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लोहा लोहे को काटता है

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लोहा लोहे को काटता है।
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जी हाँ,
लोहा ही लोहे को काटता है।
ठंडा लोहा गरम लोहे को काटता है।

कुछ लोग भी ठंडे लोहे की तरह कठोर भी होते है और भयानक समस्याओं की तोड भी होते है।

ठंडे दिमाग के मगर ईश्वरी अधीष्ठान पर चलने वाले और अधर्म को मिटाने की पूरी क्षमता रखने वाले,क्रूर शासक।

वैसे तो आदमी क्रूर नही होता है।एक तो नियती उसको क्रूर बनाती है,अथवा समाज।

तक्षक का नाम आपने सुना होगा।उसके बचपन में ही उसका सारा परिवार अधर्मीयों द्वारा गाजर मूली की तरह काट दिया था।
और अनायास ही तक्षक भी भयंकर क्रूर हो गया,जहरीला हो गया।
ठंडा अग्नीकुंड।
और आगे चलकर एक राजा का प्रधान भी बन गया।और हैवानों को,अधर्मीयों को क्रौर्य धारण करके,गाजर मूली की तरह काट डाला।

तक्षक।

जब अत्याधिक अत्याचार कोई सहता है तो,वह भी भयंकर क्रूर बनता ही है।
मगर यह क्रौर्य भी धर्म रक्षा के लिए ही चाहिए।अन्यथा क्रौर्य भी गुनहगार बनाकर आजीवन तडपाता रहता है।

वैसे ही आदमी जहरीला भी नही होता है।मगर समाज ही कुछ इंन्सानों को अत्यधिक अत्याचारों द्वारा भयंकर जहरीला बनाता है।

विषकन्या तथा विषपुत्रों का प्रयोग भी धर्म रक्षा के लिए आपने सुना होगा।
ठीक इसी प्रकार से अत्यधिक अत्याचार सहनेवाला व्यक्ति भी शायद विषपुत्र बन सकता है।
और धर्म रक्षा के लिए जहरीले साँपों को काटकर समाप्त भी कर सकता है।

जब कोई व्यक्ति सत्य के लिए,सिध्दातों के लिए अनेक सालों तक तलवार की तेज धारपर चलता है,और उसके पैरों से निरंतर, चौबीसों घंटे खून ही बहता है…और उपर अपना ही समाज उसे नरकयातना, पिडा देता है तो….हँसता है,तो वह तलवार के धार पर चलनेवाला तो…
खून के आँसू रोयेगा ही रोयेगा।
और अंदर ही अंदर वह क्रूर भी होगा या फिर जहरीला भी होगा।

और आज का सामाजिक भयंकर जहरीला माहौल देखेंगे…
तो शायद उसकी काट भी यही होगी,कोई जहरीला ,विषपुत्र ही इस सामाजिक बिमारियों को खतम् कर दें।
आत्यंतिक क्रौर्य भी कभी कभी विनाशकारी होता है।
और कभी कभी रामबाण तोड भी।

मगर धर्म युद्ध में क्रौर्य धारण करके ही मैदान में उतरना पडता है।
हाथ में माला लेकर मैदान में उतरेंगे… तो क्या होगा ? सामने वाला भयंकर शत्रु क्षमा करेगा।
या काट डालेगा ?

इतिहास क्या कहता है ?

उसी समय केवल और केवल लोहा ही लोहे को काट सकता है।अथवा क्रौर्य ही खुद को जालीम शत्रुओं के चंगुल से छूडा सकता है।

और आज का भयावह वैश्विक वातावरण देखेंगे तो क्या नजर आता है ?
और इस भयानकता को समाप्त करने का तरीका क्या है ?

रशीया – युक्रेन वाँर ?

मतलब फिर… क्रौर्य।

तो गलती किसकी ?

रशीया की या यूक्रेन की ?

पांडवों की या कौरवों की ?

आज कोई साधारण इंन्सान, शक्ति न होकर भी इसी विषय पर बोलता अथवा चर्चा करता है…और अगर उसका उद्देश्य पवित्र है..तो वह साधारण आदमी भी अगर ईश्वर की इच्छा हो तो जीत भी सकता है।

और अगर ईश्वर खुद ही ऐसे सामान्य व्यक्ति को ही अर्जुन बनाकर,धर्म युद्ध द्वारा कौरवों का संपूर्ण सफाया करना चाहता है तो…ईश्वरी इच्छा को कौन रोकेगा ?

कोई तो भी धनुर्धारी बनकर आगे आयेगा भी और जीतेगा भी।उन्मत्त, उन्मादी कौरवों का सर्वनाश करके ही रहेगा।
हैवानियत को सदा के लिए उखाड़ फेकेगा ही।
जमीन में गाड देगा ही।

अत्याचार की जब परिसिमा होती है…तो इतिहास फिर दोहराया जाता है।

आपको क्या लगता है ?
मैं सही लिख रहा हूं या गलत ?
आत्मा पर हाथ रखकर बोलिए।
और अब हर एक को बोलना ही पडेगा।

सामान्य, अती सामान्य व्यक्ति भी क्या नही कर सकता है…अगर उसकी तीव्र इच्छाशक्ति हो और ईश्वर भी उसकी सहायता करता हो तो..?
वह व्यक्ति साधारण होकर भी जीतेगा भी।
और जीतकर ही रहेगा।

।। मूकं करोति वाचालं ।।
।। पंगुं लंघयते गिरिम् ।।
।। यत्कृपा तमहं वंदे ।।
।। परमानंद माधवम् ।।

रोते हुए अर्जुन को वह परमात्मा हाथ में शस्त्र लेने के लिए और धर्म युद्ध करने के लिए… प्रवृत्त करता है…और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की,धर्म युद्ध यही एकमेव तथा अंतिम पर्याय बचा हुवा है तो…???

यह होकर ही रहेगा।

विश्व पटल पर एक सुक्ष्म नजर डालकर देखते है तो क्या दिखाई देता है ?
आसुरीक शक्तियों का और ईश्वरी शक्तियों का द्वंद्व शीतयुद्ध बनकर, आग की तरह गति ले रहा है।

बूरी शक्तियां एक हो रही है और अच्छी शक्तियां उसके विरोध में खडी हो रही है।
और दोनों शक्तियों का ध्रुवीकरण आरंभ हो चुका है।

रशीया – युक्रेन।

अब पांडव कौन और कौरव कौन ,और परमात्मा श्रीकृष्ण कौन यह बात हम सभी को तय करनी है।

भविष्य में शायद एक अर्जुन, कृष्ण इच्छा से आगे आयेगा भी और भयंकर क्रौर्य भी दिखायेगा,विषपुत्र बनकर… विषारी, जहरीले साँपों को सदा के लिए जमीन में गाड देगा।
सर्वनाश कर देगा।
उसके अंदर की भयंकर आग,ज्वाला पापीयों को जलाकर राख कर देगी।

फिर जमीन के निचे दबा हुवा,या दबाया गया, सत्य भी विश्व पटल पर उपर उठकर आगे आयेगा।और फिरसे विश्व पटल पर….

सत्य सनातन की हर एक ईट,
गूंज गूंज कर,
सत्य सनातन की मंगल आरतीयाँ गूंज उठेगी ही।

क्या भविष्य में सचमुच में ऐसा ही होनेवाला है ?

” कल्कि का कलंकायन ” आरंभ हो चुका है ?

कल्कि अवतरित होकर अदृष्य होकर, धिरे धिरे कार्य आगे बढा रहा है ?

शायद भविष्य में जरूर कुछ जबरदस्त उथल पुथल होनेवाली है।जीसके संकेत आज मिल ही रहे है।

केवल स्वच्छ यमुना ही नहीं,स्वच्छ भारत ही नहीं, अपितु स्वच्छ.. सर्वांगसुंदर..विश्व बनाने के लिए, खुद ईश्वर पर्दे के पिछे से शायद कोई यशस्वी रणनीति बना रहा होगा।

देखते है…पाप का अंत और पापीयों का सर्वनाश ईश्वरी इच्छा के अनुसार कब होता है ?
हाथ में धनुषबाण लेकर, कृष्ण की इच्छा से,
क्रूर बनकर अर्जुन जहरीले साँपों का नाश करने के लिए,
” कुरूक्षेत्र ” पर कब अवतरित होता है ?

भविष्य में जरूर कुछ होनेवाला है।
हमारी भी नजर उस समय का इंतजार कर रही है।

तबतक के लिए
हरी ओम्
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विनोदकुमार महाजन

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