घर एक मंदिर
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भाईयों,
हमारा, हम सभी का,मेरा – तुम्हारा,
घर आखिर कैसा होना चाहिए ?
हर घर एक मंदिर जैसा होना चाहिए।
जी हाँ ।
जहाँ पर दिव्यत्व की अनुभूति हो,आपसी प्रेम,भाईचारा, संपूर्ण विश्वास तथा संपूर्ण समर्पण का माहौल हो।एक दुसरे के प्रती उच्च कोटि का भाव तथा सर्वस्व समर्पीत प्रेम हो।आदर हो।
जहाँ संस्कारों का धन हो,ईश्वरी सिध्दांतों के प्रती मर मिटने के लिए हर सदस्य तत्पर हो।
हर घर में ईश्वर के प्रती प्रेम हो,
अतीथी देवो भव्…
का उच्चतम सिध्दांत हो…
दया,करूणा हो,
मन की मैल न होकर,मन का बडप्पन हो…
स्वार्थ, अहंकार ,लोभ ,झूठ की गुंजाइश ना हो…
ऐसा घर सचमूच में आदर्श होता है।ऐसे घरों में सदैव स्वर्ग जैसा आनंदी माहौल चौबीसों घंटे बना रहता है।
सदैव हंसी खुशी होती है।
ऐसे घरों में लक्ष्मी जी का भी अखंड वास होता है।
ऐसे घरों में देवता भी अदृष्य रूप से रहते है।
यही स्वर्ग है।
यही स्वर्गीय आनंद भी है।
और यही,
घर एक मंदिर भी है।
मगर इसके लिए तो सबसे पहले
हर एक को अपना मन
मन एक मंदिर बनाना ही पडता है।
स्वच्छ,सुंदर,अवर्णनीय, आनंददायक,प्रेमदायक।
आज कितने घर ऐसे है…?
क्या आप सभी का घर भी
घर एक मंदिर है ?
क्या आपके घर में भी माता महालक्ष्मी का और ईश्वर का वास है ?
क्या आपको इसकी अनुभूति मिलती है…?
अगर हाँ,तो आप अत्यंत भाग्यशाली है।
और ना तो…?
प्रयास किजिए घर एक मंदिर बनाने का।
और….अब,
आवो हम सब मिलकर,
वसुधैव कुटुंबकम् का सिध्दांत स्वीकार करके,
संपूर्ण पृथ्वी को,धरतीको एक आदर्श…
हमारा, हम सभी का…
एक आदर्श घर बनाते है।
धरती का स्वर्ग बनाते है।
सुखदुख बाँट लेते है।
दुसरों की हंसी खुशियों के लिए ही जीवन समर्पित करते है।
बस्स…
इसके लिए मन थोडासा बडा चाहिए।
आपस में दिव्य प्रेम की अनुभूति चाहिए।
मन एक मंदिर बनना चाहिए।तभी घर एक मंदिर जरूर बनेगा।
जिसके घर सचमुच में मंदिर है,दिव्य प्रेम की अनुभूति है,
वहाँ पर कुछ दिनों के लिए मुझे भी जरुर बुलाना।मैं दौडा दौडा चला आवूंगा।
हरी ओम्
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विनोदकुमार महाजन