🌺🏵💐 *”मोक्ष”* 💐🏵🌺
चाहे राजमहल हो या टूटी झोपडी
चाहे पंचपक्वान हो या रूखीसुखी रोटी
चाहे सुख हो या दुख
अमृत हो या जहर
सदैव मन की शांति बनी रहनी चाहिए
आत्मसंतुष्टि जैसा सुख,आनंद, वैभव दूसरा कोई है ही नही
यही मोक्ष है यही स्वर्ग है
और यही ईश्वरी कृपा भी है
साधू बनकर साध लिया
जो चाहिए वह मिल ही गया
परमानंद ही है परम वैभव का साधन
जिसने गरीबी अमीरी का भेद मिटा दिया
ईश्वरी कृपा का अनमोल धन मिल ही गया
मगर सद्गुरु कृपा के बिना ईश्वरी कृपा असंभव है
इसीलिए सद्गुरु चरणों में जो निरंतर लीन रहता है,उससे बडा सौभाग्यशाली दुनिया में दूसरा कोई नही हो सकता है
।। सद्गुरु आण्णा की जय हो ।।
विनोदकुमार महाजन
अब एक सुंदर बोधकथा भी पढीये 👇👇👇
*यूनान का एक विख्यात ज्योतिषी एक बार रात में आकाश के तारों का अध्ययन करता हुआ चला जा रहा था। अचानक चलते-चलते वो एक कुएं में गिर पड़ा।*
*कुएं पर पाट नहीं रखे थे। उसकी आंखें आकाश में अटकी थीं और वह चाँद-तारों का अध्ययन कर रहा था।*
*कुएं में गिरते ही वो कुएं के अंदर से जोर जोर से चिल्लाने लगा।*
*कुएं के पास के ही झोंपड़े से एक गरीब बुढ़िया ने आकर उस ज्योतिषी को बमुश्किल कुएं में से बाहर निकाला।*
*वो यूनान का सबसे बड़ा ज्योतिषी था। उसके राज्य के सम्राट भी उसके द्वार पर आते थे।*
*उसने बुढ़िया का बहुत-बहुत धन्यवाद किया और कहा– देख! तुझे पता नहीं है कि तुझे सौभाग्य से किसको बचाने का अवसर मिला है।*
*मैं यूनान का सबसे बड़ा ज्योतिषी हूं। मैं तारों और नक्षत्रों की गतिविधियों, और मनुष्य के भाग्य से उनके संबंध में मुझसे बड़ा कोई भी जानकार इस पृथ्वी पर नहीं है।*
*बड़े से बड़े सम्राट भी मेरे पास आते हैं। मेरी फीस भी बहुत ज्यादा है।लेकिन तूने मुझे बचाया है तो तेरा भाग्य मैं बिना फीस के देख दूंगा, तू कल आ जाना।*
*वो बुढ़िया हंसने लगी।*
*ज्योतिषी ने उस बुढ़िया से पूछा — मांई! तू हंस क्यों रही है?*
*उस बुढ़िया ने कहा– बेटा! मैं इसलिए हंस रही हूं कि जिसे अपने सामने का कुआं नहीं दिखाई पड़ता, उसे चाँद-तारों की गतिविधि, नक्षत्र और भविष्य वगैरह क्या दिखेंगे।*
*तुझसे अपने पैर तो सम्हलते नहीं हैं और तू मेरा भविष्य क्या बताएगा। होश में आ।*
*कहते हैं कि यह घटना उस ज्योतिषी के जीवन में एक क्रांति का कारण बन गई।*
*उसने ज्योतिष छोड़ दी क्योंकी यह एक भारी चोट थी।*
*यह बात भी इतनी ही सच थी कि पैर के सामने कुआं है और वो दिखाई नहीं पड़ा। मगर उसे कुआं क्यों नहीं दिखाई पड़ा था?*
*ऐसा नहीं है कि उसके पास आंख नहीं थी। उसके पास आंख थी, मगर आंख दूर के तारों पर अटकी थी।*
*यही हमारे आदर्शवादिता की भ्रांति है। उसकी आंख दूर के तारों पर अटकी है।*
*आदर्शवादी सदैव कहता है मोक्ष पाएंगे।*
अभी यह सड़ा-गला *क्रोध,* इससे तो छुटकारा मिल नहीं रहा है।
यह सड़ा-गला *काम*, इससे भी तो छुटकारा नहीं मिल पा रहा है।*
*और कहते हैं कि मोक्ष पाएंगे, बैकुंठ जाएंगे ।*
हमारी आंखें बड़े दूर के आकाश पर लगी हैं और उसकी वजह से रोज-रोज गड्ढों में गिर रहे हैं।
*यह गड्ढे क्रोध के, काम के, वैमनस्य के, ईर्ष्या के और घृणा के हैं।*
*संत-महात्मा फरमाते हैं– आंखें लौटा लाओ जमीन पर। जहां चलना है आंखें वही होनी चाहिएं।*
*अर्थात*
*इस क्षण में ही आंखें होनी चाहिएं, क्योंकी गड्ढे यहां हैं।और सारे गड्ढों से तुम बच जाओ तो उसी बचाव का नाम मोक्ष है।*
*मोक्ष कहीं दूर आकाश में नहीं है। जिसके जीवन में गिरने की संभावना न रही,वही मुक्त है..!!* मोक्ष पाने के लिए पहले सांसारिक मोह,लोभ, क्रोध, मद,मत्सर, से छुटकारा पाना होगा।
आत्मानुभूति और आत्मानंद जैसा नशा इतना जबरदस्त होता है की,
जिसको यह प्राप्त हुवा,
जन्म जन्मांतर का भेद खुल गया
हरी ओम्