*कितना पैसा कमाया ???*
—————————————
आजकल, विशेषता हमारे हिंदु समाज में एक चर्चा हमखास होती है…
चाहे वह घर हो,आँफिस हो,चौराहा हो…
बस्स,एक ही सवाल
*कितना पैसा कमाया ?*
कितनी गाडीयाँ,जमीन, बंगले, सोना, रो हाऊसेस,प्लाँट,पैसा कमाया ?
सुबह शाम, दिन रात बस्स,एक ही सपना, जीवन का एक ही मकसद।
पैसा, पैसा और पैसा।
उसने इतना कमाया,इसने इतना कमाया।
*जीवन का केवल एक ही सार और एक ही लक्ष रह गया है शायद… पैसा।*
जीवन का कुछ और भी उद्दीष्ट है यह सहसा समाज भूल ही गया है ऐसा लगता है।
इसके आगे देव,देश,धर्म के बारें में बहुअंश समाज भारी मात्रा में उदास दिखता है।अथवा ऐसी सोच भी ना के बराबर होती है।
*देव धर्म करने के लिए बुढापा है ना ।*
ऐसी ही सामाजिक धारणा सी बन गई है।
*धन जीवनोपयोगी अत्यावश्यक साधन है,मगर अंतिम साध्य नही है…यही विचार समाज भूल गया है।*
और ऐसी धारणा होने के नाते पैसा ही ईश्वर बन गया है।
खावो पिवो ऐश करो ऐसा भोगवादी समाज बनता जा रहा है।और परिणाम ऐसा होता जा रहा है की,धन के वास्ते रिश्ते नाते भी टूटते हुए नजर आ रहे है।इसलिए विभक्त कुटुंब पध्दती का अनुकरण होता जा रहा है।और कौटुम्बिक दरार के कारण प्रेम,माया,ममता, वात्सल्य समाप्त होता जा रहा है।
इसीलिए हमारे समाज की दुर्दशा तथा वाताहात होती जा रही है।
दुसरे धर्मीयों में धन का महत्व तो होता है।मगर धन के उपर उनका धर्म होता है।हमारे लोग धर्म के प्रती उदासीन रहते है,तो दुसरे धर्मीय धर्म के प्रती हमेशा जागरूक एवं तत्पर होते है।
इसिलिए हिंदु ही हिंदुओं के पैर खिंचेगा अगर टाँग अडायेगा।कोई आगे जाने के लिए प्रयास कर रहा है तो उसको ही अपमानित करेगा, उसको ही हँसेगा, अथवा उसके कार्यों में बाधाएँ उत्पन्न करने की निरंतर कोशिश में लगे रहेगा।
और इसी में ही परनिंदा, परद्वेष,नफरत भयंकर बढायेगा।और उसी में ही सदैव आनंदी रहेगा।
दुसरों को निचे दिखाने की अथवा निचे गिराने की हमारे यहाँ समझो होड ही लगी हुई है।
इतना भयंकर सामाजिक अध:पतन क्यों और कैसे हुवा ?
परिणाम स्वरूप ?
भयंकर धर्म हानी।
*इसका संपूर्ण स्वरूप हमें बदलना ही होगा।*
तभी देश,देव,धर्म, संस्कृति बचेगी।सबसे पहले हमें हमारे ही घर में सुधार लाना अत्यावश्यक हो गया है।
मगर दुसरी तरफ देखते है तो अन्य धर्मीय अपने धर्म के प्रती चौबिसों घंटे जागरूक रहते है।और जब भी मिलते है तो धन के बजाय धर्म, पंथ बढाने पर ही चर्चा करते है,अथवा इसी विषय पर जोर लगाते है।
इसीलिए अगर हमें धर्म की रक्षा करनी है तो धर्म के प्रति समाज को केवल जागरूक ही नही तो,भौतिक वाद तथा भोगवाद में अटके लटके हुए हमारे समाज को प्रयत्नपूर्वक बाहर निकालना ही होगा।
*तभी पलायन भी रूकेगा और धर्म भी बचेगा।*
और इसके लिए हमें व्यापक स्वरूप में जनजागृति अभियान चौतरफा आरंभ करना पडेगा।
समाज को नई दिशा, नई चेतना, नई उर्जा देकर समाज में फैलता जा रहा धर्म के प्रती उदासीनता का जहर समाप्त करना होगा।
यह काम आसान नहीं है।मगर तीव्र इच्छा शक्ति के आगे नामुमकिन भी नही है।समाज एकसंध, सुसंस्कृत बनाने के व्यापक पर्याय आजमाने होंगे।
मेरे अनेक जागृत लेखों द्वारा मैंने तो यह विश्व व्यापक अभियान आरंभ किया है।
आप क्या करेंगे ?
बोलो…मेरे अभियान में शामिल होकर,साथ देंगे ?
या केवल धन के पिछे भागकर धर्म हानी तथा सामाजिक अध:पतन अपने आँखों से देखते रहेंगे ?
*फैसला आपके हाथ में है।*
हरी ओम्
————————————-
आप सभी का शुभचिंतक,
*विनोदकुमार महाजन*