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जीना इसिका नाम है !

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*सबकुछ समर्पण !*

ईश्वर के सामने भक्तों को,
सद्गुरु के सामने शिष्यों को,
सिध्दपुरूषों के सामने
पुण्यवंतो को,
और ईश्वर समान अपने
पती के सामने,
पतीव्रता स्र्ती को विश्व का,
सारा वैभव और स्वर्ग सुख भी
य:कश्चित लगता है !
अगर इनको ईश्वर, सद्गुरु
अथवा महापुरुषों ने अपना
सर भी काटकर मांग लिया,
तो एक ही झटके में और
विनासोच के पुण्यात्माएं,
शिष्य अथवा ईश्वर भक्त
अपना सर भी तुरंत काटकर
दे देते है !

इसे कहते है प्रेम,
इसे कहते है श्रध्दा,
और
इसे कहते है भक्ति !
और ईश्वर भी ऐसे ही
महापुरुषों को सर्वश्रेष्ठत्व देता ही है !

धर्म के लिए राजे संभाजी,
गुरू गोविंद सिंहजी,
और ऐसे अनेक महापुरुषों ने
क्रांतिकारियों ने,
अपने प्राण की बाजी लगाने
के लिए भी पिछे नही हटे !

तो ऐसे महापुरुषों के सामने
धन,वैभव, सत्ता, संपत्ति
कौनसी बात है ?

इसिलए तो हनुमानजी ने
अपनी छाती फाडकर
अपने अंदर राम के दर्शन करवाए,
सज्जन गढ पर कल्याण
स्वामी ने रामदास स्वामी की इच्छा के लिए,
खुद को
गढ के उपर से कुद दिया !

अगर सचमुच में जीना ही है
तो ऐसा भव्य दिव्य और
शानदार जीवन जीने में ही
मजा है !

अन्यथा…..,
किडे मकौड़े भी धरती पर
पैदा होते है और मर जाते है !
अर्थशून्य !

सनातन भाईयों,
कहने का मतलब यह ही है की,
जबतक सबकुछ झोंककर,
हम सब मिलकर कार्य नही करेंगे
तबतक हमारे कार्योँ को
गती नही मिलेगी !

अखंड हिंदुराष्ट्र तथा
हिंदुमय विश्व देखना चाहते हो
तो ऐसे हजारों – लाखों
समर्पित कार्यकर्ताओं की फौज
खडी करनी पडेगी !

तो चलो साथियों,
हम खुदसे,अभी से और आज से
कार्य आरंभ करते है !

संपूर्ण समर्पित भाव से !
भोगी नही त्यागी भाव से !

जीना इसिका नाम है !

हरी ओम्

*विनोदकुमार महाजन*

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