !
सभी गूढ विषयों का आकलन करनेवाला, आत्मा – परमात्मा की खोज करने वाला,
वैदिक सनातन हिंदु धर्म संस्कृति का आध्यात्म !

और आध्यात्म में ही मनुष्यों को पुर्णत्व की प्राप्ति भी हो सकती है !
इसीलिए, ऐसे महान सनातन हिंदु संस्कृति में हमारा जन्म हुआ, यह भी हमारा, परम सौभाग्य भी है !
आत्मज्ञान तथा ब्रम्हज्ञान प्राप्ति द्वारा, देवीदेवताओं के साथ भी वार्ता करने की उच्च क्षमता रखने वाला,ईश्वर निर्मित, अनादी अनंत..सनातन वैदिक हिंदु धर्म !

फिर भी मैं पंचमहाभूतों का देहधारी, और उसमें भी ईश्वर ने ही आत्मतत्त्व भरें है,और जिसपर सद्गुरू की कृपा हुई है,
ऐसा एक छोटासा जीव हूं !
अनेक मर्यादाओं में बंधा हुवा !

कर्ताकरवीता तो साक्षात सद्गुरु और ईश्वर है !

और इसी संपूर्ण विषयों के अनुसार हम सभी को मिलकर,
हिंदुराष्ट्र बनाना है !
अखंड भारत भी बनाना है !
भारत को विश्व गुरू भी बनाना है !

क्या आप सभी को मेरी बात विश्वसनीय लग रही है ?
मेरी बातें विश्वास योग्य है ?

सर्व संमती से ?
तो ?
चलो उठो तेजस्वी ईश्वर पुत्रों !
क्योंकी हम सनातनी है !
सहिष्णू भी होते है !

ना तलवार के धार पर और नाही पैसों के लालच पर विश्व को बदलने का सपना देखने वाले हम होते है !
इसीलिए हमारा सनातन धर्म आदर्श, सर्वव्यापक, सर्वसमावेशक है !
वसुधैव कुटुम्बकम
की महान व्याख्या बताने, सिखाने वाला है !
इसीलिए हम और हमारी आदर्श हिंदु संस्कृति विश्व में महान है !

इसीलिए ?
हम युग बदलेंगे !
बदलकर ही रहेंगे !

हम तो ईश्वरी सिध्दांतों पर चलकर और भगवत् गीता के आदर्शों को अपनाकर ही…
परम ईश्वरी कृपा से,
बहुत जल्दी ही…
हिंदुराष्ट्र भी बनायेंगे !
अखंड भारत भी बनाकर रहेंगे !

और यह समय भी…
कहीं दूर नहीं…
बल्कि काफी नजदीक है !!!

इसिलिए तो…
” हम सभी आयें है !!! ”
” हम सभी ईश्वर प्रेमी आये है ! ”
” हम सभी तेजस्वी ईश्वर पुत्र आये है ! ”

हमें केवल स्वप्न रंजन नहीं करना है ! दिवास्वप्न भी नहीं देखना है !
बल्कि, विस्तृत प्रयासों द्वारा, हमारे पूर्वजों का आदर्श सपना भी पुरा करना ही है !

संपूर्ण कार्य सफलता के लिए ,
हमें निरंंतर, नितदिन एकेक कदम आगे बढाना ही है !

जय श्रीराम !
हर हर महादेव !
हरी ओम् !

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