ना की रात के घोर अंधेरे में हम नया साल मनाते है,और नाही जीवन में अंधेरा करते है।
बल्कि हम तो दिन की नई शुरूआत में सुबह के सूर्योदय के समय में,चैत्र शुध्द प्रतिपदा को ही नया साल आरंभ करते है।
ना की हम दिपक बुझाकर हमारा जनमदिन मनाते है,और नाही जीवन में अंधेरा करते है।
बल्कि हम तो दिपक, नीरांजन जलाकर, औक्षण करके ही,प्रकाशमान जीवन की तरह हमारा जनमदिन मनाते है।
क्योंकि हम अंधेरे के पूजक नही है।हम तो प्रकाश के,उजाले के पूजक है।
दिपक जलाकर जनमदिन मनायेंगे।चैत्र शुध्द प्रतिपदा को ही नया साल मनाएंगे।
क्योंकि हम सभी तेजस्वी ईश्वर पुत्र है।
हम प्रकाश पूजक है,अग्नि पूजक है।
जय सनातन धर्म।
वंदे मातरम।
जय गौमाता।
जय गंगामैया।
हरी ओम्
विनोदकुमार महाजन